
पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज/मुकेश भारतीय)। बिहार का सियासी पारा चढ़ता जा रहा है। विधानसभा चुनाव 2025 के लिए नामांकन प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अब मैदान साफ हो गया है। सभी प्रमुख दल अपने-अपने योद्धाओं को उतार चुके हैं, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के छह जिलों में एक भी प्रत्याशी नहीं है।
वहीं, जनता दल यूनाइटेड (जदयू) का एक जिले में कोई उम्मीदवार नहीं उतरा है। दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने राज्य के हर जिले में अपने उम्मीदवार खड़े कर दमदार उपस्थिति दर्ज की है। कांग्रेस के प्रत्याशी 10 जिलों में गायब हैं, जबकि विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) नौ जिलों तक सीमित है और भाकपा माले ने पिछले चुनाव की तुलना में अपना दायरा बढ़ाया है।
यह चुनावी समीकरण एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि किन जिलों में कौन से दल मैदान से बाहर हैं और किन्होंने कितनी सीटों पर दांव लगाया है।
भाजपा एनडीए का प्रमुख घटक है। उसने इस बार कई जिलों में अपनी उपस्थिति सीमित रखी है। मधेपुरा, खगड़िया, शेखपुरा, शिवहर, जहानाबाद और रोहतास जैसे छह जिलों में भाजपा का एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं लड़ रहा है। यह रणनीति सहयोगियों को मजबूत करने की हो सकती है, लेकिन विपक्ष इसे कमजोरी के रूप में प्रचारित कर रहा है।
हालांकि, कुछ जिलों में भाजपा ने न्यूनतम उपस्थिति दिखाई है। सहरसा, लखीसराय, नालंदा, बक्सर और जमुई में पार्टी के सिर्फ एक-एक प्रत्याशी मैदान में हैं। कुल मिलाकर भाजपा ने अपनी सीटें सहयोगियों जैसे जदयू और लोजपा (रामविलास) को सौंपकर गठबंधन धर्म निभाया है।
जदयू के लिए अरवल जिला ऐसा है, जहां पार्टी का कोई उम्मीदवार नहीं उतरा है। यहां की सीटें सहयोगी दलों को दी है। वहीं राजद ने राज्य के सभी जिलों में अपने उम्मीदवार उतारकर मजबूत दावा पेश किया है। कुछ जिलों में राजद ने एक या दो प्रत्याशी खड़े किए हैं।
राजद ने अरवल, बक्सर, कटिहार, शेखपुरा, शिवहर और लखीसराय जैसे चार जिलों में एक-एक प्रत्याशी खड़े किए हैं। वहीं बांका, जहानाबाद, खगड़िया, किशनगंज, मुंगेर, सहरसा और पश्चिम चंपारण जैसे सात जिलों में दो-दो प्रत्याशी खड़े किए हैं। राजद की यह रणनीति मतदाताओं को विकल्प देने और गठबंधन की मजबूती दिखाने की है।
महागठबंधन की सहयोगी कांग्रेस ने भी अपना दायरा सीमित रखा है। पार्टी के उम्मीदवार सिर्फ 28 जिलों में मैदान में हैं। इनमें पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, किशनगंज, कटिहार, सहरसा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय, खगड़िया, भागलपुर, बांका, लखीसराय, शेखपुरा, नालंदा, पटना, बक्सर, रोहतास, औरंगाबाद, गया, नवादा, पूर्णिया, अररिया, सुपौल और जमुई शामिल हैं। बाकी 10 जिलों में कांग्रेस ने राजद या अन्य सहयोगियों पर भरोसा जताया है।
भाकपा माले ने पिछले विधानसभा चुनाव में 12 जिलों से चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार पार्टी ने अपना दायरा बढ़ाकर 13 जिलों कर लिया है और कुल 20 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं। नए जिले के रूप में नालंदा शामिल हुआ है। माले ने इस बार गोपालगंज, सीवान, समस्तीपुर, पटना, आरा, बक्सर, पश्चिम चंपारण, सुपौल, कटिहार, रोहतास, अरवल, जहानाबाद और नालंदा जैसे जिले में अपने प्रत्याशी खड़े किए हैं। माले की यह सक्रियता वामपंथी वोट बैंक को मजबूत करने की कोशिश है।
वहीं वीआईपी (मुकेश सहनी) ने 9 जिलों में सिर्फ 14 उम्मीदवार, रालोमो (उपेंद्र कुशवाहा) ने 5 जिलों में 6 उम्मीदवार, हम (जीतन राम मांझी) ने 4 जिलों में 6 उम्मीदवार और लोजपा (रामविलास) को 29 सीटें मिली थीं, लेकिन मढ़ौरा से एक नामांकन रद्द होने से अब 20 जिलों में उनके 28 प्रत्याशी रह गए हैं।
वहीं प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए थे, लेकिन नामांकन में खामियां उजागर हुईं। दानापुर में उम्मीदवार ने नामांकन ही नहीं किया। गोपालगंज, ब्रह्मपुर, सीतामढ़ी में नामांकन वापस ले लिया। वाल्मीकिनगर में नामांकन रद्द हो गया। यह नई पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।
बहरहाल भाजपा की अनुपस्थिति वाले छह जिलों में जदयू या अन्य एनडीए सहयोगी मजबूत होंगे, लेकिन विपक्ष इसे ‘भाजपा की हार’ के रूप में प्रचारित कर सकता है। राजद की हर जिले में मौजूदगी महागठबंधन को बढ़त दे सकती है। माले का विस्तार ग्रामीण और मजदूर वोटों पर असर डालेगा।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक कुल नामांकन में कमी आई है, लेकिन मुकाबला त्रिकोणीय या बहुकोणीय हो रहा है। मतदान तीन चरणों में होगा और नतीजे नवंबर में आएंगे। बिहार की जनता अब फैसला करेगी कि सत्ता की चाबी किसके हाथ जाएगी। सियासी अखाड़े में रोमांच चरम पर है!









