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रांची जिले के प्रज्ञा केन्द्रों की मनमानी को लेकर लापरवाह हैं अफसर

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। इन दिनों समूचे राजधानी रांची जिले में प्रज्ञा केन्द्रों की मनमानी चरम पर है। वे आवेदकों के आर्थिक दोहन करने के साथ तरह तरह से परेशान कर रहे हैं। सबसे अधिक परेशानी छात्र-छात्राओं और बेरोजगारों को हो रही है।

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ओरमांझी प्रखंड-अंचल मु्ख्यालय से बमुश्किल 100 मीटर दूर प्रज्ञा केन्द्र का दृश्य, जहां कमरे के भीतर अवैध पैसे लेकर मनमानी किया जा रहा है और जिम्मेवार अफसर लावरवाह बने हैं……

अभी झारखंड सरकार की कल्याणकारी योजना के तहत ई-कल्याण छात्रवृति का ऑनलाइन फार्म भरा जा रहा है। इसके लिये छात्र-छात्राओं का जाति, आवास और आय प्रमाण पत्र आवश्यक होता है। यह काम प्रज्ञा केन्द्रों के जिम्मे है।

प्रज्ञा केन्द्र संकलकों का आलम है कि वे किसी काम में निर्धारित शुल्क से अधिक आवेदन पत्र की कीमत हीं नहीं वसुलते, बल्कि वे अवैध उगाही भी करते हैं। जो आवेदक मन माफिक राशि नहीं देता, उसे बेफजूल और उलजलूल बातें बता कर टरका दिया जाता है। उनसे गैर जरुरी कागजात की मांग की जाती है।

गंभीर बात यह है कि प्रखंड-अंचल स्तर के सक्षम अधिकारी भी इस तरह की शिकायतों को अनसुना ही नहीं करते बल्कि, प्रज्ञा केन्द्र संचालकों का वचाब पर उतर आते हैं।

झारखंड सरकार ने स्थानीय नीति तय की है। उसमें नियोजन और शिक्षा को लेकर क्या प्रावधान है, यह किसी भी प्रज्ञा केन्द्र वाले जानकारी नहीं दे पाते और यदि कोई बताता भी है तो स्थानीय नीति के बारे में सरकार ने जो जानकारी प्रकाशित की है, उससे काफी इतर होता है। जिम्मेवार सरकारी अधिकारियों का भी ऐसा ही हाल है।

आय प्रमाण पत्र अंचलाधिकारी को निर्गत करना है। इसके लिये लोग प्रज्ञा केन्द्रों में अपना आवेदन जमा करते हैं। उन आवेदनों के तत्थों की पड़ताल राजस्व कर्मचारी, क्षेत्रीय कर्मचारी की जांच एवं मन्तव्य पर निर्धारित होनी होती है। लेकिन वे अपने दायित्वों का निर्वहन न कर एक न्यायालीय शपथ की मांग करते हैं। उस शपथ पत्र को बनाने में अमुमन 150 से 200 रुपये की राशि खर्च होती है। अगर आवेदक सुदूर गांव-देहात की हो तो उनकी परेशानी और अन्यन खर्च होती है सो अलग।

इसके बाबजूद भी आय प्रमाण पत्र में 1932 का खतियान या 1978 के पहले का खतियान मांगा जाता है। अगर मुंह मांगी चढ़ावा मिल गई तो प्रज्ञा केन्द्रों में सारे काम आसानी से हो जाते हैं।

स्थानीय निवास व जाति प्रमाण निर्गत करने में और भी समस्याएं खड़ी की जा रही है। सिर्फ 1932 या 1978 के खतियान को ही आधार माना जा रहा है। जबकि झारखंड सरकार की तय नीति के अनुसार अन्य विकल्प भी दर्शाये गये हैं।

बात प्रज्ञा केन्द्र की हो या किसी पंचायत प्रतिनिधि की या फिर अंचलाधिकारी, प्रखंड विकास पदाधिकारी स्तर की। इस मामले में यहां कोई भी स्पष्ट जानकारी नहीं दी जाती है। किसी भी प्रज्ञा केन्द्र या प्रखंड-अंचल कार्यालयों में इस में अधोहस्ताक्षरित जानकारी या सूचना नहीं लगाई गई है कि जाति, आवास, आय प्रमाण पत्रों के निर्गतीकरण के लिये क्या स्पष्ट प्रावधान हैं।

आश्चर्य की बात तो यह है कि जहां एक ओर सही आवेदक को आर्थिक दोहन के लिये तरह-तरह से परेशान किया जाता है, वहीं, सीओ या एसडीओ स्तर से प्रज्ञा केन्द्रों द्वारा भेजी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर ही हर तरह के प्रमाण पत्र निर्गत हो जाते हैं।

 

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