Home देश राजगीर अग्निकांड में दलाल-प्रशासन की गठजोड़ हुए यूं बेनकाब

राजगीर अग्निकांड में दलाल-प्रशासन की गठजोड़ हुए यूं बेनकाब

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। राजगीर गर्म कुंड के पास अनाधिकृत रुप से झुग्गी झोपड़ी बना कारोबार कर रहे कथित फुटपाथी दुकानदारों में कोई साफ तौर पर यह बताने को तैयार नहीं है कि इतनी बड़ी आग लगी कैसे कि उनकी 52 से उपर दुकाने चंद मिनटों में राख कैसे हो गई।

विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि सबसे पहले आग बीच की एक दुकान में अचनाक गुब्बार सी आग लगी और तेजी से फैलते हुये सारी दुकानों को अपनी आगोश में ले लिया। उसमें छोटे-बड़े फुटपाथी कारोबियों के सब कुछ भस्म हो गये।RAJGIR FIR CRIME 1 1

जानकारी मिली है कि जिन 52 फुटफाथी दुकानदारों की रोजी-रोटी पलक झपकते स्वाहा हुई है, उन्हें अपना कारोबार करने के लिये प्रशासन द्वारा कोई बंदोवस्ती या आदेश निर्गत नहीं किये गये थे। यह जमीन रजौली संगत की थी, जिसे सरकार ने न्यायालय के जरिये अपने अधीन कर लिया।

लेकिन बाद में इस कुछ असमाजिक तत्वों ने स्थानीय पुलिस-प्रशासन की सांठगांठ से जबरिया कब्जा कर फुटपाथी दुकानदारों को बसा रखा था और एक बंधी-बंधाई मोटी रकम वसूल रहे थे। जिनकी पहचान कर कड़ी कार्रवाई करने की जरुरत है।

बता दें कि यहां जितने भी दुकाने थी, उसमें काफी ज्वलनशील सामग्री थे। लाह-लहठी की चूड़ियां से लेकर प्लास्टिक-कपड़े के खिलौने आदि समेत छोटे-बड़े गैस सिलेंडर रखे हुये थे। आनन-फानन में बड़े-बड़े गैस सिलेंडर तो किसी तरह हटा लिये गये लेकिन, कई छोटे-छोटे सिलेंडर ब्लास्ट हुये। आसपास के झुलसे दरख्तों से आग की भयावहता साफ नजर आती हैं।

सबाल उठता है कि क्या पुलिस-प्रशासन की ओर से इस तरह के कारोबार की अनुमति प्राप्त थी। अगर नहीं तो फिर किस शह पर राजगीर के हृदयस्थली गर्म कुंड प्रक्षेत्र में यह सब वर्षों से चल रहा था।

उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष मार्च,2017 में भी राजगीर गर्म कुंड के पास आगलगी की घटना हुई थी। लेकिन इस बार उस हिस्से में आग लगी है, जो पिछली बार बच गये थे। रोचक पहलु है कि पिछली बार बचे सारी दुकानें इस बार अगलगी के शिकार हो गये।

बहरहाल, राजगीर गर्म कुंड के नजदीक जिस तरह के भयावह आग लगी, उससे जान-माल का भारी नुकसान हो सकती थी। इसके लिये फुटपाथी दुकानदारों से तय वसुली करने वाले कोई संघ हो या व्यक्ति के साथ जिम्मेवार पुलिस-प्रशासन के लोग अधिक जिम्मेवार हैं, क्योंकि उन्हें भी काली कमाई के आगे कुछ भी दिखाई नहीं देता है।

यहां के जनप्रतिनिधियों की बात तो और भी निराली है। सबने राजगीर के मनोरम वादियों को सिर्फ दोहन करने-लूट खसोंट मचाने का एकमात्र जरिया मान लिया है।

 

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