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जरा देखिए सरकार,  घोर नक्सल क्षेत्र की रविता मुंडा को शहर में लग रहा है यूं डर !

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“नक्सलवाद झारखंड का सबसे अहम समस्या है। नक्सली समाज की मुख्यधारा में लौट सके। उसके लिए नक्सल प्रभावित क्षेत्र की महिलाएं अगर शहर का रुख कर रही है, तो निश्चित तौर पर उसे संरक्षण की जरूरत है। सरायकेला- खरसावां जिला पुलिस प्रशासन को ऐसे मामलों पर गंभीरता दिखानी चाहिए और सरकार की प्रतिष्ठा कायम रखनी चाहिए…

आदित्यपुर (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। झारखंड में जल-जंगल और जमीन की सरकार बनी है। फिर क्यों रविता दर-दर की ठोकरें खा रही है ?  रविता आदिवासी महिला है। मैट्रिक तक पढ़ी- लिखी रविता पूर्वी सिंहभूम जिले के घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र गुड़ाबांधा की रहने वाली है।

पति की मौत के बाद गांव छोड़कर रविता शहर ये सोच कर आयी थी, कि अपना जीवन बसर कर सके। रविता मैट्रिक के बाद आगे पढ़ना चाहती थी लेकिन परिवार वालों ने जबरन उसकी शादी करवा दी।

लेकिन दुर्भाग्यवश शादी के तीन माह बाद ही उसके का देहांत हो गया। उसके बाद रविता ने शहर का रुख किया। हार्डकोर नक्सली रहे कानू मुंडा की रिश्तेदार रविता वापिस अपने गांव नहीं लौटना चाहती।

रविता मुंडा आदित्यपुर थाना अंतर्गत बेल्डी बस्ती में एक किराए के मकान में रहती है। और अमेजन कंपनी में हाउसकीपिंग का काम कर रही थी।

लेकिन अचानक पिछले दिनों रविता को दलित, हरिजन और आदिवासी कह कर कंपनी प्रबंधन ने काम से निकाल दिया। रविता फरियाद लेकर आदित्यपुर थाना पहुंची।

पिछले महीने के 18 तारीख से रविता थाना का चक्कर काट रही है, लेकिन अब तक किसी तरह की कोई कार्यवाई नहीं होने के बाद रविता अब टूट चुकी है। वह अपने गांव वापस नहीं लौटना चाहती।

बकौल, रविता गांव क्या मुंह लेकर जाऊंगी। शहर यह सोच कर आई थी, कि अपने पैरों पर खड़ी होंउंगी। उसके बाद ही गांव लौटूंगी। क्योंकि गांव के दौर को काफी करीब से जिया है। लेकिन शहर इतना गंदा होगा यह सपने में भी नहीं सोचा था।

वैसे आदित्यपुर थाना पुलिस ने रविता की शिकायत पर अमेजन कंपनी के कर्मचारी और अधिकारी को  आदित्यपुर थाना ने तलब किया था। जहां 7 दिनों के भीतर मामला सुलझाने का निर्देश आदित्यपुर थाना पुलिस ने दिया था।

बावजूद इसके कंपनी प्रबंधन द्वारा किसी तरह की कोई कार्यवाई नहीं की गई। जिससे रविता टूट चुकी है और इंसाफ के लिए अभी भी दर-दर की ठोकरें खा रही है।

रविता मुंडा बेहद ही संवेदनशील महिला है। उसने बताया कि जिस वक्त पूरे देश में लॉकडाउन के कारण सब कुछ बंद पड़ा था उस वक्त वह कंपनी के कर्मचारियों से लेकर अधिकारियों तक कि हर जरूरतों को पूरा करती थी कैंटीन से खाना पहुंचाने से लेकर नाश्ता चाय पानी झाड़ू पोछा हर तरह का काम करती थी।

इतना ही नहीं, हर दिन अपने घर से कंपनी पैदल ही जाती थी। उस वक्त वह अछूत नहीं थी, लेकिन अब वह अछूत हो गई। झारखंड सरकार को ऐसे मामलों पर गंभीर होने की जरूरत है।

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