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डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान में वित्तीय अनियमितताओं का बड़ा खुलासा

रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। झारखंड की राजधानी रांची के मोरहाबादी इलाके में स्थित प्रतिष्ठित डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान में बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं का सनसनीखेज खुलासा हुआ है। सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) 2005 के तहत प्राप्त दस्तावेजों ने आदिवासी संस्कृति के संरक्षण और शोध से जुड़े फंड्स के दुरुपयोग की ओर इशारा किया है, जिसने राज्य सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।

संस्थान के जन सूचना पदाधिकारी सह सहायक निदेशक द्वारा 8 सितंबर 2025 को उपलब्ध कराई गई RTI जानकारी के अनुसार वर्ष 2023-24 में शुरू किए गए दो महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स में भारी गड़बड़ी सामने आई है। इन प्रोजेक्ट्स का उद्देश्य जनजातीय धार्मिक स्थलों और मुंडा समुदाय की सांस्कृतिक विरासत का दस्तावेजीकरण करना था। हालांकि फंड्स के वितरण में नियमों की अनदेखी और असामान्य अग्रिम भुगतान ने विशेषज्ञों को यह कहने पर मजबूर कर दिया है कि यह मामला प्रशासनिक चूक से कहीं बढ़कर, एक सुनियोजित घोटाले का हिस्सा हो सकता है।

RTI दस्तावेजों के अनुसार इस प्रोजेक्ट को 21 सितंबर 2023 को लोहरदगा निवासी श्री निरंजन कुमार कुजूर को सौंपा गया था। प्रोजेक्ट के लिए कुल 7.50 लाख रुपये की राशि आवंटित की गई थी। लेकिन हैरानी की बात यह है कि संस्थान ने पहली किस्त के रूप में 20.25 लाख रुपये और दूसरी किस्त में भी इतनी ही राशि यानी कुल 40.50 लाख रुपये का अग्रिम भुगतान कर दिया। यह राशि आवंटन से करीब 5.4 गुना अधिक है।

अनुबंध के अनुसार यह प्रोजेक्ट वर्ष 2025-26 तक पूरा होना था, लेकिन RTI से पता चलता है कि अब तक इसकी कोई ठोस प्रगति नहीं हुई है और यह अधर में लटका हुआ है। दस्तावेजों में यह भी उल्लेख है कि तीसरी किस्त प्रोजेक्ट की पूर्णता और विशेषज्ञों की मंजूरी के बाद जारी की जाएगी। सवाल यह है कि बिना प्रगति के इतनी बड़ी राशि का भुगतान कैसे और क्यों किया गया?

इसी तरह दूसरा प्रोजेक्ट ऑडियो-वीडियो डॉक्यूमेंटेशन ऑफ मुंडाज इन छोटानागपुर को 21 सितंबर 2023 को रांची स्थित ब्लू ग्रोभ मीडिया प्राइवेट लिमिटेड के श्री दीपक बारा को आवंटित किया गया। इस प्रोजेक्ट के लिए भी 7.50 लाख रुपये की राशि आवंटित थी, लेकिन पहली और दूसरी किस्त में 20.25 लाख रुपये प्रत्येक यानी कुल 40.50 लाख रुपये का भुगतान कर दिया गया। यह प्रोजेक्ट भी अधूरा है और तीसरी किस्त विशेषज्ञों के अप्रूवल के बाद जारी होनी है।

दोनों प्रोजेक्ट्स को मिलाकर कुल आवंटित राशि 15 लाख रुपये थी, लेकिन संस्थान ने 81 लाख रुपये से अधिक का अग्रिम भुगतान कर दिया, जो आवंटन से करीब 5.4 गुना अधिक है। यह असामान्य भुगतान प्रक्रिया और प्रोजेक्ट्स की प्रगति में कमी संस्थान की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठा रही है।

उल्लेखनीय है कि डॉ. रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान झारखंड राज्य के आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए एक प्रमुख सरकारी संस्था है। यह संस्थान राज्य सरकार के कल्याण विभाग के अधीन कार्य करता है और आदिवासी संस्कृति, भाषा, परंपराओं, कृषि, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक विकास से जुड़े मुद्दों पर शोध करता है।

इसकी स्थापना मूल रूप से ‘जनजातीय शोध संस्थान’ के रूप में हुई थी, लेकिन बाद में इसे प्रसिद्ध आदिवासी विद्वान और झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा (1939-2011) के नाम पर नामित किया गया। डॉ. मुंडा ने ‘जे नाची से बांची’ (नृत्य से जीवन) जैसे सिद्धांतों के माध्यम से आदिवासी पहचान को मजबूत किया था।

संस्थान की आधिकारिक वेबसाइट पर इसके कार्यों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध है, जो आदिवासी समुदायों के संरक्षण और विकास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है। लेकिन हालिया RTI खुलासे ने इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता और आदिवासी अधिकारों के पैरोकार राजेश मुंडा ने बातचीत में कहा कि  यह सिर्फ पैसे की बर्बादी नहीं, बल्कि आदिवासी संस्कृति के साथ खिलवाड़ है। प्रोजेक्ट्स जो सालों से लंबित हैं, उन पर इतना पैसा बहाना संदिग्ध है। सरकार को तुरंत निष्पक्ष जांच करानी चाहिए। स्थानीय आदिवासी संगठनों ने भी इस मामले की गहन जांच की मांग की है, क्योंकि ये प्रोजेक्ट्स उनकी सांस्कृतिक विरासत से सीधे जुड़े हैं।

संस्थान के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई आधिकारिक बयान नहीं मिल सका। RTI से मिली जानकारी के आधार पर यह स्पष्ट है कि प्रोजेक्ट्स की मॉनिटरिंग में या तो भारी कमी रही है या फिर मिलीभगत हुई है, जिसके कारण फंड्स का दुरुपयोग संभव हो सका।

बहरहाल, यह मामला न केवल वित्तीय अनियमितताओं का है, बल्कि आदिवासी समुदायों के प्रति सरकार की जवाबदेही और उनके सांस्कृतिक संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता पर भी सवाल उठाता है। विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच जरूरी है, ताकि दोषियों को दंडित किया जा सके और भविष्य में ऐसी अनियमितताओं को रोका जा सके।

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