“कठिन दौर से गुजर रहा है सनातन धर्म, भारत और नेपाल में सीमट कर रह गया । मगध के मठो और ठाकुरबाड़ियों की हालत अच्छी नहीं है। कहीं भी अध्यात्मिक कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं।”
नालंदा (राम विलास)। गुजरात के द्वारिका पीठाधीश्वर स्वामी केशवानंद ने कहा कि सनातन परंपरा कठिन दौर से गुजर रहा है। मगध के मठो और ठाकुरबाड़ियों की हालत अच्छी नहीं है। कहीं भी अध्यात्मिक कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं।
उक्त बातें भारत साधु समाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं राजगीर के बड़ी संगत के दिवंगत महंत स्वामी शुकदेव मुनि के निधन पर राजगीर में आयोजित शोकसभा में बुधवार को स्वामी केशवानंद ने कही।
उन्होंने कहा कि राजगीर का बड़ी संगत बहुत पुरानी और प्रतिष्ठित ठाकुरबाड़ी है। यह प्राणवान संस्थाओं में से एक है। राजगीर के इस धार्मिक प्रतिष्ठान में बाबा साहब डा भीमराव अंबेडकर आए थे। यह जानकारी बहुत कम लोगों को है।
नालंदा में नव नालंदा महाविहार की स्थापना की परिकल्पना देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने की थी। महाविहार की स्थापना के पूर्व बाबा साहब राजगीर और नालंदा का दौरा किए थे। इसकी संपुष्टि बड़ीसंगत के हस्ताक्षर पुस्तिका से होती है।
दिवंगत महंत स्वामी शुकदेव मुनि की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा 1959 ईस्वी से मेरा उनसे संबंध था। वे दोनों पटना विश्वविद्यालय में एक साथ स्नातकोत्तर की पढ़ाई किए थे।
उन्होंने कहा कि शुकदेव मुनि केवल विद्वान ही नहीं सरल और निर्मल व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। उनमें छल-कपट नाम की कोई चीज नहीं थी। वह मानवीय सद्भावों से भरे थे। ऋषि मुनि की परंपरा में जातिवाद, वर्गवाद कि कहीं कोई जगह नहीं है । वे गरीब अमीर के भेदभाव से ऊपर थे। शिक्षा सेवा और साधना के प्रति समर्पित थे।
उन्होंने कहा कि जब वे गुजरात धार्मिक न्यास बोर्ड के चेयरमैन थे। तब गुजरात सरकार ने राजगीर के बड़ीसंगत ठाकुरबाड़ी की दुर्दशा सुधारने के लिए यहां उन्हें भेजा गया था। इसी सुधार की परंपरा के तहत बड़ीसंगत के तत्कालीन महंत स्वामी हंसदेव मुनि जी के बाद स्वामी शुकदेव मुनि को यहां की दायित्व 21 जनवरी 1976 ईस्वी को मिली थी।
उन्होंने कहा कि राजगीर का बड़ीसंगत ठाकुरबारी उदासीन संप्रदाय का सबसे पुराना और समृद्ध आध्यात्मिक केंद्र है । उन्होंने कहा स्वामी शुकदेव मुनि बहुत दूरदर्शी थे। 31 साल पहले ही उन्होंने विवेक मुनि को अपने बाद इस ठाकुरबाड़ी का महंत बना दिया था। है।
राजगीर विधायक रवि ज्योति कुमार ने कहा कि हिंदुस्तान में सनातन परंपरा संक्रमण काल से गुजर रहा है। यह परंपरा भारत और नेपाल में सीमट कर रह गया है । बौद्ध और जैन धर्म को उन्होंने हिंदू धर्म का शाखा बताया ।
उन्होंने कहा कि अन्य धर्मों की तरह सनातन धर्म में भी आत्मसात करने की परंपरा चलनी चाहिए। देश और काल से हमें सीख लेनी चाहिए ।
उन्होंने कहा कि यहुदियो की तरह हिंदू समाज सिमटते जा रहा है। आदिकाल से ही हिंदू धर्म सहिष्णु है । उन्होंने धर्माचार्यों का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि सनातन धर्म में वैश्विक सोच पैदा करने की जरूरत है ।
इस अवसर पर राजगीर के कैलाश विद्यातीर्थ के मुख्य प्रबंधक स्वामी बालानंद जी, मुखिया नवेन्दू झा, रवि शंकर सिंह उर्फ पुट्टू सिंह, बिहार स्टेट दिगंबर जैन प्रतिष्ठान पावापुरी के सीनियर मैनेजर अरुण कुमार जैन, मगध सांस्कृतिक संघ के निदेशक शिवनंदन उपाध्याय , वर्धमान महाविद्यालय पावापुरी के अध्यापक सुरेश प्रसाद सिंह, स्वामी हंसदेव मुनि संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य सुनील कुमार झा, राजाराम सिंह, यदुनंदन प्रसाद, चंद्रप्रकाश, आरटीआई एक्टिविस्ट समाजसेवी पुरुषोत्तम प्रसाद, रामहरि साहू, पंडा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष बृजनंदन उपाध्याय, सुधीर उपाध्याय, उमराव यादव , नित्यानन्द उपाध्याय समेत अनेक लोगों ने दिवंगत महंत के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला और स्वामी सुखदेव मुनि को श्रद्धांजलि अर्पित किया।
विवेक मुनि की हुई चदरापोसी
महंत स्वामी शुकदेव मुनि के निधन के तीसरे दिन राजगीर के बड़ीसंगत के नए महंत के रुप में स्वामी विवेक मुनि की चदरापोसी की गई।
इसके साथ ही विवेक मुनि यहां के महंत और पीठाधीश हो गए। गुजरात की द्वारिका पीठाधीश्वर स्वामी केशवानंद महाराज वैशाली के पातेपुर स्टेट के पीठाधीश्वर एवं तिरहुत प्रमंडल के महामंडलेश्वर स्वामी विश्वमोहन दास बरडीहा मठ के महंत सुग्रीव दास कैलाश विद्यातीर्थ के बालानंद एवं अन्य ने वैदिक मंत्रोंच्चारण कर नये महंत स्वामी विवेक मुनि की चादरपोशी की।
चादरपोशी उपरांत संत महंत और पीठाधीश्वरो ने नए महंत के ऊपर पुष्प दृष्टि कर आशीर्वाद दिया।