✍️मुकेश भारतीय / एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क
बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय की अपनी ही कार्यशैली है। वे सोशल-मीडिया में चर्चित होने वाले देश के इकलौते आइपीएस अफसर के रुप में शुमार हो चुकें हैं। फेसबुक-मीडिया लाइव से लोगों को जागरुक करने के साथ कानून का पाठ पढ़ाने में उनका कोई सानी नहीं है।
जारी लॉकडाउन में हाल के दिनों में वे पुलिस का मनोबल बढ़ाने का एक नया तरीका अपनाया है सीधे फोन करने का। वे रोज आधा दर्जन पुलिस अफसरों को सीधे फोन कर अपनी संवेदाना व्यक्त कर रहे है। वे पहले भी ऐसा करते होंगे, लेकिन तब वह मीडिया की सुर्खियां नहीं बनती रही। जैसा कि अब हो रही है।
वेशक उम्दा-उल्लेखीय कार्य करने वाले पुलिस अफसरों का हौसला अफजाई होनी चाहिए। उन्हें मीडिया की सुर्खियां भी मिलनी चाहिए। एक डीजीपी यदि अपने अधिनस्थ कर्मी के कार्यों की तारीफ करते हैं तो यह एक सम्मान से कम बड़ी बात नहीं है। लेकिन डीजीपी को यह नहीं भूलना चाहिए कि आसन्न विकट परिस्थिति में पुलिस-तंत्र की लापरवाही से आमजन को होने वाले सीधे नुकसान की जबावदेही भी उनकी हीं है।
क्योंकि कतिपय पुलिसकर्मी यह नहीं समझ रहे हैं कि समूचे देश में जारी लॉकडाउन का आशय क्या है? पुलिस की मुस्तैदी की सराहना की जा सकती है, लेकिन किसी की मौत की कीमत पर कदापि नहीं। वे शराबबंदी की तरह लॉकडाउन में भी कमाई ढूंढ रहे हैं। किसी गरीब की जान उनके लिए कोई मायने नहीं रखते।
बिहार के डीजीपी भलि भांति जानते हैं कि सीतामढ़ी-शिवहर सीमा पर शिवहर जिले के पूरनहीया थाना क्षेत्र के बराही गांव निवासी मजदूर दिनकर महतो का 10 वर्षीय बालक पंकज कुमार ईलाज के आभाव में तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया।
रीगा थाना पुलिस ने ग्रामीणों के लाख मिन्नत के बाबजूद पंकज का ईलाज कराने के लिए आगे अस्पताल ले जाने से रोक दिया।
बकौल, प्रत्यक्षदर्शी ग्रामीण अनील कुमार, उसके पड़ोस के बालक के मुंह से अचानक झाग निगलने लगा। आशंका है कि उसे किसी जहरीले सांप ने काटा होगा। यह मान ग्रामीण उन्हें स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र ग्रामीण ले गए। जहां मौजूद चिकित्सकों ने तत्काल सीतामढ़ी अस्पताल ले जाने को कहा।
अनील आगे बताते हैं कि पुरनहिया थाना पुलिस ने सिघोरबा बार्डर तक मदद की, लेकिन वहां तैनात रीगा थाना के दारोगा ने एक न सुनी और ग्रामीणों को बालक पंकज को ईलाज कराने जाने से रोक दिया। जब वहां तैनात दारोगा से सीओ, बीडीओ, एसडीओ, एसडीपीओ का मोबाइल नबंर मांगा गया तो वह भी नहीं दिया गया।
वे सिसकते हुए बताते हैं कि सिघोरबा बार्डर पर तैनात पुलिस करीब 2 घंटे तक रोके रहा। लाख मिन्नत के बाबजूद वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं हुआ। फिर थक हार कर बच्चे को एक मोटरसाईकिल से गांव-जेवार के रास्ते किसी तरह लेकर सीतामढ़ी अस्पताल ले गए। तब तक वह मर चुका था।
इस संबंध में पुरनहिया थानाध्यक्ष ने एक्सपर्ट मीडिया न्यूज को बताया था कि रीगा थाना पुलिस को ऐसा नहीं करनी चाहिए। पीड़ित बच्चे को अस्पताल ले जाने से रोकना गैरकानूनी है।
यदि वहां की थाना पुलिस को हर किसी को रोकने के आदेश मिले भी होंगे तो उसे रीगा पुलिस-प्रशासन के वरीय अफसरों से संपर्क कर मानवीयता का तत्काल परिचय देनी चाहिए थी। पूरी घटना दुःखद है।
उधर, सिघोरबा बार्डर पर तैनात पुलिस पर आम आरोप है कि यहां पहुंच वाले लोगों के लिए कोई रोक नहीं है। पैसे लेकर जाने देती है। पीड़ित बालक के परिजन से कुछ हासिल होने वाला नहीं होगा, इसीलिए कानून का धौंस जमाया गया। रीगा थाना पुलिस ने लॉकडाउन को भी कमाई का जरिया बना लिया है।
6 पुत्री के बाद एकलौते पुत्र पंकज की अकाल मौत के बाद भी मजदूर दिनकर महतो की मुसीबतें कम नहीं हुई। सुबह 5 बजे से लेकर अपराह्न करीब 1.30 बजे तक उसके पुत्र के शव का पोस्टमार्टम तक नहीं किया गया। उसके अस्पताल में उसके लिए 4 हजार की रिश्वत मांगी गई।
इस दौरान सूचना के बाद भी वहां के जिलाधिकारी तत्काल कुछ नहीं कर सके। सिविल सर्जन संसाधनों का रोना रोते रहे। बाद में एक बौरा कर्मी आया, पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पूर्ण की।
खैर, यह सब सुशासन बाबू की विकास गाथा की एक अलग आयना है। लेकिन डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय सरीखे संवेदनशील आला अफसर अपने कर्मी की लापहवाह जिद के लिए उस दिनकर महतो को फोन कर क्षमा तो मांग ही सकते थे। ताकि पुलिस भी कानून का दायरा समझ जाते और एक पिता भी, जिसका एकलौता पुत्र व्यवस्था की अकड़ की भेंट चढ़ गया, थोड़ा मरहम भी लग जाता।