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अदद चपरासी भरोसे झारखंड का ऐतिहासिक खजाना, राज्य अभिलेखागार की दर्दनाक हकीकत!

रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क)। कल्पना कीजिए एक ऐसा खजाना, जो झारखंड की आत्मा को संजोए रखता है। स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायक, आदिवासी विद्रोहों की गूंजदार कहानियां, ब्रिटिश काल के राजकीय फरमान और आधुनिक झारखंड के जन्म की दस्तावेजी गवाही। ये सब पन्ने, पांडुलिपियां और अभिलेख न केवल कागज के टुकड़े हैं, बल्कि राज्य की सामूहिक स्मृति का जीवंत प्रमाण हैं।

लेकिन क्या आप यकीन करेंगे कि इस अमूल्य विरासत की हिफाजत एक ही व्यक्ति के कंधों पर टिकी हुई है? हां, बिल्कुल सही सुना आपने।  झारखंड राज्य अभिलेखागार, जो कचहरी रोड पर आयुक्त कार्यालय के बगल में शांतिपूर्वक खड़ा है, आजकल एक चपरासी सह फराश के भरोसे चल रहा है। 32 स्वीकृत पदों में से 31 खाली पड़े हैं और यह दृश्य किसी पुरानी फिल्म के सेट जैसा लगता है – जहां इतिहास की किताबें धूल फांक रही हैं और भविष्य की अनदेखी हो रही है।

झारखंड राज्य अभिलेखागार मंत्रिमंडल सचिवालय एवं निगरानी (समन्वय) विभाग के अधीन संचालित होता है। यह वह पवित्र स्थान है जहां राज्य के राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी इतिहास की मूल्यवान सामग्री संरक्षित है। यहां रखे गए दस्तावेज न केवल शोधकर्ताओं और इतिहासकारों के लिए सोने का खदान हैं, बल्कि आम नागरिकों को भी अपने अतीत से जोड़ते हैं।

उदाहरण के तौर पर संथाल हूल (1855) के अभिलेख या टाना भगत आंदोलन के पत्र-व्यवहार यहां सुरक्षित हैं, जो झारखंड की संघर्षपूर्ण यात्रा को जीवंत बनाते हैं। लेकिन विडंबना देखिए कि  इन दस्तावेजों की देखभाल के लिए न तो कोई पुराभिलेखपाल है, न सहायक निदेशक, न ही कोई टेक्नीशियन। केवल एक चपरासी ही इनका द्वारपाल, सफाईकर्मी और संभावित रक्षक बन चुका है।

सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत मिली जानकारी ने इस लापरवाही की परतें खोल दी हैं। रांची के सामाजिक कार्यकर्ता शशि सागर वर्मा ने विभाग से यह डेटा मांगा था और जवाब ने सबको स्तब्ध कर दिया। राज्य सरकार ने अभिलेखागार के लिए कुल 32 पद स्वीकृत किए हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश वर्षों से खाली पड़े हैं। आइए इसकी विस्तृत तस्वीर देखें:

पद का नाम स्वीकृत संख्या भरे हुए पद खाली पद
आदेशपाल सह फराश 7 1 6
पुराभिलेखपाल 7 0 7
सहायक निदेशक अभिलेख 2 0 2
उप निदेशक अभिलेख 1 0 1
निदेशक अभिलेख 1 0 1
अभिलेख लिपिक 3 0 3
परीक्षण सहायक 1 0 1
विपत्र लिपिक 2 0 2
टंकक 1 0 1
टंकक सह लिपिक 1 0 1
सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष 1 0 1
मेंडर सह पुस्तबंधक 3 0 3
टेक्नीशियन 1 0 1
वाहन चालक 1 0 1
कुल 32 1 31

यह तालिका न केवल आंकड़ों की ठंडी सच्चाई बयां करती है, बल्कि एक गहरी चिंता भी जगाती है। पिछले साल 18 सितंबर को विभाग ने समूह ग के 14 पदों – जिसमें अभिलेख लिपिक (3), विपत्र लिपिक (2), टंकक (1), टंकक सह लिपिक (1), परीक्षण सहायक (1), सहायक पुस्तकालयाध्यक्ष (1), टेक्नीशियन (1), वाहन चालक (1) और मेंडर सह पुस्तबंधक (3) शामिल हैं। इस पर भर्ती के लिए अधियाचना भेजी गई थी। यह फाइल नियुक्ति नियमावली के साथ झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (जेपीएससी) को अग्रेषित कर दी गई है। लेकिन एक साल बाद भी कोई प्रगति नहीं। पद खाली, अभिलेख असुरक्षित।

आरटीआई के तहत इस घोटाले को उजागर करने वाले शशि सागर वर्मा कहते हैं कि ये दस्तावेज केवल कागज नहीं, हमारी पहचान हैं। एक चपरासी के भरोसे इतिहास को छोड़ना राज्य सरकार की लापरवाही का नंगा चेहरा है। अगर ये नष्ट हो गए, तो आने वाली पीढ़ियां हमें माफ नहीं करेंगी। इसी मुद्दे पर झारखंड हाईकोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) भी दायर की है, जिसकी पैरवी उनके अधिवक्ता शैलेश पोद्दार कर रहे हैं। याचिका में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अभिलेखागार में मौजूद ऐतिहासिक डेटाबेस को स्थायी संरक्षण की सख्त जरूरत है, वरना खराब रखरखाव से ये हमारी विरासत का नुकसान कर देंगे। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 27 नवंबर को तय की है और उम्मीद है कि यह न्यायिक हस्तक्षेप सरकार को झकझोर देगा।

पोद्दार बताते हैं कि यह केवल पदों की कमी नहीं, बल्कि सांस्कृतिक लापरवाही का मामला है। अभिलेखागार जैसे संस्थान नागरिकों और शोधकर्ताओं के लिए खुला द्वार होने चाहिए, लेकिन यहां तो ताले लगे हुए हैं। हम कोर्ट से मांग कर रहे हैं कि रिक्त पदों पर तत्काल भर्ती हो और डिजिटलीकरण की प्रक्रिया शुरू की जाए।

झारखंड जैसे युवा राज्य के लिए अभिलेखागार का महत्व निर्विवाद है। यह न केवल इतिहास को संरक्षित करता है, बल्कि नीति-निर्माण, कानूनी विवादों और शैक्षणिक अनुसंधान में सहायक होता है। लेकिन अगर एक चपरासी ही सब कुछ संभाल रहा है तो क्या हमारा अतीत सुरक्षित है? सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या झारखंड की विरासत को बचाने के लिए लोगों को सड़कों पर उतरना पड़ेगा?

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