एक्सपर्ट मीडिया न्यूज / जयप्रकाश नवीन । गुजरात में भाजपा की लगातार ‘डबल हैट्रिक’ ने साबित कर दिया है कि गुजरात में पीएम मोदी का किला अभेध है।उनका जादू अभी धूमिल नहीं हुआ है ।लेकिन पिछले चुनाव के मुकाबले भाजपा को इस बार 16 सीटें कम आयी है।जबकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह 150 सीटों से ज्यादा की जीत का सपना पाले हुए थें ।
मीडिया में आए एक्जिट पोल भी लगभग बीजेपी के पक्ष में थें ।ज्यादातर न्यूज चैनल भाजपा को अपने सर्वे में 130 से ज्यादा सीटों का आकलन कर रहे थे ।
गुजरात का चुनाव कोई मामूली चुनाव नहीं था।गुजरात चुनाव पीएम मोदी के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ था ।गुजरात चुनाव हारने का मतलब था देश की राजनीति पर इसका व्यापाक असर होना ।
भाजपा पिछले पाँच बार से गुजरात में काबिज है।छठी बार चुनाव जीतना और वो भी एंटी इंकम्बेंसी में कोई मामूली बात नहीं थीं । इस इंटी इंकम्बेसी में 182 में लगभग 100 सीट जीतना खराब प्रदर्शन नही कहा जा सकता है।
गुजरात का चुनाव बीजेपी ने नही लड़ी थी।यह चुनाव लड़ा था पीएम मोदी ने।वो भी संसद की शीतकालीन सत्र को बीच में रोककर।
पीएम लड़े और जीतकर भी दिखाया ।
यह चुनाव भी दिल्ली और बिहार की तरह याद किया जाएगा । पिछले चुनाव की तरह इस बार भी चुनाव में चुगलियां,आक्षेप, सियासी अनबन, हिन्दू -मुस्लिम, पाकिस्तान, ‘नीच’, जनेउधारी ,असली नकली हिन्दूत्व की बात भाषणों में सुनाई पड़ती थी। सोशल एवं परम्परागत मीडिया ने भी इस लपट को दावानल में बदल दिया ।
भारतीय राजनीति में कोलाहल की संस्कृति पैदा हो गई थीं ।पहले पीएम मोदी दिल्ली चुनाव में अरविंद केजरीवाल के गोत्र पर सवाल खड़ा किया था। फिर बिहार चुनाव में सीएम नीतीश कुमार के डीएनए पर ।
लेकिन जब गुजरात चुनाव में कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने ‘नीच’ शब्द का कथित प्रयोग किया तो पीएम उबल पड़े ।कांग्रेस को आड़े हाथ लेना शुरू कर दिया ।जितना जहर उगलना था उन्होंने उगला ।
फिर गुजरात की जनता के बीच एमोनशल भाषण। पीएम मोदी अपने हर रैली में कहते फिरते रहे कि उनकी हार ,गुजरात की हार है, हिन्दूत्व की हार है। पाकिस्तान की जीत है।
पीएम मोदी 2014 में जिस गुजरात माॅडल यानी विकास के नाम पर सत्ता हासिल की थी।उस विकास को गुजरात में भूल गए ।कई प्रकार के जुमले गुजरात चुनाव में गूंजने लगें ।
नोटबंदी और जीएसटी दो ऐसे मुद्दे थे जिनसे कांग्रेस को बहुत उम्मीद थी।कांग्रेस को लग रहा था ‘गब्बर सिंह टैक्स’ का नारा काम कर जाएगा, गुजरात के सूरत जैसे बड़े शहर में जहाँ विधानसभा की 16 सीटें हैं, वहाँ बहुत बड़े पैमाने पर जीएसटी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन भी हुए थे, लेकिन ऐसा लग रहा है कि सूरत जैसे कारोबारी शहर में भी लोगों की नाराज़गी को मोदी ने कांग्रेस के वोट में बदलने से रोक दिया।
दो सामाजिक आंदोलन ऐसे थे जिनमें ‘हिंदुत्व की काट’ करने की क्षमता विश्लेषकों को दिख रही थी, पहला पाटीदार आंदोलन और दूसरा अल्पेश ठाकोर के नेतृत्व वाली ओबीसी गोलबंदी। इन दोनों आंदोलनों में उमड़ने वाली भीड़ और अल्पेश ठाकोर के कांग्रेस में शामिल होने के बावजूद मोदी बीजेपी की नैया पार ले गए।
गुजरात में एक और बड़ा मुद्दा था जिस पर राहुल गांधी ने ख़ासा ध्यान दिया, वह था किसानों को कपास और मूंगफली की सही कीमत दिलाने का। राहुल गांधी ग्रामीण सभाओं में किसानों के हितों का मुद्दा ज़ोर-शोर से उठाते रहे।
शायद यह उसी का असर था कि ग्रामीण इलाक़ों में कांग्रेस का प्रदर्शन बीजेपी से बेहतर रहा है, लेकिन गुजरात जैसे शहरीकृत राज्य के लिए वह नाकाफ़ी रहा। वहाँ भाजपा का असर दिखा ।
कुल मिलाकर, कांग्रेस ने 2012 के मुक़ाबले 20 अधिक सीटें हासिल की हैं। जिससे उसका हौसला तो बढ़ेगा, लेकिन पार्टी के तौर पर उसका अपना जनाधार शायद ही बढ़ा है, ये तीन नए युवा नेताओं–हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवानी–की कमाई है।
कांग्रेस के लिए एक ही सांत्वना की बात है कि उसके नए अध्यक्ष राहुल गांधी मोदी के घर में तगड़ी लड़ाई लड़के विपक्ष का नेता होने का हक़ हासिल कर चुके हैं ।
गुजरात चुनाव परिणाम से ज़ाहिर हो गया है कि अगले साल होने वाले राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में गुजरात जैसा ही प्रचार देखने को मिलेगा, मुद्दे हवा होंगे और मोदी हावी होंगे क्योंकि कर्नाटक छोड़कर बाक़ी राज्यों में भाजपा को सत्ता बचानी है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो गुजरात की जीत भाजपा के लिए पहली और आखिरी जीत नही है। आने वाले 2018 में उसे अपने कई और गढ़ बचाने की चुनौती होगी। फिर 2019 का चुनाव भी काफी करीब होगा।
जहाँ देखना है पीएम मोदी -अमित शाह की जोड़ी भाजपा को कहाँ तक ले जाती है। साथ ही इन चुनाव से कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी के भविष्य के साथ दशा और दिशा का भी निर्धारण होना तय है।