मनमानी और लूट का अड्डा बने प्रज्ञा केन्द्र और बरगलाते अफसर

    रांची। सीएम रघुवर दास ने स्थानीय नीति तय कर दी है। लेकिन शैक्षणिक या नियोजन के लिये आवश्यक जाति, आय और आवास प्रमाण पत्र निर्गत करने वाली तंत्र से जुड़े लोग तरह-तरह की अनर्गल बहानेबाजी कर जरुरतमंद लोगों को परेशान कर रहे हैं।

    राजधानी रांची और उसके आसपास के क्षेत्रों में सबसे बुरी हालत नीजि हाथों से संचालित प्रज्ञा केंद्रों की है। यहां खुद फार्म छपवा कर मानमाने दामों पर बेचें जा रहे हैं। कहीं-कहीं तो वे खुले बाजार में चिन्हित दुकानों से प्रति फार्म 40 से 60 रुपये खरीदवाने को वाध्य करते हैं।

    ओरमांझी प्रखंड मुख्यालय के ठीक सामने पंचायत भवन में संचालित प्रज्ञा केन्द्र में बिना 32 के खतियान संलग्न किये फार्म लेने से ही इंकार कर दिया। जबकि सरकार द्वारा तय स्थानीय नीति में कई विकल्प भी दिये गये हैं।

    जाति प्रमाण पत्र के लिये खतियान की प्रतिलिपि के आलावे जमीन संबंधी कागजात (जिसमें जाति का वर्णन हो), समाज या संस्था का प्रमाण पत्र व अन्य के विकल्प दिये गये हैं।

    लेकिन खतियान के आलावे अन्य विकल्पों को दरकिनार किया जा रहा है। जाति प्रमाण पत्र निर्गत करने वाले प्रखंड विकास पदाधिकारी भी यह सबाल उठा रहे हैं कि खतियान के आलावे अन्य सभी विकल्पों में दर्ज जाति शब्द को सहीं अंकित कैसे मान लिया जाये। जबकि आवेदक से यह घोषणा संलग्न ली जाति है कि किसी भी प्रकार की गलत सूचना पाये जाने पर कानूनी कार्रवाई की जायेगी।

    आय प्रमाण पत्र के लिये आवेदक के आवेदन व घोषणा पर क्षेत्रीय राजस्व कर्मचारी द्वारा स्थाई पता एवं अन्य स्रोतों से जांच रिपोर्ट ली जाती है। इसमें 32 की जमीन खतियान की कोई जरुरत नहीं है।

    स्थानीय निवास प्रमाण पत्र निर्गत करने में भी वर्ष 1985 के पहले की खतियान मांगी जाती है। लेकिन सरकार द्वारा तय स्थानीय नीति के आलोक में और भी विकल्प दिये गये हैं। जैसे- झारखंड में जन्म से मैट्रिक तक पढ़ाई करना। उसके माता पिता का राज्य सरकार के प्रतिष्ठानों में नियोजित रहना और इस दौरान या इसके बाद राज्य में चल-अचल संपति के साथ बसर कर जाना।

    error: Content is protected !!
    Exit mobile version