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ओडीएफ में लगी घुन को थोथी दलील से यूं छुपा रहे करायपरसुराय बीडीओ

खुले में शौच मुक्त गांव बनाने की शासकीय मुहिम में भ्रष्टाचार की घुन लग गई है। अमुमन समूचे नालंदा जिले में एक ही तस्वीर नजर आती है, लेकिन करायपरसुराय प्रखंड में जिस तरह के मामले उभरकर सामने आये हैं, वह सब कुछ तार-तार कर जाती है।”

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। नालंदा जिले के करायपरसुराय प्रखंड अवस्थित मकरौता पंचायत के रूपसपुर गांव के वार्ड संख्या 7 में  लाभुक सबिता देवी कहती है कि उसने अपने जेवरात गिरवी रख शौचालय का निर्माण पांच माह पूर्व में बनाये थे। लेकिन अब तक अनुदान की राशि भुगतान नही हुई। उधर जेवरात पर सूद भी चल रही है।nalanda odf cruption 3

इस पर प्रखंड विकास पदाधिकारी प्रेम राज का कहना है कि मकरौता पंचायत के वार्ड संख्या 7 के सविता देवी जेवर जेवर गिरवी रख शौचालय निर्माण करने की जो बात कह रही है, वह गलत है।

प्रखंड विकास पदाधिकारी के अनुसार उनको जांच में पता चला कि शौचालय निर्माण के लिए जीविका समूह द्वारा 12 हजार रुपया दिया गया है। पंचायातो में 75 प्रतिशत शौचालय का निर्माण होने के बाद अनुदान की राशि भुगतान होती है।

हालांकि लाभुक सबिता देवी अपनी समस्या पर अडिग है कि प्रखंड विकास पदाधिकारी झूठ बोल रहे हैं और उसने अपना जेवर-पाती गिरवी रख कर्ज लेकर शौचालय का निर्माण किया है।

बहरहाल, बात कुछ भी हो। लेकिन इतना तो तय है कि जिम्मेवार अफसरों द्वारा नियमों की आड़ में खुले में शौच मुक्त गांव की जमीन पर मनमानी ही नहीं हो रहे, बल्कि अपनी लापरवाहियों को दूसरे पहलु से ढंकने की हर संभव कोशिश किये जा रहे।

करायपरसुराय के प्रखंड विकास पदाधिकारी को इतनी समझ तो होनी ही चाहिये कि कर्ज कर्ज होती होती है। चाहे कोई महाजन से अपना जेवर-पाती गिरवी रख के ले या जीविका जैसे संस्था से। ब्याज दोनों में लगता है। जीविका एक रुपया प्रति माह प्रति सैकड़ा के हिसाब से सूद वसूलती है। इस हिसाब से 12000 रुपये का ब्याज होता है 120 रुपये। यानि एक साल में 1440 रुपये।

वेशक यह राशि किसी अफसर-जनप्रतिनिधि की काली कमाई पर कोई फर्क न डाले, लेकिन एक आम ग्रामीण-गरीब महिला के लिये काफी मायने रखती है।

सबसे रोचक बात कि करायपरसुराय प्रखंड के जिस लाभुक ने तय एजेंसी के माध्यम से शौचालय का निर्माण कराया है, उसका भूगतान दो से तीन दिन में कैसे हो जा रहा है। क्या उसके लिये अलग कायदे बनाये गये हैं। इसका बेहतर जबाव प्रेम राज सरीखे विकास पदाधिकारी के पास ही है कि इस गड़बड़झाले में उनकी खुद कितनी भागीदारी है।

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