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    Saturday, April 20, 2024
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      यहां किसान को साबित करना है कि वह किसान है !

      "गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के कुछ पत्रकार मित्रों के फोन आए, उन्होंने कहा कि किसानों की हरकत पर उन्हें गुस्सा आ रहा है। हमारा टका सा जवाब था कि जिसने भी यह साजिश रची, वह अपनी साजिश में कामयाब हो गया। अब आने वाले समय में किसानों को साबित करना होगा कि वह किसान है....."

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क (लिमटी खरे)।  लगभग दो माहों से चल रहे किसान आंदोलन में अब उस तरह की उर्जा का संचार होता नहीं दिख रहा है, जो पहले दिखता था। दरअसल, गणतंत्र दिवस के अवसर पर जो कुछ भी हुआ उसने इस आंदोलन की चूलें हिलाकर रख दी हैं।

      किसान बहुत ही धेर्य व संयम के साथ आंदोलन कर रहे थे, वहीं सरकार भी बहुत ही धेर्य और संयम के साथ आंदोलनकारियों के द्वारा गलति किए जाने की प्रतीक्षा में दिख रही थी।

      गणतंत्र दिवस पर किसानों के द्वारा जिस शानदार परेड का आगाज किया था, उस परेड पर तथाकथित किसानों के द्वारा किए गया तांडव भारी पड़ गया। लाल किले पर जिस तरह का तांडव हुआ है वह पूरे देश ने देखा है, पर दुख की बात है कि किसानों की शालीन परेड मीडिया में जगह नहीं बना सकी।

      दिल्ली में केजरीवाल सरकार है, पर दिल्ली पुलिस पर केद्र सरकार का सीधा सीधा नियंत्रण है। दिल्ली पुलिस का अपना सशक्त गुप्तचर तंत्र है, केंद्र सरकार के पास बहुत सारे गुप्तचर विंग है, इसके बाद भी क्या अचानक ही तथाकथित किसान अपने मूल रास्ते से भटककर सुप्रीम कोर्ट या प्रगति मैदान होते हुए आईटीओ फिर दरियागंज का गलियारा पार करते हुए लाल किले तक पहुंच गए।

      लाल किले की सुरक्षा अभैद्य है, वह भी कम से कम गणतंत्र दिवस और स्वाधीनता दिवस पर तो रहती ही है।

      इसके अलावा लाल किले के सामने जामा मस्जिद, गुरूद्वारा रकाबगंज एवं चांदनी चौक में एक प्रसिद्ध हनुमान मंदिर है जहां हाल ही में विवाद हुआ था, किसान रैली को छोड़ भी दिया जाए तो गणतंत्र दिवस पर यहां चप्पे चप्पे पर पुलिस तैनात रही ही होगी, इसके बाद भी इस तरह की घटनाओं का घटना किस ओर इशारा कर रहा है।

      गणतंत्र दिवस पर दिल्ली के कुछ पत्रकार मित्रों के फोन आए, उन्होंने कहा कि किसानों की हरकत पर उन्हें गुस्सा आ रहा है। हमारा टका सा जवाब था कि जिसने भी यह साजिश रची, वह अपनी साजिश में कामयाब हो गया। अब आने वाले समय में किसानों को साबित करना होगा कि वह किसान है।

      यह इसलिए क्योंकि बहुत ही करीने से इस षणयंत्र को रचा गया होगा और किसानों की शांतिपूर्वक होने वाली परेड को मीडिया में स्थान न मिल पाए एवं इस तरह के विध्वंस को पुलिस की पिटाई, ट्रेक्टर पलटने आदि को स्थान मिल पाए ताकि आंदोलन के प्रति उमड़ने वाली देशव्यापी सहानभूति की लहर को समाप्त किया जा सके।

      किसान आंदोलन में एक बात विशेष रूप से उभरकर सामने आई है, वह यह कि दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन में एक समुदाय विशेष के लोगों को जमावड़ा देखने को मिल रहा था। सोशल मीडिया पर यह बात उभरकर सामने आ रही थी।  देश के अन्य सूबों के किसान आखिर इस आंदोलन में शिकरत क्यों नहीं कर रहे हैं।

      26 जनवरी के उपरांत उपजी परिस्थितियों में अब किसान आंदोलन की बागड़ोर राकेश टिकैत के हाथों में आती दिख रही है। इसका सीध मतलब यह भी लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में आंदोलन में हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की भागीदारी बढ़ सकती है।

      समय समय पर इस किसान आंदोलन को मिलने वाली रसद, शक्ति, सामर्थय आदि के लिए विपक्षी दलों पर निशाने साधे जाते रहे हैं, पर कोई भी विपक्षी नेता खुलकर इस आंदोलन का समर्थन करता नहीं दिखा, न ही आंदोलन स्थल पर ही उपस्थिति दर्ज कराई, इससे उलट कुछ विपक्षी नेताओं को आंदोलन स्थल से बाहर का रास्ता भी दिखा दिया गया।

      केंद्र सरकार का अपना सूचना संकलन होगा, इस लिहाज से यह माना जा सकता है कि केंद्र के नेताओं को इस बात का भान भलिभांति होगा कि इस आंदोलन में चमकने वाले लट्टुओं को उर्जा किस बैटरी से मिल रही है।

      किसी भी आंदोलन के लिए संयम और अनुशासन बहुत जरूरी है। किसानों के द्वारा लगभग दो माहों से किए जा रहे इस आंदोलन में दोनों ही चीजें देखने को मिल रहीं थीं। अचानक ऐसा क्या हुआ कि आंदोलन की दिशा ही बदल दी गई। किसानों की मूल रैली के मार्ग से हटकर कुछ तथाकथित किसानों ने लाल किले की ओर रूख कर लिया। सोशल मीडिया पर अनेक वीडियो तैर रहे हैं।Kisan Andolan Farmers Protest 1

      एक किसान की कथित रूप से गोली लगने की खबर वायरल होते ही एक वीडियो जिसमें ट्रेक्टर पलटते दिखाया जा रहा है का फिजा में तैरना क्या साबित करता है। छोटी मोटी रैलियों, आंदोलन आदि की माकूल वीडियो रिकार्डिंग करवाने वाली पुलिस ने क्या इस आंदोलन की वीडियो रिकार्डिंग नहीं कराई होगी। ट्रेक्टर पलटने का वीडियो कहां से आया।

      आखिर कौन से प्रदर्शनकारी थे, जो मूल रास्ते से हटकर लाल किले की ओर गए। इन प्रश्नों के जवाब भी किसानों को सरकार से मांगे जाने चाहिए।

      बहरहाल, अभी किसान आंदोलन का पहला चरण समाप्त होता दिख रहा है, पर दूसरा चरण बिना आंदोलन थमे ही आरंभ भी हो चुका है।

      इसकी पटकथा टिकैत के आंसुओं के साथ लिख दी गई है। किसान आंदोलन का तवा गरम है। सियासत करने वाले तो दो माह से इस गरम तवे पर रोटियां सेंकने का प्रयास करते दिख रहे थे, पर वे सफल नहीं हो पाए।

      अब जबकि आंदोलन पार्ट टू आरंभ हो चुका है तब नेता अपना प्रयास बदस्तूर जारी रखेंगे, इसके लिए किसान आंदोलन का नेतृत्व करने वालों को सावधान रहने की जरूरत है।

      इस पूरे घटनाक्रम में विपक्षी पार्टियों को विशेष सत्र बुलाए जाने की मांग भी करना चाहिए, जो अब तक होती नहीं दिख रही है। विपक्ष के कदमताल देखकर यही लग रहा है मानो विपक्ष भी किसी तरह के अज्ञात दबाव में है।

      तभी वह अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पा रहा है। लाल किले की घटना से दुनिया भर में देश को शर्मसार होना पड़ा है। हर भारतीय का मन क्षुब्ध होना स्वाभाविक ही है। इस पूरे घटनाक्रम से किसान नेताओं, सरकार, विपक्ष आदि को सबक लेने की जरूरत महसूस हो रही है।

      पर जिस तरह के हालात बन चुके हैं, उससे यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि किसानों को अब साबित करना होगा कि वे असली किसान ही हैं . . .

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