नगड़ी रिम्स-2 के खिलाफ उबाल: नजरबंद हुए चंपई, देवेंद्रनाथ ने संभाली कमान

रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। झारखंड की राजधानी रांची के कांके अंचल अंतर्गत नगड़ी में प्रस्तावित रिम्स-2 (राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज) परियोजना को लेकर विवाद चरम पर पहुंच गया है। 1,074 करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के खिलाफ स्थानीय रैयतों और आदिवासी समुदायों का आक्रोश सड़कों पर उतर आया है। रविवार को नगड़ी में ‘हल जोतो, रोपा रोपो’ आंदोलन के तहत सैकड़ों ग्रामीणों ने एकजुट होकर खेतों में हल चलाकर और धान रोपकर सरकार के खिलाफ अपना विरोध दर्ज किया। इस आंदोलन को और तेज करने के लिए झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा के केंद्रीय वरीय उपाध्यक्ष देवेंद्रनाथ महतो ने कमान संभाली, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन को उनके रांची स्थित आवास पर नजरबंद कर दिया गया।
आंदोलन से पहले ही जिला प्रशासन ने सख्त रुख अपनाते हुए नगड़ी के प्रस्तावित परियोजना स्थल के 200 मीटर की परिधि में बीएनएस धारा 163 (पूर्व में धारा 144) लागू कर दी। इस धारा के तहत सार्वजनिक सभाओं, पांच या अधिक लोगों के जमावड़े, हथियारों और विस्फोटकों के उपयोग, साथ ही लाउडस्पीकरों पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
इसके बावजूद आंदोलन को दबाने के लिए प्रशासन ने रविवार तड़के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता चंपई सोरेन को उनके आवास पर नजरबंद कर दिया। पुलिस उपाधीक्षक के.वी. रमन ने इस कार्रवाई को कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया। उन्होंने कहा, ‘आदिवासी संगठनों के विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया गया है।’
चंपई सोरेन ने अपनी नजरबंदी को अलोकतांत्रिक करार देते हुए कहा, ‘मुझे आदिवासी और मूलवासी किसानों की आवाज उठाने से रोकने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया है। यह नगड़ी के रैयतों के हक पर डाका डालने की साजिश है।’
सोरेन ने स्पष्ट किया कि वह रिम्स-2 परियोजना के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इसका निर्माण बंजर या सरकारी जमीन पर होना चाहिए, न कि उपजाऊ कृषि भूमि पर। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने बिना किसी अधिग्रहण नोटिस या मुआवजे के आदिवासियों की जमीन को जबरन हड़प लिया है।
सुरक्षा व्यवस्था को और सख्त करते हुए, प्रशासन ने नगड़ी क्षेत्र में भारी पुलिस बल तैनात किया और कई स्थानों पर बैरिकेड्स लगाए। सोरेन के बेटे बबूलाल सोरेन और उनके समर्थकों को भी रांची पहुंचने से पहले हिरासत में ले लिया गया।
प्रशासन की सख्ती के बावजूद, देवेंद्रनाथ महतो ने नगड़ी आंदोलन की कमान संभाली और पुलिस की निगरानी को चकमा देकर प्रस्तावित रिम्स-2 स्थल पर पहुंचे। कंधे पर हल और बैल के साथ पहुंचे महतो ने घंटों तक खेतों में जुताई की और ‘खेत जोतो, जमीन बचाओ – रोपा रोपो, जमीन बचाओ’ का नारा बुलंद किया। उनके साथ सैकड़ों ग्रामीण, खासकर महिलाएं और बुजुर्ग, पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुए। महिलाओं ने सांस्कृतिक गीत-संगीत के साथ धान रोपकर इस आंदोलन को सांकेतिक और सांस्कृतिक रंग दिया।
देवेंद्रनाथ महतो ने कहा, ‘हम विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन यह जमीन पूरी तरह से कृषि योग्य और आजीविका का आधार है। सरकार बिना संवैधानिक प्रक्रिया के इस उपजाऊ जमीन को छीनकर रैयतों की आजीविका पर कुठाराघात कर रही है।’
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार और बाहरी भू-माफिया मिलकर झारखंड की सरकारी और भुईंहारी जमीनों को हड़प रहे हैं। महतो ने चेतावनी दी कि अगर सरकार रिम्स-2 के लिए जमीन अधिग्रहण को जबरन लागू करती है, तो यह आंदोलन और तेज होगा।
महतो ने यह भी बताया कि इससे पहले भी उन्होंने बीआईटी मेसरा द्वारा 281 एकड़ जमीन के अवैध अधिग्रहण के खिलाफ हल चलाकर विरोध किया था। उन्होंने कहा, ‘लोकतांत्रिक देश में तानाशाही शासन को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। सरकार अगर रिम्स-2 बनाना चाहती है, तो रांची के आसपास कांके, बुकरू, रातु, सिमलिया, अनगड़ा और ओरमांझी में उपलब्ध सरकारी जमीन का उपयोग करे।’
यह आंदोलन नगड़ी जमीन बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले आयोजित किया गया, जिसमें विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक और किसान संगठनों ने समर्थन दिया। समिति की कार्यकर्ता सीता कछप ने बताया कि रविवार तड़के 4 बजे पुलिस ने उनके घरों से चार महिलाओं सहित पांच लोगों को हिरासत में लिया, लेकिन आंदोलन को दबाया नहीं जा सका। उन्होंने कहा, ‘यह आदिवासी जमीन के लिए हमारी आखिरी लड़ाई है। प्रशासन हमारी एकता को तोड़ना चाहता है, लेकिन नगड़ी के लोग अब एकजुट हो चुके हैं।’
आंदोलन में प्रेम शाही मुंडा, कमलेश राम, कुंदरेशी मुंडा, अंजना लकड़ा जैसे नेताओं के साथ हजारों ग्रामीण शामिल हुए। कुछ प्रदर्शनकारियों ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन के मुखौटे पहनकर विरोध को और प्रतीकात्मक बनाया। पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस और लाठीचार्ज का सहारा लिया, लेकिन प्रदर्शनकारी डटे रहे।
रिम्स-2 परियोजना को झारखंड सरकार एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य परियोजना के रूप में पेश कर रही है। स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने दावा किया है कि यह 2,600 बेड का सुपर-स्पेशियलिटी अस्पताल होगा, जिसमें कार्डियोलॉजी, ऑन्कोलॉजी, न्यूरोसर्जरी, और ऑर्थोपेडिक्स जैसी सुविधाएं होंगी। इसके साथ ही एक मेडिकल कॉलेज, रिसर्च सेंटर और टेलीमेडिसिन यूनिट भी स्थापित होंगे। 207 एकड़ जमीन पर बनने वाली इस परियोजना को एशियन डेवलपमेंट बैंक से 1,000 करोड़ रुपये की फंडिंग मिली है। सरकार का कहना है कि यह परियोजना रांची को पूर्वी भारत में स्वास्थ्य और मेडिकल टूरिज्म का केंद्र बनाएगी।
हालांकि, सरकार का यह दावा कि जमीन स्थानीय लोगों की नहीं है, विवाद का केंद्र बना हुआ है। चंपई सोरेन और आंदोलनकारियों का कहना है कि यह जमीन आदिवासियों और रैयतों की है, जिन्हें बिना मुआवजे या नोटिस के हटाया जा रहा है।
भाजपा ने चंपई सोरेन की नजरबंदी को लोकतंत्र पर हमला करार दिया है। केंद्रीय मंत्री संजय सेठ ने कहा, ‘नगड़ी के आदिवासी और मूलवासी किसानों के हक में आवाज उठाने वाले चंपई सोरेन को नजरबंद करना लोकतंत्र पर काला धब्बा है। रिम्स-2 के नाम पर उपजाऊ जमीन को नष्ट करना जनहित में नहीं है।’
वहीं, बाबूलाल मरांडी ने इसे लोकतंत्र की हत्या बताया और कहा कि भाजपा आदिवासी समाज के हक के लिए हमेशा लड़ती रहेगी।
दूसरी ओर कांग्रेस ने इस कार्रवाई का समर्थन किया। प्रदेश कांग्रेस के महासचिव राकेश कुमार सिन्हा ने कहा, ‘किसी को भी समाज में अराजकता फैलाने की छूट नहीं दी जा सकती। भाजपा विकास के नाम पर अशांति पैदा करना चाहती है।’
बहरहाल, यह मुद्दा विकास और आदिवासी भूमि अधिकारों के बीच टकराव का प्रतीक बन गया है। चंपई सोरेन की नजरबंदी और देवेंद्रनाथ महतो के नेतृत्व में ‘हल जोतो, रोपा रोपो’ आंदोलन ने सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। यह देखना बाकी है कि सरकार और आंदोलनकारी इस विवाद को कैसे सुलझाते हैं, लेकिन नगड़ी के रैयतों की आवाज अब और बुलंद हो रही है।