23 मई को बिहार में टीवी एक्जिट पोल की ढोल बजेगी या फूटेगी!
“जदयू व भाजपा 17-17 तो लोजपा 6 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। दूसरी ओर महागठबंधन में राजद के अलावा कांग्रेस, रालोसपा, हम , वीआईपी व माले शामिल हैं। राजद 19, कांग्रेस 9, रालोसपा 5, वीआईपी व हम 3-3 तो माले ने एक सीट पर चुनाव लड़ा है…”
पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। लोकसभा चुनाव संपन्न होते ही सूबे में प्रत्याशियों के जीत-हार को लेकर चाय-पान की दुकानों पर समर्थक चर्चा में मशगूल रहे। कोई जातीय आंकड़े को आधार मानकर अपने प्रत्याशी की जीत बता रहा है, तो कोई पार्टी के वोट बैंक पर विश्वास जमाए हुए है।
समर्थकों का आलम यह है कि वह अपने-अपने प्रत्याशी की जीत के जीत का दावा कर रहे हैं। बूथों पर मतों का ग्राफ भले ही उनके पक्ष में न रहा हो, मगर वह हार मानने को तैयार नहीं हैं।
अपने-अपने पार्टी के नेताओं की जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं। हार-जीत को अपने प्रत्याशी को बूथ पर पड़े मतदान का आंकड़ा बताते हुए जीत पक्की की गारंटी भी देते दिखे।
एनडीए समर्थक अपने प्रत्याशी को भारी मतों से जीतने का दावा कर रहे हैं जबकि महागठबंधन समर्थक अपने प्रत्याशी की जीत निश्चित मान रहे है। कहीं-कहीं तो लोग जीत हार की चर्चा पर उलझ भी रहे हैं, अपने प्रत्याशियों को जीत मान दूसरे दलों के लोगों से हार जीत की बाजी भी लगाते रहे। हर गांव में चुनावों के नतीजों की चर्चा से माहौल रौचक हो गया है।
मतदान के बाद सोमवार को प्रखंड मुख्यालय से लेकर ग्रामीण इलाकों की बाजारों में चुनाव के बाद परिणाम को लेकर बहस तेज हो गई। हर कोई अपने गांव के बूथ पर पड़े वोटों की चर्चा में मशगूल रहा। वहीं से बैठकर अपने प्रत्याशियों को भरोसा दिलाते दिखे कि उन लोगों की मेहनत कामयाब है। फिलहाल कौन प्रत्याशी जीत रहा है, इस बात का फैसला 23 मई को होगा।
रविवार को आखिरी चरण का मतदान समाप्त होते ही बिहार की राजनीतिक पार्टियां गुना-भाग में जुट गई हैं। किस दल और गठबंधन को कितनी सीटें मिलेंगी, इसका आकलन सभी दलों के नेताओं ने शुरू कर दिया।
वैसे मतगणना होने तक सभी दलों के नेता सभी सीटों पर जीत-हार का दावा करते रहेंगे, लेकिन कार्यकर्ता व समर्थकों से फीडबैक लेकर कुछ निश्चिंत दिखे तो कुछ की बेचैनी बढ़ गई है।
दरअसल, इस बार पिछले चुनाव की तुलना में दल व समीकरण सब कुछ अलग-अलग थे। पिछली बार जो साथ थे, इस बार विरोध में हो गए जबकि जो विरोध में थे, वे साथ हो गए।
पिछले चुनाव में एनडीए में भाजपा, लोजपा, रालोसपा व हम एक साथ थी। जबकि 2014 में जदयू की राहें जुदा थी। वहीं राजद व कांग्रेस एक गठबंधन में था। इस कारण पिछला चुनाव बिहार में त्रिकोणीय संघर्ष वाला रहा।
हालांकि इस त्रिकोणीय संघर्ष का लाभ एनडीए को मिला। एनडीए को 31 सीटें मिलीं। इसमें भाजपा को 22, लोजपा को छह और रालोसपा को तीन सीटें मिलीं। वहीं विपक्षी खेमे में राजद को चार, कांग्रेस व जदयू को दो-दो तो एनसीपी के हिस्से में एक सीट आई थी।
वहीं, इस बार के लोकसभा चुनाव का समीकरण ऐसा बना कि कुछेक सीटों पर बागियों को छोड़ दें तो प्राय: सभी सीटों पर सीधा मुकाबला एनडीए व गठबंधन के बीच ही रहा। एनडीए में जदयू, भाजपा व लोजपा हैं।
मतदान समाप्त होते ही सभी दलों के नेता अपने-अपने इलाकों से जमीनी फीडबैक लेने में जुट गए। खासकर अंतिम चरण में आठ संसदीय क्षेत्रों में हुए मतदान पर पार्टी नेता क्षेत्र से फीडबैक लेते रहे।
पार्टी मुख्यालयों में बैठे नेता इन क्षेत्रों से मिले फीडबैक को समेकित करते रहे। अंतिम चरण का चुनाव होने के कारण सभी क्षेत्रों को मिलाकर पार्टी नेता उसे अपने-अपने दल के खाते में जोड़ते रहे। फीडबैक का असर भी देखा गया।
जो नेता चुनाव संपन्न होने तक सभी 40 सीटों पर जीत का दावा कर रहे थे, मतदान समाप्त होने के बाद आंकड़ों में कुछ कमी कर दी।
हालांकि दावों में अधिक कमी नहीं आई। टीवी चैनलों के एक्जिट पोल के मुताबिक एनडीए के नेता 30 -35 सीटों पर जीत की खिलखिलाहट लिए हैं, वहीं मगठबंधन के लोग इसे खारिज करते हुए एक बड़ी जी का दावा करते देखे जा रहे हैं। वैसे यह तो 23 मई को ही पता चल सकेगा कि किस दल और गठबंधन के दावों की हकीकत क्या है।