बकौल सीएम नीतिश कुमार, बिहार में सुशासन है। उनके गृह जिले में तो वेशक है। पुलिस-प्रशासन उनकी जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है। लेकिन उसे किस रुप में परिभाषित किया जाये, यह बड़ा मुश्किल है।
नालंदा में एक पत्रकार ने मैट्रिक परीक्षा के दौरान आरा से हुये एक कथित प्रश्न पत्र लीक मामले को नालंदा डीएम-डीईओ को भेजा। पटना डीसी को भेजा। जब कहीं से कोई नोटिश नहीं ली गई तो उसने एक व्हाट्सएप्प ग्रुप में डाल दिया।
इससे पुलिस प्रशासन को इतनी मिर्ची लगी कि उसने घंटों में उस पत्रकार को तीन थानों की पुलिस से उठवा लिया। बिना कोई पड़ताल किये उसे जेल में डाल दिया गया। केस करने वाला नालंदा डीईओ था और जेल भेजने वाली नालंदा पुलिस।
यह सब नालंदा डीएम के कड़े तेवर का कमाल था ! और नालंदा एसपी के साईबर एक्सपर्ट की अतुल्नीय फौरिक जांच का नतीजा! हालांकि उस पीड़ित पत्रकार ने अपनी सूचना में उस नंबर का भी उल्लेख किया था, जिससे उसे कथित वायरल सूचना प्राप्त हुई थी। लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। शायद यहां के साईबर एक्सपर्ट उस स्पष्ट नाम व नंबर को महीनों तक ट्रेस नहीं कर पाये।
इधर, राजगीर मलमास मेला के दौरान कुछ असमाजिक तत्वों ने सोशल मीडिया पर झूला टूटने व लोगों के हताहत होने की झूठी अफवाह फैलाई। इससे मेला में भगदड़ मची। कई लोगों को चोटें आई।
इस अफवाह से मेला का आनंद लेने पहुंचे देश लाखों पर्यटक-श्रद्धालुओं के परिजन भी व्याकुल हो उठे। एक बड़ा दहशत का महौल बन गया था। वेशक वह अफवाह एक अक्षम्य अपराध की श्रेणी में आता है। ऐसे अफवाहबाजों पर कड़ी कार्रवाई हर हाल में होनी चाहिये।
इस अफवाह पर नालंदा डीएम ने कहा था कि सोशल मीडिया के ऐसे अफवाहबाजों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जायेगी। नालंदा एसपी का दावा था कि अफवाह फैलाने वालों पर पुलिस कड़ी नजर रखे हुए है। वे जल्द ही साइबर सेल की गिरफ्त में होंगे।
तब स्थानीय मीडिया वालों ने भी नालंदा डीएम-एसपी के तत्परता और फौरिक कार्रवाई के ढिंढोरे की बड़ी-बड़ी सुर्खियां बनाई।
लेकिन घटना के करीब दो माह बाद भी नालंदा का साईबर सेल और उसके एक्सपर्ट अब तक किस नतीजे पर पहुंचे हैं, इस सवाल का जबाव किसी के पास नहीं है।
आश्चर्य की बात है कि उस संबंध में किसी थाने में कोई मामला भी दर्ज हुआ था या नहीं? यह भी किसी को नहीं पता है।