चुनाव आयोग का कदम खतरनाक और व्यवहार चिंताजनक: कुरैशी

नई दिल्ली (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त एस. वाई. कुरैशी ने चुनाव आयोग की कार्यशैली पर तीखा प्रहार करते हुए इसे न केवल निष्पक्षता के सवालों के घेरे में खड़ा किया, बल्कि इसके हालिया कदमों को लोकतंत्र के लिए खतरा भी बताया। कुरैशी ने विशेष रूप से बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) प्रक्रिया और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ आयोग की भाषा पर गहरी आपत्ति जताई।
कुरैशी ने एक विशेष साक्षात्कार में कहा कि राहुल गांधी द्वारा ‘वोट चोरी’ के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए उनकी जांच करवानी चाहिए थी। राहुल ने अपने बयानों में ‘हाइड्रोजन बम’ जैसे राजनीतिक शब्दों का इस्तेमाल किया, जो कुरैशी के अनुसार महज ‘राजनीतिक बयानबाजी’ का हिस्सा हैं।
लेकिन इन आरोपों की गंभीरता को देखते हुए आयोग को तथ्यों की पड़ताल करनी चाहिए थी, न कि राहुल के खिलाफ ‘आपत्तिजनक और अपमानजनक’ भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए था।
कुरैशी ने कहा कि गांधी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं और करोड़ों लोगों की आवाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। आयोग का उनसे ‘शपथपत्र दीजिए, वरना कार्रवाई होगी’ जैसी भाषा में बात करना न केवल अनुचित है, बल्कि उसकी गरिमा के खिलाफ है।
बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को कुरैशी ने ‘खतरनाक कदम’ करार दिया। उनके अनुसार यह प्रक्रिया ‘भानुमती का पिटारा’ खोलने जैसी है, जिससे चुनाव आयोग की विश्वसनीयता को गंभीर नुकसान हो सकता है।
उन्होंने कहा कि दशकों में जो काम धीरे-धीरे और सावधानी से किया गया, उसे कुछ महीनों में बदलने की कोशिश गलत है। इससे न केवल विवाद बढ़ेगा, बल्कि त्रुटियों की संभावना भी कई गुना बढ़ जाएगी।
कुरैशी ने मतदाता पहचान पत्र (एपिक) को दस्तावेजों की सूची से हटाने के फैसले को भी गंभीर चूक बताया। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग की अपनी पहचान है। इसे नकारना न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि लोकतंत्र की प्रक्रिया पर भी असर डाल सकता है।
पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने विपक्ष के प्रति आयोग के रवैये पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए विपक्ष की आवाज सुनना अनिवार्य है, लेकिन वर्तमान में हालात यह हैं कि 23 राजनीतिक दलों को यह शिकायत करनी पड़ी कि उन्हें आयोग से मिलने का समय तक नहीं दिया जा रहा। कुरैशी ने इसे ‘लोकतंत्र के लिए खतरनाक संकेत’ बताया।
कुरैशी ने जोर देकर कहा कि चुनाव आयोग को न केवल निष्पक्ष होना चाहिए, बल्कि निष्पक्ष दिखना भी चाहिए। आयोग की साख उसकी सबसे बड़ी ताकत है। लेकिन हाल के कदमों, जैसे बिहार में SIR और विपक्ष के साथ व्यवहार ने इस साख को कमजोर किया है।
उन्होंने सुझाव दिया कि आयोग को शिकायतों की जांच के लिए एक पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया अपनानी चाहिए, न कि शिकायतकर्ताओं को डराने या धमकाने की नीति।
बहरहाल, एस. वाई. कुरैशी की यह टिप्पणी न केवल चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए कितनी सावधानी बरतनी चाहिए।
बिहार में SIR और राहुल गांधी के आरोपों पर आयोग का रवैया भविष्य में और विवादों को जन्म दे सकता है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या आयोग अपनी साख को फिर से मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाएगा या यह विवाद और गहराएगा?