सरायकेला-खरसांवा (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। छोटी-मोटी घटनाओं को अंजाम देने वाले चोर उच्चको की सूचना देने के लिए आमतौर पर पुलिस लॉक डाउन की अवधि में व्हाट्सएप ग्रुप का सहारा ले रहे हैं और मीडिया कर्मी उसी ग्रुप की सूचना पर खबरें प्रकाशित भी कर रहे हैं।
लेकिन कल झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में हुए नाटकीय घटनाक्रम पर जिस तरह से पुलिस ने पिछले दरवाजे से नगर पंचायत अध्यक्ष उपाध्यक्ष मनोज चौधरी को सरकारी काम में बाधा पहुंचाने, लोगों को भड़काने और धारा 144 के उल्लंघन के मामले में दोषी करार देते हुए जेल भेजा, उससे सरायकेला पुलिस की कार्यशैली सवालों के घेरे में गिर गई है।
बताया जा रहा है कि नगर पंचायत उपाध्यक्ष मनोज चौधरी क्वॉरेंटाइन सेंटर पंचायत क्षेत्र के रिहायशी इलाके में बनाए जाने का विरोध कर रहे थे। जहां जिला प्रशासन द्वारा मुर्शिदाबाद के 15 मजदूरों को नगर पंचायत क्षेत्र में बने कोरेटाइन सेंटर में रखना चाह रहे थे, लेकिन मनोज चौधरी ने उसका विरोध किया।
इस पर सुनियोजित तरीके से सरायकेला प्रशासन ने उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करते हुए ससम्मान थाने में बुलाया और वहीं से हिरासत में लेकर मेडिकल के लिए ले गए उसके बाद सीजेएम की अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया।
इतना ही नहीं इसकी आधिकारिक सूचना देने के लिए किसी अधिकारियों ने सोशल मीडिया का सहारा नहीं लिया। न ही किसी तरह का कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस किया। उधर सरायकेला प्रशासन के इस रवैए पर सवाल उठने लगे हैं।
हालांकि आज यह खबर अखबारों और मीडिया की सुर्खियां बनी जरूर, लेकिन इसे राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
गौरतलब है कि आरएसएस के पूर्व नगर करवा रहे मनोज चौधरी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के टिकट से नगर पंचायत के उपाध्यक्ष का चुनाव जीता था और विधानसभा चुनाव के दौरान उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया, लेकिन भाजपा यह सीट हार गई और यहां से वर्तमान मंत्री चंपई सोरेन ने रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज की।
राजनीतिक जानकार इस पूरे प्रकरण को अलग ही नजरिए से देख रहे हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी में पुलिस की इस कार्रवाई के खिलाफ नाराजगी देखी जा रही है। हालांकि पुलिस के इस कार्यशैली पर सवाल उठना लाजिमी है।