पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार राज्य शिक्षा विभाग में शैक्षणिक सुधार अभियान के तहत स्कूलों में बड़े पैमाने पर संसाधन एवं सुविधाएं जुटाई जा रही है। इसके लिए विभाग ने खजाना खोल दिया है। जिसमें व्यापक पैमाने पर अनियमियता बरती जा रही है।
प्री-फैब स्ट्रक्चर से वर्ग कक्षों की कमी दूर करनी हो या जर्जर भवनों की रिपेयरिंग, स्कूलों में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था हो या बच्चों के बैठने के लिए बेंच-डेस्क की उपलब्धता, रंग रोगन हो या आवश्यक संसाधन जुटाने की प्रक्रिया। यह सब जिले में बड़े पैमाने पर जारी है।
लेकिन, पूरे बिहार में इन तमाम कार्यों के बीच बड़े पैमाने पर लूट है। स्कूलों का कायाकल्प करने वाली एजेंसियां व वेंडर दोयम दर्जे का काम करा ऊपर से नीचे तक कमीशन का खेल बेखौफ खेल रहे हैं।
जिस बेंच-डेस्क के एक सेट के लिए लिए सरकार 5000 हजार रुपए दे रही है, बाजार में 1600 से 2600 रुपए में पेंट किया हुआ उपलब्ध है। वेंडर और एजेंसी के लोग उसी की खरीदारी कर स्कूलों में सप्लाई कर रहे हैं।
सच पुछिए तो शिक्षा विभाग ने स्कूलों के कायाकल्प के बीच भ्रष्ट लोगों के लिए मोटी उगाही का इंतजाम कर दिया है। स्कूलों के लिए बेंच-डेस्क बनाने वाले दुकानदार भी वेंडर या एजेंसी की बातों से अनजान हैं।
बिहार में मध्य एवं माध्यमिक विद्यालयों को कायाकल्प में पहले प्राथमिकता दी गई है। आने वाले समय में सभी प्राइमरी स्कूलों को भी बेंच-डेस्क की आपूर्ति किए जाने की बात कही जा रही है।
लेकिन बेंच डेस्क की गुणवत्ता पर सवाल स्कूलों के कायाकल्प के बीच शिक्षा विभाग ने हर काम का मूल्य निर्धारित किया है। इसमें स्कूलों में बेंच-डेस्क आपूर्ति की योजना तो एक तरह से कामधेनू गाय बन गई है। एक सेट बेंच-डेस्क की कीमत विभाग ने 5000 रुपए निर्धारित है। इसमें शीशम का पौवा पाटी व आम की पटरी का उपयोग होना है।
वहीं, लोहे के फ्रेम में अच्छी गुणवत्ता की प्लाई लगाई जानी है। लेकिन, स्कूलों में आपूर्ति हो रहे अधिकांश बेंच-डेस्क काफी घटिया क्वालिटी के हैं। इसमें कमजोर लकड़ी का उपयोग किया गया है। साइज भी मानक के अनुरूप नहीं है।
हल्के लोहे के फ्रेम में लोकल प्लाई का उपयोग कर बेंच-डेस्क बना आपूर्ति की जा रही है। जबकि, बाजार में आम के पौवा पाटी व पटरी वाली बेंच डेस्क 1600 और शीशम की पौवा पाटी एवं आम की पटरी वाले बेंच-डेस्क 2600 रुपये प्रति सेट के हिसाब से उपलब्ध है।
बहरहाल, पूरे राज्य में सरकारी स्कूलों का कायकल्प एक बड़ा घोटाला बन गया है। जिसकी हर शिकायत पर विभाग और उसके मुख्य अपर सचिव केके पाठक सरीखे अफसर भी खामोश हैं। जबकि बिहार का शायद ही ऐसा कोई जिला हो, जहाँ से बेंच-डेस्क आपूर्ति में भारी लूट-खसोंट की खबरें न आ रही है।
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