एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़ नेटवर्क डेस्क। ‘ना, ना करते प्यार तुम्ही से कर बैठे’ वाली बात सियासत में चलती रहती है। केंद्र सरकार में मंत्रिमंडल का विस्तार होना है। बिहार एनडीए में अभी सब कुछ ठीक नहीं लग रहा है।
उधर विपक्ष बिहार में सता परिवर्तन के दावे कर रहा है। जहां नीतीश चिराग को निपटाने में लगे हुए हैं, वहीं उनकी सियासत में धमाका होने की अटकलें जोरो पर हैं। बिहार की राजनीति भीतर ही भीतर खदक रही है।
इस टूट में जदयू की भूमिका बताई जा रही है। जदयू ने मंत्रिमंडल में अपनी भागीदारी के लिए ताल ठोक रखी है। जबकि वह नहीं चाहती हैं कि चिराग केंद्र में मंत्री बनें, क्योंकि बिहार चुनाव में जदयू को क्षति पहुंचाने के पीछे लोजपा को जिम्मेदार माना गया, इसलिए आपरेशन झोपड़ी को अंजाम दिया गया।
गौरतलब रहे कि पिछले मंत्रिमंडल विस्तार में एनडीए सरकार में सहयोगी जदयू ने उचित भागीदारी नहीं मिलने से नाराज़ मंत्रिमंडल में शामिल नहीं हो सकी थीं। लेकिन इस बार जदयू के सुर बदले हुए दिख रहे हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि एनडीए के सहयोगियों को प्रतिनिधित्व सांकेतिक नहीं, बल्कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। उनका इशारा साफ समझा जा सकता है कि उन्हें दो से ज्यादा मंत्री चाहिए।
वर्तमान परिस्थिति में श्री सिंह का बयान पार्टी लाइन से हटकर माना जा रहा है। उनके बयान के बाद यह लगने लगा है कि मंत्रिमंडल में जगह पाने के लिए अन्य सहयोगी दलों से ज्यादा जदयू लालायित हैं। जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के इस बयान के बाद वह खुद अपने दल में घिरते दिख रहे हैं।
जदयू के नेताओं का मानना है कि केंद्र में जदयू को मंत्रिमंडल में शामिल करने की बात भाजपा की तरफ से आता तो कोई बात होती।
वैसे भी जदयू नेताओं ने साफ कर दिया है कि बिहार में कम सीट के बाबजूद नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने हैं। यही बड़ी बात है। राष्ट्रीय अध्यक्ष की मांग दबाब की राजनीति है, जो शोभा नहीं देती है। क्योंकि मंत्रिमंडल में सहयोगियों के साथ से भाजपा कभी पीछे नहीं हटी है।
देखा जाए तो बंगाल चुनाव में भाजपा की हार के बाद एनडीए के सहयोगी अपनी मांगों को लेकर और मुखर हुए हैं। यूपी चुनाव के मद्देनजर नीतीश कुमार की भी एक सीमित अहमियत है।
ऐसे में जदयू से दो या तीन मंत्री बनाने की इच्छा सार्वजनिक रूप से रखना समझ में आता है। वैसे चिराग पासवान का मामला तय करेगा कि भाजपा, जदयू को कितना महत्व देती है।
जदयू ने साफ कर दिया है कि स्व रामविलास पासवान की जगह चिराग को नहीं मिलना चाहिए। लोजपा में टूट के बाद चाचा पशुपति नाथ पारस की भूमिका केंद्र में बढ़ गई है। जबकि चिराग अलग-थलग पड़ गये हैं।
ऐसे में भाजपा का मानना है कि चिराग अगर तेजस्वी के साथ चले गए तो लोकसभा चुनाव में इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि चिराग अब भी दलितों के बीच एक बड़ा चेहरा हैं।
ऐसे में चिराग को नजरंदाज करना भाजपा को मंहगा पड़ सकता है। यूपी चुनाव और आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा को दोनों को साथ रखना मजबूरी है। अगर चिराग मंत्रिमंडल में शामिल होते हैं तो जदयू की प्रतिष्ठा हनन की बात होगी।
वहीं दूसरी तरफ बिहार में राजनीति खिचड़ी की कडाह चढ़ चुकी है। जीतनराम मांझी के चार और मुकेश सहनी के वीआईपी पार्टी के भी चार विधायक कभी भी नीतीश कुमार का खेल बिगाड़ सकते हैं।
इसी बीच लालू प्रसाद यादव और पूर्व सीएम जीतनराम मांझी के बीच 12 मिनट की टेलिफ़ोनिक वार्ता ने सियासी अटकल को और हवा दे दी है।
लालू ने वीआईपी के मुकेश सहनी से भी टेलीफोनिक गूटर गूं की थी। जिसके बाद सहनी ने मीडिया को बताया भी कि कुछ बातें पर्दे में रहने दीजिए। ऐसे में भाजपा के लिए असमंजस की स्थिति है।