साधु-संतों ने एक स्वर से कहा कि आदि काल से यह सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक प्रमुख केंद्र है। ब्रह्मा की यह पवित्र यज्ञ भूमि रही है। यह ज्ञान, विज्ञान, अध्यात्म, आस्था, मोक्ष , मीमांसा एवं विरासत की आदि भूमि है। मलमास मेला का वर्णन सनातन धर्म ग्रंथ वायुपुराण, अग्निपुराण और महाभारत में मिलता है। इसके अलावे जैन और बौद्ध साहित्य में भी इसका वर्णन है।
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (राम विलास )। अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन केंद्र राजगीर के दशरथ किला में बुधवार को साधु – संतों का समागम हुआ। इस समागम में राजगीर के धार्मिक मलमास मेला को राजकीय मेला का दर्जा को लेकर शंखनाद किया गया।
अखिल भारतीय महामंडलेश्वर स्वामी अंतर्यामीशरण जी महाराज की अध्यक्षता में आयोजित इस समागम में प्रस्ताव पारित कर मलमास मेला को राजकीय मेला का दर्जा देने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार से माँग की है।
महामंडलेश्वर स्वामी अंतर्यामीशरण ने कहा कि पंच पहाड़ियों और सुरम्य वन क्षेत्रों से घिरा राजगीर में अनंतकाल से मलमास मेला का आयोजन किया जाता है ।
उन्होंने कहा कि मठाधीशो ने इस पर गंभीर चर्चा किया। आजादी के 70 साल बाद भी इस मेला को राष्ट्रीय/राजकीय मेला का दर्जा नहीं मिलने पर नाराजगी भी व्यक्त किया।
बड़ी संगत के पीठाधीश विवेक मुनि ने कहा कि यज्ञ, आस्था और मोक्ष की इस पवित्र भूमि पर प्रत्येक ढाई से तीन साल पर मलमास मेला(पुरुषोत्तम मास) का आयोजन किया जाता है। एक महीने के इस मेले में देश के विभिन्न तीर्थो से साधु – संत और महात्मा बड़ी संख्या में यहाँ आते हैं। मान्यता है कि इस मेले में 33 कोटि देवी-देवता राजगृह में कल्पवास करते हैं।
उन्होंने कहा कि दुनिया का यह एकमात्र मेला है, जहां 33 कोटि देवी – देवता पधारते और एक महीने तक कल्पवास करते हैं।
कैलाश विद्धातीर्थ के महंत ब्रह्मचारी बालानंद ने कहा कि राजगृह अंतर राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय तीर्थस्थल भी है। यहां देश और दुनिया के सभी धर्मावलंबी बड़ी संख्या में पधारते और पुण्य प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि मलमास मेला के दौरान यहां के गर्मजल के कुंडो और झरनों में स्नान करने का वही पुण्य मिलता है, जो प्रयाग, उज्जैन, नाशिक, काशी और गंगा में स्नान का फल मिलता है।
उन्होंने कहा कि राजगृह में विश्व की सबसे पुरानी पहाड़ी है, जिसकी आयु हिमालय से भी बड़ी है। इसी राजगृह के वैभारगिरि पहाड़ी पर सप्तपर्णि गुफा में पहला बौद्ध संगीति हुआ था। यहां के जंगल, पहाड़ और नैसर्गिक वातावरण आदि – अनादि काल से देवी – देवताओं, ऋषि – मुनियों, महात्माओं और तपस्वी को आकर्षित करते रहा है।
गोपाल धाम के महंत मुकुन्दानंद सरस्वती ने कहा कि राजगीर का मलमास मेला राजकीय मेला के दर्जा पाने के सभी मानको- शर्तों को पूरा करता है। फिर भी इसकी उपेक्षा हो रही है । यह धर्म और मेले के महत्व के अनुरूप नहीं है।
नईपोखर ठाकुरबाड़ी के महंत लक्ष्मण शरण ने कहा कि सरकार की उपेक्षा की हद हो गई है। सरकार को हठ छोड़ राजकीय मेला का दर्जा देना चाहिए।
इस समागम में पुरैनी ठाकुरबारी के जय मंगल शरण जी, कतरासीन (गया) के राम बजेन्द्राचार्य, करियन्ना छोटी ठाकुरबारी के सुरेश दास जी, सदगुरु कबीर ज्ञान आश्रम के महंत उत्तम दास जी, सद्गुरु कबीर आश्रम के द्वारिका दास जी, रीषिकेष के स्वामी औचित्यानन्द जी, बाबा अर्जुन दास, रामहरि पिण्ड के नंदलाल दास, किशोरी शरण जी, विजय आनंद, राम सुहावन शरण, अखिल भारतीय तीर्थ पुरोहित महासभा के राष्ट्रीय मंत्री डॉक्टर धीरेंद्र उपाध्याय सहित अनेक संत महंत शामिल हुए।