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तारिक अनवर ने राफाएल पर सांसदी छोड़ एक तीर से यूं साधे कई निशाने

बिहार की राजनीति में तारिक अनवर एक मंझे हुए नेता हैं। उन्हें पता है कि कौन सा फैसला कब लेना है। सो उन्होंने अपनी पार्टी नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और सांसदी से एक साथ इसलिए इस्तीफा दे दिया कि उनके राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद पवार ने राफाएल विमान खरीद में पीएम मोदी को क्लीन चिट दे दिया है।

तारिक अनवर राजनीतिज्ञ हैं। ठीक वैसे ही जैसे शरद पवार हैं। शरद पवार ने ऐसे समय में नरेंद्र मोदी का बचाव किया है जब उनके ऊपर रफाएल सौदे में अनिल अम्बानी को 30 हजार करोड़ रुपये का लाभ पहुंचाने का आरोप लगा है।

tariq.anwarयह आरोप कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आरजेडी समेत तमाम वाम दल लगा रहे हैं। इन आरोपों का अब तक नरेंद्र मोदी ने कोई जवाब नहीं दिया है। ऐसे में तारिक अनवर की पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार का उनके बचाव में आ जाना मोदी के लिए डूबते को तिनके का सहारा जैसा है।

दूसरी तरफ कटिहार से लगातार सांसदी करने वाले तारिक अनवर अपने वोटरों की साहनुभूति बटोरने के फिराक में थे। समझा जाता है कि उन्होंने यह सोच रखा था कि नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी, जिसका वजूद बिहार में सिर्फ उनके दम पर है, उसका बोझ उतार देना चाहिए।

इस लिए ऐसे समय में जब रफाएल सौदा पूरे देश में तूफान मचा रहा है तो इस तूफान की  लहरों को वह अपने लिए वोटरों की सहानुभूति की लहर में बदलना चाहते हैं।

दसअसल तारिक अनवर ने 19 वर्ष पहले की अपनी भूल को सुधारने की शुरुआत कर दी है। उन्होंने 1999 में कांग्रेस को छोड़ दिया था। तब वह शरद पवार और पीए संगमा के साथ कांग्रेस से निकल आये थे।

तब इन तीनों ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस छोड़ा था। इस दौर में तारिक अनवर कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर के कद्दावर नेता बन चुके थे। बिहार की सियासत में तारिक अनवर की तो तूती बोलती ही थी।

लेकिन शरद के साथ संबंधों को तरीजह देने के चक्कर में तारिक एक तरह से बहक गये और अपनी सियासी ऊंचाई को हमेशा के लिए खो दिया। इन 19 वर्षों में तारिक अनवर कभी राज्य सभा तो कभी लोक सभा के सदस्य तो बनते रहे, पर कभी कद्दावर नेता की छवि नहीं गढ़ पाये।

ऐसे में बूढ़े और बीमार हो चुके शरद यादव की निजी महत्वकांक्षा को अपने सर पर ढ़ोने का कोई तुक नहीं था, लिहाजा तारिक अनवर ने उस बोझ को उतार फेंकना ही बेतहर समझा।

तारिक अनवर को पता है कि मौजूदा सियासत में नरेंद्र मोदी को राष्ट्रीय स्तर पर अगर कोई अकेला चुनौती पेश कर रहा है तो वह राहुल गांधी हैं। राफाएल डील पर राहुल की आक्रामकता और साहसिक रणनीति को देश के बड़े वर्ग का समर्थन मिल रहा है।

इसी बीच जैसे ही शरद पवार ने इस मामले में मोदी को क्लीन चिट दे कर उनका ढाडस बढ़ाने की कोशिश की, तो इसका सबसे बड़ा आघात राहुल को ही पहुंचा। क्योंकि उनके आक्रमण से त्रस्त मोदी और उनकी सरकार को शरद के बयान से ‘डूबते को सहारा’ जैसी राहत पहुंची।

साथ ही इस गर्म लोहे पर तारिक ने तगड़ा हथौड़ा मार कर राहुल गांधी को खुश कर दिया है। ऐसे में लाजिमी तौर पर राहुल, तारिक को तरजीह दे सकते हैं।

तारिक अनवर एक जमाने में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में से थे। वह बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के साथ इंडियन युथ कांग्रेस के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। एक जमाने में सत्येंद्र नारायण सिन्हा की जगह वह मुख्यमंत्री बनते बनते रह गये थे। वे यूपीए सरकार में लगातार दो टर्म केंद्रीय राज्य मंत्री की भूमिका निभा चुके हैं।

ऐसे में राहुल उनके कांग्रेसी प्रोफाइल को अच्छी तरह समझते हैं। वैसे बिहार में कांग्रेस अगर कहीं मजबूत है तो वह सीमांचल का क्षेत्र है। इस क्षेत्र से उसके कम से कम आठ-से दस विधायक और एक एमपी भी हैं।

अगर तारिक अनवर कांग्रेस में वापसरी करते हैं तो पूरे सीमांचल में कांग्रेस का किला मजबूत हो जायेगा। और इस तरह तारिक अनवर का कद राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत बन सकता है।

कटिहार लोकसभा का अनेक बार प्रतिनिधित्व करते हुए तारिक अनवर ने जहां लोकप्रियता बटोरी है वहीं एंटि एंकम्बेंसी और अपने विरोधियों की एक मजबूत फौज भी खड़ी कर ली है।

एनसीपी जैसी उस पार्टी का जिसका वजूद कटिहार के अलावा कहीं नहीं है, उसमें रहते हुए उनकी पार्टी का उनकी जीत में कभी कोई योगदान नहीं रहा। ऐसे में अगर तारिक अनवर ने इस्तीफा दे दिया है तो उनको अनेक गैरभाजपा पार्टियां हाथों हाथ लेना चाहेंगी। जिससे 2019 के चुनाव में उनकी जीत की संभावना बढ़ जायेगी।

कटिहार एक ऐसा लोकसभा क्षेत्र है, जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 44 प्रतिशत के करीब है। ऐसे में मोदी का रफाएल डील में घोटाले करने का आरोप लगने के बाद तारिक अनवर द्वारा इस्तीफा देने से वे वोटर भी तारिक के प्रति खीचे चले आ सकते हैं, जो बीते साढे चार वर्षों में उनसे नाराज हो गये थे।

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