
पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार के मोकामा प्रखंड के सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना (मिड-डे मील) के तहत बच्चों को परोसा जा रहा भोजन उनकी सेहत के लिए खतरा बनता जा रहा है। मोकामा प्रखंड के लगभग 46 विद्यालयों में एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा सप्लाई किया जा रहा भोजन गुणवत्ता के मामले में बेहद निम्न स्तर का पाया गया है। इस गंभीर लापरवाही ने न केवल बच्चों के स्वास्थ्य को जोखिम में डाला है, बल्कि मध्याह्न भोजन योजना की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए हैं।
हाल ही में मोकामा प्रखंड के छतरपुरा बिंद टोली स्थित प्राथमिक विद्यालय में भेजे गए भोजन में सड़ा हुआ आलू और कीड़े से भरा चावल पाया गया। अभिभावकों और स्कूल स्टाफ के अनुसार यह कोई एकमात्र घटना नहीं है। कई स्कूलों में भोजन की गुणवत्ता लगातार खराब रही है, जिसमें सब्जियों में सड़न, चावल में कीड़े और अन्य खाद्य सामग्री में अपर्याप्त स्वच्छता की शिकायतें सामने आई हैं।
एक अभिभावक ने गुस्से में कहा कि हम अपने बच्चों को स्कूल इसलिए भेजते हैं, ताकि वे पढ़ें और स्वस्थ रहें, लेकिन अगर भोजन ही उनकी सेहत को नुकसान पहुँचाएगा तो हम किस पर भरोसा करें? यह चिंता उन सैकड़ों अभिभावकों की आवाज़ को दर्शाती है, जो अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर परेशान हैं।
जानकारी के अनुसार मध्याह्न भोजन की आपूर्ति के लिए जिम्मेदार एनजीओ पर न केवल खराब गुणवत्ता का भोजन सप्लाई करने का आरोप है, बल्कि कुछ स्कूलों के हेडमास्टर को प्रलोभन देकर मामले को दबाने की कोशिश करने का भी इल्ज़ाम लग रहा है।
सूत्रों का कहना है कि कुछ हेडमास्टर को मामला आपस में सुलझाने के लिए पैसे या अन्य सुविधाएँ ऑफर की गई हैं। यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है, क्योंकि यह बच्चों के स्वास्थ्य के साथ-साथ प्रशासनिक पारदर्शिता पर भी सवाल उठाती है।
मध्याह्न भोजन योजना का उद्देश्य स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने और उनके पोषण को सुनिश्चित करना है। लेकिन खराब गुणवत्ता वाला भोजन इस उद्देश्य को नाकाम कर रहा है।
चिकित्सकों के अनुसार सड़ा हुआ या दूषित भोजन बच्चों में पेट दर्द, उल्टी, दस्त और दीर्घकालिक पोषण की कमी जैसी समस्याएँ पैदा कर सकता है। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ कई बच्चे इस भोजन पर निर्भर हैं। यह लापरवाही उनके शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित कर सकती है।
इस मामले में स्थानीय प्रशासन की ओर से अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। कुछ स्कूलों ने भोजन की आपूर्ति को अस्थायी रूप से रोक दिया है, लेकिन एनजीओ के खिलाफ कोई औपचारिक जाँच शुरू नहीं हुई है। अभिभावकों और स्थानीय समुदाय ने इस मुद्दे को लेकर प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है। उनकी माँग है कि जिम्मेदार एनजीओ पर कड़ी कार्रवाई की जाए और भोजन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए नियमित जाँच की व्यवस्था हो।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि मध्याह्न भोजन की आपूर्ति की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र समिति गठित की जाए, जिसमें स्थानीय अभिभावक, शिक्षक और प्रशासनिक अधिकारी शामिल हों। साथ ही भोजन की गुणवत्ता की जाँच के लिए नियमित ऑडिट और सैंपल टेस्टिंग अनिवार्य की जानी चाहिए। इसके अलावा एनजीओ और स्कूल प्रशासन के बीच होने वाली किसी भी तरह की अनैतिक साठ-गाँठ को रोकने के लिए सख्त नियम लागू करने की जरूरत है।