” अब राजस्व कर्मचारी भी अंचलाधिकारी और अंचल निरीक्षक की तरह शहरी क्षेत्र में ही अपना दफ्तर चलाते हैं। शहरी क्षेत्र में कार्यालय खोल रखें हैं। उस कार्यालय में उनके निजी स्टाफ काम करते हैं। “
नालंदा (राम बिलास)। पहले राजस्व कर्मचारी अपने हल्का के गांवो में जाकर मालगुजारी वसूली करते थे। गांवो में कई रात गुजारते थे। किसान उनकी अच्छी खातीरदारी करते थे। गांव के रैयतो के घर द्वार तक उन्हें जानकारी रहती थी। एक दलान पर बैठकर गांव के रैयतों को बुलाते थे। उनका हाल चाल पूछते और मालगुजारी रसीद काट कर देते थे।
लेकिन वह परंपरा अब नहीं है या समाप्त हो गया है। राजस्व कर्मचारियों ने नई परंपरा का इजाद किया है। वे गांव में जाना नहीं चाहते हैं। पंचायत सरकार भवन भी उनका इंतजार करती है लेकिन वह पहुंच नहीं पाते हैं।
कोई कर्मचारी एक तो कोई दो निजी स्टाफ रखते हैं । राजस्व कर्मचारी निर्देश देते हैं। स्टाफ मालगुजारी रसीद काटते हैं, जिस पर हल्का कर्मचारी हस्ताक्षर बनाते हैं ।
सिलाव और राजगीर प्रखंड की तरह जिले के सभी प्रखंडों के राजस्व कर्मचारियों का कमोबेश यही हाल है। अंचल पदाधिकारी या अन्य वरीय पदाधिकारी यह सब कुछ जानते हैं। फिर भी वे कोई हस्तक्षेप करना उचित नहीं समझते हैं।
पदाधिकारी चाह कर भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते हैं और न गांव जाकर मालगुजारी रसीद काटने के लिए बाध्य कर सकते हैं। फलस्वरूप व्यवस्था अब उल्टा हो गया है। पहले राजस्व कर्मचारी गांव-गांव जाते थे। अब गांव गांव के किसान राजस्व कर्मचारी के पास दरबार लगाते हैं।
किसानों को मालगुजारी रसीद कटवानी हो या बंटबारा रसीद कटवानी हो, फटबंदी या एलपीसी बनवाना हो या दाखिलखारीज कराना हो तो वह 10 किलोमीटर चल कर कर्मचारी के पास पहुंचने के लिए मजबूर हैं। संयोग से एक दिन नहीं मिले तो दूसरे, तीसरे दिन भी उसी काम के लिए दौड़ लगानी पड़ती है। इससे किसानों का आर्थिक, मानसिक और शारीरिक परेशानी होती है।
जिला परिषद सदस्य चंद्रकला कुमारी कहती हैं कि कई पंचायतों में पंचायत सरकार भवन बनकर तैयार है। पंचायत सरकार भवन में हल्का कर्मचारी , पंचायत सचिव सहित पंचायत स्तर के कर्मियों को बैठकर जनता की समस्या को सुनना और निदान करना है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
उन्होंने जिला पदाधिकारी से मांग किया है कि पंचायत सचिव और राजस्व कर्मचारी को नियमित रूप से पंचायत सरकार भवन में बैठने का आदेश निर्गत किया जाए, ताकि भोली भाली जनता और किसानों को काम के लिए शहरों की ओर दौड़ लगाना न पड़े।