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Bihar Assembly Elections-2025: परिवारवाद की हमाम में NDA और INDIA दोनों नंगे!

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज /मुकेश भारतीय)। Bihar Assembly Elections-2025: बिहार की राजनीति में परिवारवाद का जहर इतना फैल चुका है कि आगामी विधानसभा चुनाव-2025 में सभी प्रमुख गठबंधन और दल इसकी गिरफ्त में फंसे नजर आ रहे हैं। चाहे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) हो या इंडिया गठबंधन, हर कोई राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने में लगा है।

टिकट वितरण में परिवार के सदस्यों, रिश्तेदारों और राजनीतिक घरानों से जुड़े लोगों को प्राथमिकता दी गई है, जिससे सवाल उठ रहे हैं कि क्या बिहार की जनता को वास्तव में नए चेहरे और विचारों की जरूरत है, या सिर्फ ‘राजनीतिक राजपरिवारों’ की सत्ता की भूख?

इस चुनाव में जनता दल (यूनाइटेड) (JDU), भारतीय जनता पार्टी (BJP), राष्ट्रीय जनता दल (RJD), कांग्रेस, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM), राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) (LJP(R)) और यहां तक कि नए-नए उभरते दल जैसे जन सुराज और भाकपा भी परिवारवाद की इस दौड़ में शामिल हो गए हैं। आइए, विस्तार से देखते हैं कि कैसे इन दलों ने अपने टिकटों को ‘फैमिली अफेयर’ बना दिया है।

JDU का परिवारवाद: पूर्व नेताओं की संतानों पर दांव

नीतीश कुमार की अगुवाई वाली JDU ने इस बार परिवारवाद को खुलकर अपनाया है। पार्टी ने कई पूर्व मंत्रियों, सांसदों और विधायकों की संतानों को मैदान में उतारा है। उदाहरण के तौर पर सांसद लवली आनंद के बेटे को नवीनगर सीट से टिकट मिला है। पूर्व मंत्री मंजू वर्मा के बेटे को चेरिया बेरियापुर से उम्मीदवार बनाया गया है। पूर्व सांसद अरुण कुमार के बेटे घोसी से लड़ेंगे। गायघाट से कोमल सिंह प्रत्याशी हैं, जबकि उनकी मां वीणा सिंह LJP की सांसद हैं।

वहीं चकाई से पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के बेटे, मांझी से पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के बेटे, जमालपुर से पूर्व सांसद ब्रह्मानंद मंडल के बेटे, मोरवा से पूर्व विधायक रामचंद्र सहनी के पुत्र, अमरपुर से पूर्व विधायक जनार्दन मांझी के पुत्र, इस्लामपुर से पूर्व विधायक राजीव रंजन के पुत्र, राजगीर से पूर्व राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य के पुत्र, वारिसनगर से विधायक अशोक सिंह के बेटे, बरौली से पूर्व मंत्री ब्रजकिशोर सिंह के बेटे, कुशेश्वरस्थान से पूर्व मंत्री डॉ. अशोक राम के बेटे, सकरा से विधायक अशोक चौधरी के बेटे, मीनापुर से पूर्व मंत्री दिनेश कुशवाहा के बेटे, विभूतिपुर से पूर्व विधायक रामबालक सिंह की पत्नी रवीना कुशवाहा और बरबीघा से पूर्व विधायक आरपी शर्मा के बेटे को टिकट दिया गया है।

यह सूची बताती है कि JDU ने ‘विरासत वाली राजनीति’ को अपनी रणनीति का केंद्र बना लिया है, जहां अनुभव के नाम पर परिवार को तरजीह दी जा रही है।

BJP का ट्रेंड: पूर्व नेताओं की बेटियां और बेटे आगे

बीजेपी भी परिवारवाद से अछूती नहीं रही। पार्टी ने कई सीटों पर राजनीतिक घरानों से जुड़े चेहरों को चुना है। तारापुर से पूर्व मंत्री शकुनी चौधरी के बेटे, झंझारपुर से पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा के बेटे, जमुई से पूर्व मंत्री दिग्विजय सिंह की बेटी, औरंगाबाद से पूर्व सांसद गोपाल नारायण सिंह के बेटे, बांकीपुर से पूर्व विधायक नवीन किशोर सिन्हा के बेटे, औराई से पूर्व सांसद अजय निषाद की पत्नी, तरारी से पूर्व विधायक सुनील पांडेय के बेटे, प्राणपुर से निशा सिंह, परिहार से गायत्री देवी, बड़हरा से राघवेंद्र प्रताप सिंह, दीघा से संजीव चौरसिया, मधुबन से राणा रणधीर, गोरियकोठी से देवेशकांत सिंह जैसे नाम भी राजनीतिक परिवारों से आते हैं।

बीजेपी का यह कदम दिखाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर ‘परिवारवाद विरोधी’ होने का दावा करना बिल्कुल बेईमानी है और यह पार्टी विधानसभा चुनाव स्तर पर भी उसी राह पर परिवारवाद को ही बढ़ावा दे रही है।

HAM, RLM और LJP(R) यानि परिवार पहले और बाद में पार्टी

हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) ने केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की समधिन ज्योति देवी को बाराचट्टी और बहू दीपा कुमारी को इमामगंज से उतारा है। मांझी का बेटा बतौर विधान परिषद निवर्तमान मंत्री है। टिकारी से पूर्व मंत्री अनिल कुमार और अतरी से उनके भतीजे रोमित कुमार को टिकट मिला दिया।

उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा और चिराग पासवान की लोजपा भी पीछे नहीं

राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) को NDA में छह सीटें मिलीं है। जिसमें उपेंद्र कुशवाहा ने अपनी पत्नी स्नेहलता को सासाराम और मंत्री संतोष सिंह के भाई आलोक सिंह को दिनारा से उतारा। उजियारपुर से प्रशांत पंकज के पिता पूर्व मंत्री राम लखन महतो हैं।

लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के चिराग पासवान ने अपने भांजे सीमांत मृणाल को गरखा से, गोविंदगंज से पूर्व विधायक राजन तिवारी के भाई राजू तिवारी को, और ब्रह्मपुर से पूर्व विधायक सुनील पांडेय के भाई हुलास पांडेय को टिकट दिया।

इन छोटे दलों में परिवारवाद और भी स्पष्ट है, जहां पार्टी प्रमुख खुद अपने रिश्तेदारों को आगे कर रहे हैं।

RJD का ‘फैमिली फर्स्ट’: तेजस्वी से आगे लालू की विरासत

राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में परिवारवाद की जड़ें सबसे गहरी हैं। तेजस्वी प्रसाद यादव खुद पूर्व सीएम लालू प्रसाद के बेटे हैं। पार्टी ने  शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा को रघुनाथपुर, शिवानंद तिवारी के बेटे राहुल तिवारी को शाहपुर, पूर्व मंत्री जगदानंद सिंह के बेटे अजीत सिंह को रामगढ़, पूर्व मंत्री कांति सिंह के बेटे ऋषि कुमार को ओबरा, जहानाबाद सांसद सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ सिंह को बेलागंज, बांका के JDU सांसद गिरधारी यादव के बेटे चाणक्य प्रकाश रंजन को बेलहर को टिकट दिया है।

वहीं बोधगया से राजेश कुमार के बेटे कुमार सर्वजीत, जहानाबाद से पूर्व सांसद जगदीश शर्मा के बेटे राहुल शर्मा, केवटी से अली अशरफ फातमी के बेटे फराज फातमी, कुर्था से पूर्व मंत्री मुंद्रिका यादव के बेटे सुदय यादव, शिवहर से रघुनाथ झा के पौत्र नवनीत झा, परिहार से रामचंद्र पूर्वे की बहू स्मिता पूर्वे, जोकीहाट से पूर्व मंत्री तस्लुमुद्दीन के बेटे शाहनवाज आलम को मैदान में उतारा है।

वहीं उजियारपुर से पूर्व मंत्री तुलसी प्रसाद मेहता के बेटे आलोक मेहता, मोकामा से पूर्व सांसद सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी, लालगंज से मुन्ना शुक्ला की बेटी शिवानी शुक्ला, गोविंदपुर से कौशल यादव की पत्नी पूर्णिमा देवी, नवादा से विधायक पूर्णिमा यादव के पति कौशल यादव, कुटुंबा से पूर्व मंत्री दिलकेश्वर राम के बेटे राजेश राम, नरकटियागंज से पूर्व सीएम केदार पांडेय के पौत्र शाश्वत केदार, हिसुआ से पूर्व मंत्री आदित्य सिंह की बहू नीतू सिंह को टिकट दिया है।

RJD का यह पैटर्न दिखाता है कि लालू परिवार की विरासत अब पूरे दल में फैल चुकी है।

अन्य दल भी पीछे नहीं: जन सुराज और भाकपा का रुख

नए दल जन सुराज ने पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह की बेटी लता सिंह को अस्थावां और पूर्व सीएम कर्पूरी ठाकुर की पोती जागृति ठाकुर को मोरवा से उतारा है। भाकपा भी परिवारवाद में शामिल है, हालांकि विवरण कम हैं।

कुछ दिलचस्प मामले: पति-पत्नी का अदला-बदली

गौड़ाबोराम से BJP ने सुजीत कुमार सिंह को उतारा है, जबकि उनकी पत्नी स्वर्णा सिंह वर्तमान विधायक हैं। मोकामा से अनंत सिंह JDU से लड़ रहे हैं, जबकि 2020 में उनकी पत्नी RJD से जीती थीं।

क्या बदलेगी बिहार की राजनीति?

यह चुनाव बताता है कि बिहार में परिवारवाद अब एक ‘ट्रेंड’ नहीं, बल्कि ‘ट्रेडिशन’ बन चुका है। जनता के मुद्दे जैसे बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य पीछे छूट रहे हैं, जबकि राजनीतिक घराने आगे बढ़ रहे हैं। क्या मतदाता इस बार बदलाव लाएंगे या परिवारवाद की यह जड़ें और मजबूत होंगी? चुनाव परिणाम ही बताएंगे।

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