सुत्रो का कहना है कि इस्लामपुर के गढ के जमींदार स्व चौधरी जहूर साहब थे। और अपनी जमींदारी के समय मे दिल्ली के लाल किला और लखनउ की भुलभुलैया के तर्ज पर लगभग वर्ष 1345 मे दिल्ली दरबार का निर्माण कार्य शुरु करवाया था। जिसमें 52 कोठरी एंव 53 दरबाजे लगाये थे।
साथ ही इस दरबार की आर्कषता के लिए भुलभुलैया, धुपघडी, तालाब, कुआं के अलावे दरबार की देख रेख करने के लिए एक नयाव तरीका का गुम्बज बनवाया गया था। जो दिल्ली दरबार के साथ आज भी देखने मे काफी आर्कषक लगता है।
जमींदार स्व जहुर शाहब की मौत हो जाने के वाद जैसे ही जमींदारी प्रथा समाप्त हुई। वैसे ही जहुर शाहब के परिवार यहा से बाहर चले गये। जिसके कारण देख रेख की अभाव मे दिल्ली दरबार धीरे धीरे अपनी आर्कषता खोने लगी। फिर भी जीर्ण शीर्ण अवस्था मे भी पहुंचकर अपना पहचान खोये बैठा है।
इस ऐतिहासिक पुरानी धरोहर दिल्ली दरबार को आज भी यदा कदा बाहर से लोग देखने के लिए आते है। क्योंकि आज भी यह दरबार की बनावट जीर्ण शीर्ण अवस्था मे पहुंचकर भी अपना इतिहास का वंया कर रहा है। लेकिन समुचित देख रेख की अभाव मे यह दिल्ली दरबार अपना अस्तित्व खोने की कगार पर पहुंच रही है।
आस पास के लोगों का कहना है कि सरकार द्धारा इस पर ध्यान दिया तो यह दरबार फिर से जिले मे अपनी पहचान बना लेगी।