
रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज/मुकेश भारतीय)। विगत15 दिसंबर 2025 को पटना के ‘समवाद’ भवन में एक ऐसा दृश्य घटित हुआ, जो न केवल एक महिला डॉक्टर की गरिमा पर सवाल खड़ा कर गया, बल्कि पूरे देश की राजनीतिक नैतिकता को आईने की तरह उजागर कर दिया। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डॉक्टर डॉ. नुसरत परवीन को नियुक्ति पत्र सौंपते हुए अचानक उनका हिजाब खींच लिया और पूछा कि यह क्या है?
यह वीडियो वायरल होते ही सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल गया और विपक्ष ने इसे ‘नारी अपमान’ का प्रतीक बता दिया। लेकिन झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने इस ‘अमानवीय कृत्य’ करार देते हुए एक ऐसा ऑफर दे डाला, जोकि राजनीतिक बवाल का नया अध्याय लिख रहा है। प्रति माह 3 लाख रुपये का वेतन, मनचाही पोस्टिंग, सरकारी आवास और पूर्ण सुरक्षा।
अब क्या यह डॉ. नुसरत के लिए ‘सम्मान की जीत’ है या झारखंड सरकार का वोटबैंक की राजनीति से प्रेरित ‘शो-ऑफ’? आइए, इस घटना की परतें खोलें, जहां सत्ता का दुरुपयोग एक ओर और ‘समावेशी शासन’ का दावा दूसरी ओर आमने-सामने है।
घटना का काला अध्याय पटना से रांची तक का सफरः सब कुछ शुरू हुआ बिहार सरकार के आयोजित AYUSH डॉक्टरों की नियुक्ति समारोह से। डॉ. नुसरत परवीन बिहार लोक सेवा आयोग के माध्यम से चयनित हुईं। मंच पर मुख्यमंत्री के सामने खड़ी थीं। नियुक्ति पत्र सौंपते हुए नीतीश कुमार का हाथ अचानक उनके हिजाब की ओर बढ़ा और क्षण कैमरों में कैद हो गया।
वीडियो में साफ दिखता है कि डॉ. नुसरत स्तब्ध रह गईं, जबकि मंच पर तालियां बज रही थीं। यह केवल एक ‘मजाक’ नहीं था; यह धार्मिक स्वतंत्रता, निजी गरिमा और संवैधानिक अधिकारों (अनुच्छेद 25: धार्मिक स्वतंत्रता) का सीधा उल्लंघन था। विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने इसे ‘नीतीश का असली चेहरा’ बताते हुए कहा कि यह बिहार की बेटियों के साथ सत्ता का घिनौना खेल है।
डॉ. नुसरत की प्रतिक्रिया और भी मार्मिक थी। 20 दिसंबर को निर्धारित जॉइनिंग से इनकार करते हुए उन्होंने कहा कि मैं सेवा करना चाहती थी, लेकिन अपमान सहन नहीं। उनके भाई ने मीडिया से कहा कि यह हमारी बहन का व्यक्तिगत अपमान नहीं, पूरे समुदाय का है। हम समझा रहे हैं, लेकिन घाव गहरा है। इस घटना के बाद बेंगलुरु, लखनऊ और रांची में शिकायतें दर्ज हुईं और नीतीश कुमार की सुरक्षा को अलर्ट पर रखा गया।
लेकिन सवाल यह है कि क्या सत्ता का यह ‘हल्का-फुल्का’ व्यवहार वाकई अनजाने में हुआ या यह लंबे समय से चली आ रही सांप्रदायिक राजनीति का हिस्सा? नीतीश की जनता दल (यूनाइटेड) ने इसे ‘मिसअंडरस्टैंडिंग’ बताया, लेकिन कोई सार्वजनिक माफी नहीं आई, जो खुद में एक नैतिक चूक है।
झारखंड का ‘बड़ा दिल’ न्याय या राजनीतिक चाल? झारखंड सरकार ने इस मौके को गंभीरता से लिया। 19 दिसंबर को रांची के NHM सभागार में स्वास्थ्य विभाग के बहाली समारोह के दौरान स्वास्थ्य मंत्री डॉ. इरफान अंसारी ने एक हिजाब पहनकर आई महिला डॉक्टर को सलाम ठोकते हुए नियुक्ति पत्र सौंपा। जोकि वायरल हो रहा है।
अपनी एक्स पोस्ट में अंसारी ने लिखा है कि हिजाब खींचना सिर्फ एक महिला का नहीं, संविधान और इंसानियत का अपमान है। झारखंड में बेटियों का सम्मान सर्वोपरि है। उनकी ऑफर की डिटेल्स चौंकाने वाली हैं। 3 लाख रुपये मासिक वेतन (बिहार के आयुष डॉक्टरों के औसत 60-80 हजार), पसंदीदा पोस्टिंग, सरकारी फ्लैट, 24×7 सुरक्षा और ‘सम्मानजनक कार्य वातावरण’। अंसारी ने इसे ‘मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का संदेश’ बताया है कि यह नियुक्ति नहीं, सम्मान की बहाली है।
लेकिन यहीं से आलोचना की बौछार शुरू हो गई। सोशल मीडिया पर 10 घंटों में हजारों रिएक्शंस आए, जहां सराहना और तंज दोनों ने बाजी मार ली। समर्थकों ने इसे ‘समावेशी झारखंड’ का प्रतीक बताया। जैसे @abidibhai786 ने लिखा है कि झारखंड ने बिहार को आईना दिखा दिया।
वहीं, आलोचकों ने इसे ‘वोटबैंक की राजनीति’ करार दिया। BJP समर्थक @drharshrai ने कहा कि यह हिंदुओं को मॉक करने का तरीका है 3 लाख प्रतिमाह जनता के पैसे से? @AbhijaAbhijat ने तंज कसा कि अबू का खजाना खाली हो जाएगा, अगर हर हिजाबी को ऐसा ऑफर मिला। और @Ek__Bhartiya_ ने सवाल उठाया है आतंकवादियों के परिवार को भी दोगे?
दरअसल ये कमेंट्स न केवल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को दर्शाते हैं, बल्कि झारखंड की वित्तीय स्थिति पर भी सवाल खड़े करते हैं। राज्य का स्वास्थ्य बजट पहले से ही दबाव में है और यह ‘लक्जरी ऑफर’ टैक्सपेयर्स के लिए बोझ क्यों बने?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम महागठबंधन की रणनीति का हिस्सा है। कांग्रेस कोटे से मंत्री बने अंसारी की यह पहल भाजपा को भी चुभ रही है। खासकर आने वाले विधानसभा चुनावों से पहले। झारखंड सरकार खुद को ‘समावेशी’ साबित करने की होड़ में है, लेकिन क्या यह डॉ. नुसरत की मदद है या मुस्लिम वोटों को लुभाने का ‘शॉर्टकट’?
एक ओर जहां अंसारी ने नीतीश से ‘सार्वजनिक माफी’ की मांग की, वहीं उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा कि संस्कार जीवन का आधार हैं; सत्ता का दुरुपयोग इंसानियत को मारता है। लेकिन आलोचना यह भी है कि झारखंड में डॉक्टरों की कमी (प्रति 10,000 पर केवल 5 डॉक्टर) के बावजूद यह ‘विशेष ऑफर’ अन्य योग्य उम्मीदवारों के साथ भेदभाव क्यों पैदा कर रहा है?

वहीं, झारखंड का ऑफर 3 लाख का वेतन आंकड़ा संदिग्ध है। राज्य के नियमों के अनुसार वरिष्ठ डॉक्टरों को भी 1.5-2 लाख मिलता है। क्या यह ‘सम्मान’ है या ‘खरीद’ का प्रयास? विशेषज्ञों का कहना है कि इससे न केवल बजट पर दबाव पड़ेगा, बल्कि अन्य डॉक्टरों में असंतोष भी फैलेगा।
सोशल मीडिया की बहस इसकी गहराई दिखाती है। सराहना वाले कमेंट्स (जैसे @mohdsuhail8211: बेहतरीन कदम) अल्पसंख्यक समुदाय की पीड़ा को प्रतिबिंबित करते हैं, जबकि आलोचना (जैसे @RajMalhotr8073: धार्मिक उन्माद फैला रहे) हिंदुत्व की राजनीति को।
एक यूजर @KumarRohit_SMP का व्यंग्य तो कटाक्ष से भरपूर है कि हर हिजाबी को नीतीश से हिजाब खिंचवा लो, झारखंड में 3 लाख पक्का! यह दिखाता है कि कैसे एक घटना पूरे विमर्श को सड़क पर ला देती है।
फिलहाल, डॉ. नुसरत की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन एक्सपर्ट मीडिया न्यूज को सूत्रों से पता चला है कि झारखंड स्वास्थ्य विभाग उनसे संपर्क में है। क्या वे इस ऑफर को स्वीकार करेंगी या यह राजनीतिक बवाल और गहरा जाएगा? आने वाले दिन बताएंगे।
लेकिन एक बात साफ है कि यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि सत्ता में बैठे लोग गरिमा को ‘मजाक’ कैसे बना सकते हैं और ‘सम्मान’ का नाम देकर वोट कैसे खरीदे जा सकते हैं? अब झारखंड का यह संदेश दिया स्थायी बदलाव लाएगा या सिर्फ चुनावी ड्रामा साबित होगा? समय ही बताएगा।
(यह रिपोर्ट सोशल मीडिया विश्लेषण, आधिकारिक बयानों और विशेषज्ञों के विचारों पर आधारित है।)







