झारखंडजरा देखिएप्रशासनफीचर्डभ्रष्टाचाररांची

रांची में अजूबा भूमि घोटाला: जिला प्रशासन की उदासीनता से दहशत का माहौल

प्रशासन को चाहिए कि वह तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप करे और दोषियों को कठघरे में लाए, ताकि आशा कुमारी और उनके सह-स्वामियों को उनका हक मिल सके। क्योंकि देर से मिला न्याय से बड़ा कोई अन्याय नहीं होता...

रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। झारखंड की राजधानी रांची के कांके अंचल में एक बार फिर अजूबा भूमि घोटाला ने सुर्खियां बटोरी हैं। खाता संख्या-17, आरएस प्लॉट नंबर-1335, केंदुआपावा दोन, मौजा-नेवरी की 25 डिसमिल रैयती भूमि को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। इस मामले ने न केवल प्रशासनिक कार्यप्रणाली की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं, बल्कि एक बड़े जमीन कारोबारी गिरोह के संभावित संलिप्तता की ओर भी इशारा किया है।

दरअसल, वर्ष 2010 में आशा कुमारी, सियाशरण प्रसाद और बालेश्वर प्रसाद ने इस 25 डिसमिल रैयती भूमि को विधिवत रजिस्ट्री के माध्यम से खरीदा था। रजिस्ट्री के तहत आशा कुमारी को 05 डिसमिल, सियाशरण प्रसाद को 08 डिसमिल और बालेश्वर प्रसाद को 12 डिसमिल भूमि का हिस्सा प्राप्त हुआ। यह रजिस्ट्री छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 (सीएनटी अधिनियम) की धारा 46 और 49 के प्रावधानों के अनुरूप थी, जो रैयती भूमि के हस्तांतरण को सख्त नियमों के तहत नियंत्रित करती है।

रजिस्ट्री के बाद उसी वर्ष कांके अंचल कार्यालय में दाखिल-खारिज (म्यूटेशन) की प्रक्रिया पूरी की गई। इसके परिणामस्वरूप तीनों व्यक्तियों के नाम झारभूमि पोर्टल पर दर्ज किए गए, जो झारखंड भू-राजस्व नियमावली के तहत उनके स्वामित्व को औपचारिक मान्यता देता है।

इसके अतिरिक्त तीनों ने 2010 से इस भूमि पर निर्विवाद भौतिक कब्जा बनाए रखा है। खेती, बाउंड्री निर्माण और अन्य उपयोग के माध्यम से उनका कब्जा स्पष्ट रूप से स्थापित है। साथ ही उन्होंने नियमित रूप से भूमि की रसीद कटवाई है, जो 2025-26 तक देय है और झारभूमि पोर्टल पर इसकी पुष्टि भी होती है।

रजिस्ट्री, दाखिल-खारिज, भौतिक कब्जा और रसीदों का यह संयोजन आशा कुमारी और उनके सह-स्वामियों के स्वामित्व को कानूनी रूप से अत्यंत मजबूत बनाता है।

लेकिन जून 2025 में सोशल मीडिया के माध्यम से एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। पता चला कि वर्ष 2022 में राज शेखर नामक एक जमीन दलाल ने उसी भूमि के 12 डिसमिल पर दाखिल-खारिज करवा लिया। यह दाखिल-खारिज न केवल आश्चर्यजनक है, बल्कि संदिग्ध भी है। क्योंकि 25 डिसमिल की जमीन में 15 साल बाद अतिरिक्त 12 डिसमिल की जमाबंदी यानी कुल 37 डिसमिल की जमाबंदी कैसे कायम हो गई, इसका कोई स्पष्ट जवाब प्रशासन के पास नहीं है।

उठते सवाल और प्रशासन की चुप्पीः इस मामले ने कई गंभीर सवालों को जन्म दिया है।

अवैध दाखिल-खारिज का आधार क्या है? राज शेखर ने किस आधार पर इस भूमि पर दाखिल-खारिज करवाया? उनके पास वैध रजिस्ट्री या बिक्री पत्र जैसे दस्तावेज हैं या नहीं? इशकी जांच नहीं की जा रही है।

भौतिक कब्जे का सवाल: कानूनी रूप से भौतिक कब्जा स्वामित्व का एक महत्वपूर्ण पहलू है। आशा कुमारी और उनके सह-स्वामियों का 2010 से इस भूमि पर निर्विवाद कब्जा है, जबकि राज शेखर का इस भूमि पर कोई भौतिक कब्जा नहीं है। फिर भी उनका दाखिल-खारिज कैसे स्वीकार किया गया?

प्रशासनिक मिलीभगत की आशंका: कांके अंचल कार्यालय से इस मामले में स्पष्टीकरण मांगने के बावजूद कोई जवाब नहीं मिला। सूचना के अधिकार (RTI) के तहत राज शेखर के दाखिल-खारिज के आधार दस्तावेजों और स्वीकृति आदेश की जानकारी मांगी गई, लेकिन निर्धारित अवधि में कोई जवाब नहीं दिया गया।

झारखंड भू-राजस्व नियमावली और सीएनटी अधिनियम के तहत दाखिल-खारिज के लिए रजिस्ट्री और भौतिक कब्जे का सत्यापन अनिवार्य है। यदि जमीन कारोबारी राज शेखर के पास वैध दस्तावेज नहीं हैं या उन्होंने भौतिक कब्जा स्थापित नहीं किया तो उनका दाखिल-खारिज अवैध है। फिर भी कांके अंचल कार्यालय इस मामले को मानने में आनाकानी कर रहा है और उच्च पदस्थ अधिकारी भी इस पर चुप्पी साधे हुए हैं।

यह मामला न केवल कांके अंचल कार्यालय की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि झारखंड में भूमि रिकॉर्ड और दाखिल-खारिज की प्रक्रिया की पारदर्शिता और उसमें घुसे भ्रष्टाचार पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। इस मामले की गहराई से जांच करने पर एक बड़े जमीन कारोबारी गैंग और कांके अंचल के कर्मियों-अधिकारियों की मिलीभगत का खुलासा हो सकता है।

यह पूरा प्रकरण रांची जिला प्रशासन और झारखंड सरकार के लिए एक चुनौती है। आशा कुमारी और उनके सह-स्वामियों के वैध स्वामित्व को संरक्षित करना प्रशासन का दायित्व है। उनकी मांग है कि इस मामले की शीघ्र और निष्पक्ष जांच की जाए। राज शेखर के अवैध दाखिल-खारिज को रद्द किया जाए। कांके अंचल कार्यालय के उन कर्मियों और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए, जो इस घोटाले में शामिल हैं। झारखंड में भूमि रिकॉर्ड की प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।

बहरहाल रांची का यह ताजा भूमि घोटाला का मामला न केवल एक स्थानीय मुद्दा है, बल्कि यह पूरे झारखंड में भूमि रिकॉर्ड की प्रक्रिया में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही को उजागर करता है। यदि समय रहते इस मामले की निष्पक्ष जांच और कार्रवाई नहीं की गई तो यह आम जनता के प्रशासन पर विश्वास को और कमजोर करेगा।

प्रशासन को चाहिए कि वह तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप करे और दोषियों को कठघरे में लाए। ताकि आशा कुमारी और उनके सह-स्वामियों को उनका हक मिल सके। क्योंकि देर से मिला न्याय से बड़ा कोई अन्याय नहीं होता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Back to top button
error: Content is protected !!

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker