रांची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। रांची जिले के ओरमांझी एनएच-33 फोर लेन किनारे अवस्थित भगवान बिरसा जैविक उद्यान में जिस महावत (पशुपालक) महेन्द्र सिंह ने रामू नामक हाथी को 12 वर्षों तक पाल-पोस कर बड़ा किया, उसी रामू ने अपने सेवक को पटक-पटक कर मार डाला।
यह घटना उस समय घटी, जब महावत महेन्द्र सिंह अपने दो सहयोगियों के साथ अपने प्रिय रामू की पीठ पर बैठ उसे मॉर्निंग वाक करा रहे थे कि अचानक सबों को गिरा दिया और महेन्द्र सिंह को सूढ़ से पटक-पटक कर मार डाला और किनारे झाड़ी में फेंक दिया। उन्हें आनन-फानन में ईरबा मेदांता अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
बताते हैं कि रामू हाथी को वर्ष 2006 में सरायकेला रेंज से भगवान बिरसा जैविक उद्यान लाया गया था। तब उसकी उम्र मात्र 3 साल थी। वह सरायकेला जंगल में अपने झुंड से बिछड़कर गड्ढे में गिर गया था। यहां महेन्द्र सिंह ने ही उसे पाला। अभी वह 12 साल का है।
पशुपालक महेंद्र सिंह के साथ हाथी केज में काम करने वाले चुन्नी लाल और बैजनाथ महतो ने बताया कि उस्ताद महेंद्र सिंह ने अपनी जान गंवाकर हम दोनों की जान बचा लिया। हाथी केज में काम करने वाले सभी कर्मचारी महेंद्र सिंह को उस्ताद ही कहकर पुकारते थे।
चुन्नी लाल और बैजनाथ ने बताया कि रविवार की सुबह सात बजे तीनों केज के पास। वहां सबसे पहले उन्होंने रामू को केज से निकाला। महेंद्र सिंह प्रतिदिन की तरह रामू को घुमाने के लिए उसके ऊपर बैठकर निकल गये।
इंक्रोजर के अंदर एक चक्कर घूमने के बाद जब रामू वापस केज के पास पहुंचा तो अचानक वह भड़क गया। फिर वह हम दोनों की तरफ दौड़ा। हाथी को हमारी ओर बढ़ता देख उस्ताद ने हम दोनों को चिल्लाकर भागने को कहा।
उस्ताद की बात सुन हम दोनों वहां से भाग निकले, लेकिन रामू इस कदर भड़क गया था कि उसने अपने पालक को भी नहीं बख्शा और जान ले ली। अगर उस्ताद हमें भागने को नहीं कहते तो हम दोनों की जान भी रामू ले लेता।
घटना की सूचना पाकर महेंद्र सिंह की पत्नी ललिया देवी परिजनों के साथ मेदांता अस्पताल पहुचीं। महेंद्र का बड़ा बेटा दिनेश आर्मी में जबकि छोटा बेटा रामकुमार मध्य प्रदेश में बैंक में काम करता है। उनके आने के बाद ही शव का पोस्टमार्टम होगा।
बिरसा जैविक उद्यान में रविवार को हाथी के हमले में मारे गए पशुपालक सह स्वीपर महेंद्र सिंह को 1991 में डायरेक्टर फतेबहादुर सिंह पटना के संजय गांधी जैविक उद्यान से लाये थे।
वह 1991 से पशुपालक के पद पर काम कर रहे थे। पांच मई 2016 को उनकी नौकरी स्थायी हुई थी। महेंद्र ने इस जैविक उद्यान के दर्जनों जानवरों को स्वयं पाला। हाथी सम्राट और हाथी रामू के अलावा तेंदुआ के बच्चे को भी उन्होंने पाला। रामू और सम्राट से उनका खास लगाव था। बिरसा जैविक उद्यान के सबसे काबिल पशुपालक में महेंद्र सिंह की गिनती होती थी।
जैविक उद्यान के तीनों हाथी सम्राट, लखी रानी और रामू को महेंद्र ने ही पाला था। यह पता नहीं चल पा रहा है कि रामू हाथी को आखिर क्या हुआ कि वह भड़क गया और उसने पालने वाले को ही मार डाला।