एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले में पहले 17 जनवरी को पत्थलगड़ी समर्थकों और विरोधियों में टकराव। 19 जनवरी को बुरुगुलीकेरा में लगभग ढाई सौ लोगों की बैठक। जिसमें फिर पत्थलगड़ी समर्थक और विरोधियों में बहस…..
पत्थलगड़ी समर्थकों ने बुरी तरह मारपीट शुरू की। फिर उप मुखिया समेत सात लोगों को जबरदस्ती अपने साथ ले गये। गांव से थोड़ी ही दूरी पर ले जाकर हत्या कर दी। सोमवार को गांव वाले उन्हें खोजने निकले। पता नहीं चला। पुलिस को सूचना दी।
मंगलवार को भी पुलिस के हाथ कुछ नहीं लगा। मंगलवार को ही देर शाम यह खबर हवा में फैली की पत्थलगड़ी समर्थकों ने सात ग्रामीणों की हत्या कर दी। पूरे झारखंड में यह खबर फैल चुकी थी, फिर भी कोई अनजान था, तो वह था पुलिस महकमा।
देर रात तक पुलिसिया तंत्र को यह पता नहीं चला कि पत्थलगड़ी समर्थकों ने सात लोगों की हत्या कर दी है। विभिन्न समाचार पत्रों और चैनलों में यह खबर मंगलवार रात से ही सुर्खियों में थी।
लेकिन झारखंड के पुलिस तंत्र को बुधवार की सुबह आठ बजे तक यह पता नहीं चल पाया कि ग्रामीणों की हत्या हो गयी है। अब झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता सोचे कि इस पुलिसिया तंत्र के सहारे झारखंड का क्या भला हो सकता है।
हर महीने सूचना तंत्र को मजबूत करने के बहाने करोड़ों-करोड़ का खर्च, करोड़ों के तंत्र और हजारों की नियुक्ति, और परफारमेंस ऐसा कि 72 घंटे तक वह यह नहीं जान पाये कि आखिर हुआ क्या है।
बड़ा सवालः थाना, एसपी कार्यालय, डीआइजी कार्यालय, आइजी कार्यालय, पुलिस मुख्यालय, स्पेशल ब्रांच और सीआइडी के कर्तव्यनिष्ठ अफसरों को आखिर हो क्या गया है। उनका सूचना तंत्र और तेवर इतना कमजोर क्यों पड़ रहा है।
पुलिस चाहे तो जमीन में गड़ा मुर्दा उखाड़ लेती है और यहां 72 घंटे तक अजीब खामोशी। आखिर क्यों। क्या सचमुच में हमारा पुलिसिया तंत्र जंग खा चुका है या उनके खिलाफ कहीं कोई गहरी साजिश हो रही है। सवाल उठना लाजिमी है।