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बार बालाएं भी न जुटा सकी जदयू वर्कर, नीतीश हुए ट्रोल

बार बालाएं भी न जुटा सकी जदयू वर्कर, नीतीश हुए ट्रोल

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित जदयू वर्कर कांफ्रेस में भीड़ को लेकर बिहार में एक नई राजनीतिक बहस शुरु हो गई है।

राजद नेता शिवानंद तिवारी ने रैली में आयी भीड़ पर तंज कसते हुए नीतीश कुमार को बधाई देकर राजनीति का तापमान और बढ़ा दिया है। राजीनित तो होनी भी चाहिए? क्योंकि बिहार में इसी वर्ष चुनाव होने हैं। चुनाव से पहले पार्टी ने अपनी शक्ति प्रदर्शन के लिए जो सम्मेलन का आयोजन किया, बमुश्किल 15 हजार लोग आए।

जदयू का कहना है कि यह कार्यकर्ता सम्मेलन था नहीं कि रैली। लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस पार्टी में 70 विधायक, 34 एमएलसी, 15 सांसद हो और पार्टी में कार्यकर्ता 15 हजार हो।JDU WORKER NITISH BAR BALA

ऐसे में पार्टी का विधान सभा में 200 सीट लाने का दावा कहां पर ठहरता है। राजनीतिक विशलेषक इस रैली की तुलना तेजस्वी के 23 फ़रवरी को भेटनरी कॉलेज के मैदान में नेता प्रतिपक्ष की बेरोज़गारी हटाओ यात्रा का शुभारंभ से कर रहे हैं।

कुछ दिन पहले ही इसी मैदान में हुई कन्हैया की रैली से भी कम संख्या में आए कार्यकर्ताओं से पार्टी के मुखिया नीतीश कुमार बहुत खुश तो नहीं होंगे। कहा जा रहा है कि पार्टी में इसको लेकर मंथन का दौर चल रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह भीड़ चुनाव से पहले का संकेत तो नहीं।

गांधी मैदान से परेशान करने वाली उठ रही तस्वीरों पर पार्टी के नेताओं ने अपने अपने तर्क दिए हैं। मसलन यह सक्रिय कार्यकर्ता सम्मेलन था। धूप की वजह से लोग किनारे में चले गए थे। भीड़ आयी थी लेकिन लोग पटना घूमने लगे। मतलब कोई भी तर्क तार्किक नहीं दिखता ।

सवाल यह है दल के बड़े नेताओं के द्वारा किये गए उन दावों का क्या हुआ जिन्होंने कहा था कि 2 से ढाई लाख कार्यकर्ता जुटेंगे। क्या यह संगठनकर्ताओं के अति आत्मविश्वास की वजह तो नहीं।JDU WORKER NITISH

सवाल यह भी है कि अगर कार्यकर्ता सम्मेलन ही करना था तो फिर गांधी मैदान का चुनाव क्यों? गांधी मैदान की क्षमता से तो जदयू के वरिष्ठ नेता भी वाकिफ थे,फिर यह ब्लंडर कैसे हुआ?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इसके जिम्मेदार जदयू नेताओं का अति आत्मविश्वास है। नेताओं का एक दूसरे पर भीड़ जुटा लेने वाले भरोसे ने पार्टी और मुखिया की भदद पिटवा दी।

बड़े दावों का हवा यूं निकल जाने की समीक्षा जरूर की जाएगी लेकिन यह तय है कि मंत्री, विधायको और सांसदों ने इस सम्मेलन के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखाई। यह सारे लोगों के लिये नहीं कहा जा सकता लेकिन जनप्रतिनिधियों की एक बड़ी संख्या सक्रिय नहीं रही।

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