एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क। श्री निरंतर नारायण सिंह झारखंड सरकार में ज्वायंट सेक्रेटरी थे। कुछ साल पहले रिटायर हुए हैं। उन्होंने झारखंड की ब्यूरोक्रैसी को लेकर फेसबुक पर एक पब्लिक पोस्ट लिखा है। हम यह पोस्ट साभार प्रकाशित कर रहे हैं….
एक आईएएस बनने में जितनी मेहनत लगती है, उससे 10 गुना ज्यादा मेहनत उस पर कार्रवाई में लगती है। ऐसे ही नहीं I A S का मतलब I AM SAFE है।
वह जब मसूरी से निकलता है तो एक ट्रेनी औफिसर की तरह नहीं, बल्कि एक भावी कलक्टर के रूप में निकलता है। जिले में ट्रेनिंग के लिए योगदान देता है तो उसके लिए एक विशेष पदनाम रखा गया है Asst Collector…
उसे बाकायदा चैंबर मिलता है। गाड़ी मिलती है। बाडीगार्ड मिलता है। सर्किट हाउस में कमरा मिलता है। , लैपटॉप मिलता है। फोन मिलता है। वह कलक्टर और एसपी के साथ लंच लेता है।
फिर एसडीओ की पोस्टिंग तक वह ईमानदार बना रहता है। कड़क रहता है। अतिक्रमण हटाता है। डंडे चलाता है और मीडिया के चिंटुओं और पप्पुओं के साथ बैडमिंटन खेल कर अपनी छवि बनाता है। मगर जैसे ही वह कलक्टर बनता है, उसके तेवर बदल जाते हैं। उससे मिलने के लिए स्लिप भेजना पड़ता है।
उसका बॉस आईएएस होता है, उस पर लगे आरोप की जांच आईएएस करता है। उसकी पोस्टिंग आईएएस करता है। उसका प्रोमोशन आईएएस करता है। भारत में कोई भी सेवा ऐसी नहीं है जिसके नियम भी वही निर्धारित करे, आरोप की जांच भी वही करे क्लीन चिट भी वही दे ?
एक डिप्टी कलेक्टर, इंजीनियर, डाक्टर पर कोई आरोप लगे तो सबसे पहले स्पष्टीकरण पूछा जाता है। आईएएस पर आरोप लगे तो उससे प्रतिक्रिया मांगी जाती है। फिर उस प्रतिक्रिया पर संतोष व्यक्त करके मामला शांत हो जाता है।
किसी अन्य सेवा के पदाधिकारी के स्पष्टीकरण को अस्वीकृत करते हुए विभागीय कार्रवाई शुरू कर दी जाती है। जब तक कार्रवाई चलेगी तब तक उसकी प्रोन्नति रोक दी जाएगी।हो सकता है निलंबित कर दिया जाए या कार्मिक विभाग में अटैच कर दिया जाए।
दूसरी ओर पूजा सिंघल का केस ही ले लीजिए। तीन तीन जिलों में मनरेगा के फंड का दुरुपयोग हुआ, निगरानी जांच हुई। मगर प्रोमोशन नहीं रुका और मनचाही पोस्टिंग होते रही।
कार्मिक सचिव से लेकर निगरानी सचिव तक सभी आईएएस अफसर। यहां तक कि तीस साल की सेवा के बाद बना डीजीपी भी 20 साल की सेवा वाले आईएएस गृह सचिव के अधीन है।
आईएएस तभी निलंबित होता है, जब कोर्ट का कोई आर्डर हो। बर्खास्त होने के लिए सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्णय जरूरी है। जैसे चारा घोटाला में हुआ।
आईएएस अफसर वित्तीय अनियमितता में नहीं फंसता है, क्योंकि वह कहीं सीधे चेक पर साइन नहीं करता है। जिले में यह काम नजारत डिप्टी कलेक्टर करता है।
सचिवालय में यह काम किसी डिप्टी सेक्रेटरी के माध्यम से होता है। माइंस में निदेशक है। एक्साइज, जेल सब जगह वह सिर्फ मौखिक आदेश देता है। बाकी काम उसके मातहत करते हैं।
यहां तक कि वह टेंडर कमेटी में भी नहीं होता है। लेकिन इंजीनियर इन चीफ बिना उसकी मर्जी के किसी को टेंडर नहीं दे सकता है।
हजारीबाग के एक उपायुक्त ने अपनी पत्नी के नाम पर उसी जिले में पेट्रोल पंप ले लिया। वह आज एक बड़े विभाग का सचिव है।
एक आईएएस की पत्नी किताब की एजेंसी चलाती है। सरकारी गाड़ी में बैठकर बाडी गार्ड के साथ हर प्राइवेट स्कूल में वह जाती है और अपनी किताबें बेचती हैं। जो नहीं खरीदता उसके स्कूल की चारदीवारी पर अतिक्रमण का नोटिस जारी किया जाता है।
दूसरे महानुभाव की पत्नी कोचिंग चलाती हैं। कोचिंग सेंटर में उपयोग में आने वाली सारी स्टेशनरी उसी प्रेस में छपती हैं जहां सर्व शिक्षा अभियान की पुस्तकें प्रकाशित होती हैं।बिल प्राथमिक शिक्षा निदेशक भरता है।
एक झारखंड कैडर का आईएएस बिना छुट्टी लिए बिना अनुमति लिए अमेरिका चला जाता है और दो साल तक वहीं रहता है। लौट कर आता है तो उस पर कार्रवाई तो दूर उसे बोकारो का डीसी बना दिया जाता है।
शाह फैसल आईएएस टॉपर था। उसने रिजाइन कर दिया सीएए और 370 के विरोध में। फिर उसने कश्मीर में एक राजनैतिक दल भी बना लिया। अब वह फिर से सेवा में वापस आ गया है और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के कार्यालय में पोस्टिंग हो गई है। हरि अनन्त हरि कथा अनंता।
किस सरकार में हिम्मत है कि सर्वशक्तिमान आईएएस लॉबी पर नकेल डाल सके? इसलिए आप लाख पूजा सिंघल, पूजा सिंघल जप लें, इनका कुछ नहीं बिगड़ेगा।
पुनश्च: ऐसा नहीं है कि सारे के सारे आईएएस अफसर भ्रष्ट हैं। इसी झारखंड में अमित खरे भी थे, जिन्होंने चारा घोटाला उजागर किया था। उनकी पत्नी निधि खरे भी थीं, जिन्होंने पूजा सिंघल पर कार्रवाई की अनुशंसा की थी।
डा. नितिन मदन कुलकर्णी भी हैं, जिन्होंने कम से कम चार आईएएस पदाधिकारियों के खिलाफ जांच कर कार्रवाई की अनुशंसा की है। सुधीर त्रिपाठी, सुखदेव सिंह, एन एन सिन्हा, वी एस दुबे जैसे अच्छे पदाधिकारी भी हैं, जिन्होंने कभी समझौता नहीं किया।