एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (मुकेश भारतीय)। वेशक नालंदा जिले के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि की बंदोवस्ती के दौरान अब जिस तरह की बातें सामने आई है, वे काफी चौंकाने वाले तो हैं हीं, स्थानीय शासन-प्रशासन-ठेकेदार की तिकड़ी के नापाक ‘खेला’ भी साफ उजागर करते हैं।
राजगीर अनुमंडलीय सभागार में 16 मई से 13 जून तक चलने वाले राजगीर मलमास मेला की बंदोवस्ती का ओपेन टेंडर हुआ। इसके लिये तीन दिन का समय निर्धारित था। लेकिन पहले दिन ही करीब आधे घंटे के भीतर सब कुछ फाईनल हो गया। इस फाईनल में कुल तीन लोग शामिल हुये।
पहला संजय सिंह नामक एक स्थानीय बड़े व्यवसायी ने दो करोड़ पांच लाख 51 हजार रुपये की सबसे अधिक बोली लगाई।
दूसरा संजय सिंह का भतीजा विवेक कुमार की प्रथम बोली दो करोड़ पांच लाख 37 हजार रुपये की थी।
तीसरे के बारे में अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि उनकी बोली कितनी की थी या फिर वे दोनों चाचा-भतीजा के शागिर्द थे।
हालांकि यहां पर स्पष्ट कर दें कि वर्तमान टेंडर होल्डर संजय सिंह ने एक्सपर्ट मीडिया न्यूज के साथ बातचीत में साफ तौर पर कहा था कि उनका भतीजा विवेक कुमार उनके विरोध में था और वह उन्हें मदद नहीं बल्कि डिस्टर्व करने की मंशा से टेंडर प्रक्रिया में शामिल हुआ था।
संजय सिंह के नाम टेंडर की घोषणा होते ही अन्य कई दावेदार ठेकेदारों में हड़कंप मच गई। उसमें कई लोग विरोध में उतर आये। उन्होंने सीधे राजगीर एसडीओ को कटघरे में खड़ा कर दिया।
उन सबों ने इस टेंडर प्रक्रिया की शिकायत नालंदा डीएम डॉ. त्यागराजन एस एम से की।
डीम ने इस पर तत्काल संज्ञान लिया और सारे मामले की गहन पड़ताल के लिये बिहारशरीफ नगर आयुक्त सौरभ जोरवार को राजगीर भेजा।
कहते हैं कि नगर आयुक्त के समक्ष ‘राजगीर जांच’ के दौरान सभी शिकायतकर्ताओं ने टेंडर प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति विशेष के पक्ष में मनमानी बरतने के आरोप दुहराये और ‘री टेंडर’ की मांग की।
तब नगर आयुक्त ने कहा कि अगर किसी संवेदक को किसी कारणवश अधिक बोली लगाने का अवसर नहीं मिला है तो उन्हें नियमानुसार समुचित अवसर दिया जायेगा।
उन्होंने कहा कि किसी भी सैरात बंदोवस्ती में प्रयास होना चाहिये कि सरकार को अधिक से अधिक राजस्व मिले। सारी प्रक्रिया इसी दृष्टिकोण से अपनाई जाती है। अगर इसमें कहीं कोई गड़बड़ी हुई है तो यह अलग बात है।
उन्होंने इसके बाद कहा था कि आगे मामले की अन्य पहलुओं की गंभीरता से जांच की जा रही है। सभी लोगों का पक्ष लिया जा रहा है। विशेष जांच पूरी होने के बाद ही आरोपों के निष्कर्ष तक पहुंचा जायेगा।
बिहारशरीफ नगर आयुक्त सौरभ जोरवार फिलहाल सरकारी कार्यों से पटना में हैं। उन्होंने कहा कि इस मामले पर वापस मुख्यालय लौटते ही आगे की संभावित कार्रवाई को नये सिरे से देखेगें।
बहरहाल, खबर है कि राजगीर मलमास मेला सैरात बंदोवस्ती में कोई बदलाव नहीं होगा। नगर पंचायत के कार्यपालक पदाधिकारी और नगर प्रबंधक बीते दिन सोमवार को शाम पांच बजे तक सभागार में बाट जोहते रहे, लेकिन एक व्यक्ति को छोड़कर कोई नहीं आया। वह भी बोली लगाने के लिये तय रकम जमा नही सका। नतीजतन टेंडर संजय सिंह के नाम आवंटित कर दी गई।
अब सबाल उठता है कि पूरे टेंडर प्रक्रिया पर सबाल उठाने वाले कहां गये। तीन करोड़ तक की बोली लगाने के ढिढोंरे पीट समूचे शासन-व्यवस्था को खड़ा करना आसान है लेकिन, सच का सामना करना उतना ही मुश्किल। खासकर उस परिस्थिति में जब सब कुछ पहले से ही तय हो।
तय सिर्फ यह नहीं कि टेंडर किस नाम होना है। तय यह भी कि उस टेंडर में शागिर्दगी में किस तरह के कब क्या और कैसे खेल खेला जाना है। लेकिन इस बार जिस तरह के खेला किया गया है, उस आलोक में टेंडर प्रक्रिया में धांधली की शिकायत करने व ऊंची बोली लगाने का दावा करने वालों के खिलाफ कड़ी जांच-कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
जिला प्रशासन को ऐसे लोगों की पहचान कर समूचे मलमास के दौरान उन्हें तड़ीपार कर देनी चाहिये। क्योंकि जितना पौराणिक सच है कि राजगीर मलमास मेला के दौरान कौवे शोभा नहीं देते।
उतना ही कटु सत्य है कि एक लोमड़ी ने जिस तरह से टेंडर मैनेज किया, उसके बाद कुछ गीदड़ों ने उसमें अपनी हिस्सेदारी के लिये हर स्तर पर हुआं-हुआं मचाया।
सबसे बड़ी बात कि डीएम ऑफिस कोई पुलिस स्टेशन नहीं है कि जब चाहे कोई किसी के खिलाफ सनहा दर्ज कर आये और थाना प्रभारी जब अनुसंधान कर एफआईआर की तैयारी कर ले तो दोनों पक्ष समझौता कर भाग खड़ा हो।
डीएम ‘डिस्टीक मजिस्ट्रेट’ होते हैं। उनके फैसले जन-सरकार हित में अंतिम होते हैं। अगर ऐसे मामले में कड़ाई नहीं बरती गई तो जन और सरकार के बीच विश्वास की दरकती कड़ी का टूटना तय है।
‘मलमास मेला सैरात बंदोबस्ती अनियमियता के राजगीर एसडीओ हैं माइंड मास्टर !’