अन्य
    Tuesday, April 23, 2024
    अन्य

      हमारा लोकतंत्र एक हकीकतः चिरकुट बनते सिरमौर

      यहां योग्यता और गुणवत्ता से हमेशा समझौता होता आया है। योग्य, कर्मठ और ज्ञानवान की कोई विशेष पूछ इस देश में नहीं है। चाहे वह क्षेत्र कोई भी हो…….”

      subodh kumar 1
      आलेखकः सुबोध कुमार बिहार प्रशासनिक सेवा के उप सचिव स्तर के पदाधिकारी हैं और सामाजिक और प्रशासनिक सुधारों को लेकर विमर्श में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं……

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क।  हमारे देश में अमेरिका से उधार लिया हुआ भौतिकतावाद इस कदर सिर चढ़ कर बोल रहा है कि लोगों के दिमाग में यह बात पूरी तरह घर कर गई है कि पैसे से सब कुछ खरीदा जा सकता है। इसलिए लोग अंधाधुंध तरीके से पैसा बनाने की होड़ में शामिल हो गया है।

      ? इस देश में राजनीतिक महत्वाकांक्षा इस कदर है कि लोग येन-केन-प्रकारेण पैसा बनाने के बाद पॉल्टिक्स में घुसना चाहता है। क्योंकि पैसा होने के बावजूद भी वो सामाजिक इज़्ज़त पाने से खुद को महरूम समझता है।

      ? पॉल्टिकल पार्टियां भी इतनी संख्या में बनी हुई हैं कि आश्चर्य होता है कि आखिर ये पार्टियां चलती कैसे हैं? इनकी फंडिंग कहाँ से होती है?

      ? एक बात तो तय है कि जितनी ज्यादा पॉल्टिकल पार्टियां रहेंगी, उतनी ही ज्यादा वैसे लोग उससे जुड़ता चला जाएगा जो पैसा खर्च कर किसी पार्टी में महत्वपूर्ण पद प्राप्त करना चाहता है।

      ? अधिकांश लोग पार्टियों में चंदा देने वाले अपनी जेब से तो चंदा देने से रहे।

      बहुतेरे या तो…..

      leader wad 4? बालू माफिया हैं या वन/वन-उत्पाद माफिया हैं या पहाड़/पत्थर माफिया हैं या हथियार तस्कर हैं या  मादक पदार्थ (अफीम/चरस/गांजा/हेरोइन आदि) के तस्कर हैं या शराब माफिया हैं या ब्लैक मनी को व्हाइट करने में पारंगत हैं या चकलाघर चलानेवाले सफेदपोश हैं या सरकारी जमीन/दूसरे के जमीन को येन-केन-प्रकारेण हथियाने वाले माफिया हैं

                                                                                                          या

      ? किसी भी प्रकार की सरकारी संपत्ति को शातिराना तरीके से बेदर्दी से लूटने वाले हैं या आम जनता के निमित्त बनाई गई सरकारी योजनाओं के पैसे को बंदरबाँट कर निगल जाने वाले हैं या मोटे आयकर की चोरी करने वाले हैं या सरकारी बैंकों से मोटा लोन लेकर चुकता न करने वाले हैं या जमाखोरी/मिलावटखोरी/कालाबाजारी करने वाले हैं या तमाम तरह के भ्रष्ट आचार/विचार/व्यवहार में पीएचईडी  की डिग्री प्राप्त करने वाले हैं। आदि आदि।

      leader wad 6? इतना तफसील से लिखने का मतलब बस इतना ही है कि जो भी चकाचौंध दिखाई देती है, वो इनके खुद की मेहनत की कमाई नहीं होती। वो अधिकांशतया सरकारी संसाधनों की लूट से या अन्य गलत तरीके से इकट्ठा की गई हराम की कमाई होती है। जो पैसा कायदे से सरकार के खाते में जमा होना चाहिए, उसको येन-केन-प्रकारेण जमा न कर हजम किया जाता है। इस लूट में कई लोग भागीदार होते हैं। उसी हराम के पैसे से चमचमाती गाड़ियों में लोग घूमता है।

      ? ऐसा लोग शुरुआत में चिरकुट रहता है। जब कलियुग के प्रभाव में दो नंबर के धंधे में तरक्की मिलती जाती है और ऐसा लोग पैसा इकट्ठा कर लेता है, तब फिर इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा हिलोड़ें लेने लगती हैं। सामाजिक मान-मर्यादा और पद-प्रतिष्ठा पाने की सुषुप्त इच्छा कुलांचे भरने लगती है।

      ऐसा क्यों न हो? पैसा से देह में गर्मी जो आ जाती हैः  ? इनके दिमाग में ये घर कर जाता है कि पैसा ही सब कुछ है और पैसे से ये किसी को भी खरीद सकता है, यहां तक कि सरकारी अधिकारियों को भी। यानि चुनाव के समय वोटरों के साथ-साथ पूरे सिस्टम को।

      कुछ तो किसी पार्टी में मोटा चंदा देकर घुस जाता है और अपने मन से खुद ही स्थानीय अधिकारियों से खुद को श्रेष्ठ समझने लगता है, भले ही वो मैट्रिक ठीक से पास न किया हो।

      ? कुछ को पार्टी टिकट नहीं देती तो तुरंत दूसरी पार्टी का रुख करता है या निर्दलीय चुनाव में उतर जाता है। इसका मुख्य मकसद चुनाव जीतना होता है, न कि किसी दल के सिद्धांत से जुड़ना। ये लोग तो शुरू से ही सिद्धान्तविहीन होता है तो किसी दल के सिद्धांत से ऐसे लोगों को क्या लेना-देना रहेगा?

      ? अधिकांश ऐसे ही हैं। कुछ अपवाद हो सकते हैं।

      leader wad 5? पार्टियां क्या करे, उनको भी तो पार्टी चलाने के लिए चंदा चाहिए। चंदा देगा कौन? स्थानीय स्तर पर ऐसा ही लोग न चंदा देगा। ईमानदारी से कमाई करने वाला तो चंदा देने से रहा। अपने काले धंधों को कानून की मार से बचाने के लिए ऐसा ही लोग किसी पॉल्टिकल पार्टी को ज्वाइन कर उसकी आड़ में अपना काला खेल कुछ चंदा देकर जारी रखना चाहता है।

      ? राजनीति जनसेवा के लिए है। अपनी सेवा के लिए नहीं। सोच तो हमारे संविधान निर्माताओं की बहुत अच्छी थी, लेकिन आज उनकी आत्मा भी रो रही होगी।

      ? राजनीति में जीत कर आए लोगों को सिर्फ योजनाएं बनाने से मतलब क्यों नहीं रहता? योजनाओं के लिए पैसा स्वयं जन-प्रतिनिधि के पास क्यों?? काम तो अधिकारियों को ही करना है। पैसे का हिसाब-किताब भी अधिकारियों/कर्मचारियों को ही रखना है। फिर पैसा जन-प्रतिनिधि के पास किसलिए?

      ? पैसे का खेल समाप्त हो जाए तो तुरंत पता चल जाएगा कि राजनीति में कौन सेवा के लिए आया है और कौन मेवा के लिए।

      पंचायत स्तर पर ही देख लीजिए। अगर मुखिया का काम सिर्फ योजना बनाना रहता, कोई वित्तीय शक्ति नहीं रहती, तब देखने वाली बात होती कि मुखिया जनसेवा के लिए कौन-कौन बनना चाहते हैं। पैसे के खेल ने सारे गांव की एकजुटता को छिन्न-भिन्न कर दिया है। गांव में हर आदमी पॉल्टिसियन हो चुका है। विकास कार्य क्या खाक होगा?? गांव कई गुटों में बंट चुका है। वजह?

      ? वजह सिर्फ और केवल सिर्फ पैसे की बंदरबांट में हिस्से का न मिलनाleader wad 2

      क्या है ये सबः ? स्कूल में कमरे मास्टर बनवा रहे हैं। मास्टर का काम पढ़ाना है या स्कूल बनवाना?? फिर सिविल इंजीनियर किसलिए है? स्कूलों में शिक्षा के स्तर के गिरने का एक प्रमुख कारण यही पैसों की स्थानीय बंदरबांट भी है।

      ? विकास कार्य,योग्यता और गुणवत्ता से मतलब किसी को नहीं है। कुछ अपवाद हो सकते हैं।

      ? उपर्युक्त वर्णन से इतना तो पता चल ही गया होगा कि आखिर भारत में जिधर हाथ डालिए, उधर ही कीचड़ क्यों मिलता है।

      ?? जब तक पैसे के ऊपर योग्यता और गुणवत्ता को प्राथमिकता नहीं मिलेगी, तब तक तो देश में कुछ सुधार होने से रहा। एक आम जागरूक भारतीय नागरिक की हैसियत से ये मेरे व्यक्तिगत विचार हैं।

      आपका क्या विचार है…. ???

      leader wad 3

      संबंधित खबरें
      error: Content is protected !!