अन्य
    Saturday, April 20, 2024
    अन्य

      छुटनी के संघर्षों को भूल गई सरकार!

      chhutni dyne angest 3

      “….जरा सोचिए अगर किसी महिला को डायन कहकर पुकारा जाए, और उसे प्रताड़ित किया जाए तो उस महिला पर क्या बीतती होगी। वैसे इसका एहसास पीड़ित महिला से अधिक और किसी को नहीं हो सकता…”

      chhutni dyne angest 2एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। वेशक डायन प्रताड़ना यह एक ऐसा शब्द होता है, जिसे सुनकर किसी भी महिलाओं के रोंगटे खड़े हो जाए। लेकिन सरायकेला- खरसावां जिला की छुटनी महतो एक ऐसी महिला है, जिसने 1995 से इस दर्द को जिया है। आज अपने दर्द को सीने में समेटे छुटनी ने पूरे झारखंड की लगभग 175 महिलाओं के लिए अकेले इंसाफ की लड़ाई लड़ी और उनका पुनर्वास भी कराया।

      बतौर छुटनी साल 1995 में अपने ही परिवार के लोगों ने डायन कहकर दो दिनों तक निर्वस्त्र रखा, मैला पिलाया और कुल्हाड़ी से सर पर वार कर मारने का प्रयास किया, पति ने भी साथ छोड़ दिया

      इससे अधिक अमानवीय अत्याचार और क्या हो सकता है, लेकिन संघर्ष का दूसरा नाम छुटनी महतो है। जिसने इतना जुल्म सहने के बाद भी हौसलों को मरने नहीं दिया और जुट गई इस अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़ने में।chhutni dyne angest 1

      सरायकेला के बीरबाँस में बनाया ठिकानाः ससुराल से ठुकराई गई छुटनी को मायके वालों का भरपूर साथ मिला। पिता ने सरायकेला- खरसावां जिला के बीरबाँस में पैतृक जायदाद में हिस्सा दिया। जहां छुटनी अपने दो बच्चों संग शरण लिया। अब दोहरी जिम्मेदारी.. बच्चों का भरण पोषण और इस कुप्रथा के खिलाफ लड़ाई।  फिर शुरू हुआ छुटनी का संघर्ष यात्रा…

      जिला के साथ-साथ पूरे राज्य में कहीं भी डायन प्रताड़ना का मामला हो, छुटनी बगैर किसी सहारे के वहां पहुंच जाती, और उसके साथ इंसाफ की लड़ाई में अकेले कूद पड़ती। धीरे- धीरे छुटनी डायन के नाम पर प्रताड़ित करने वालों के लिए काल का दूसरा नाम के रूप में जानी जाने लगी।

      छुटनी के इस जज्बे को देखते हुए जमशेदपुर की स्वयंसेवी संस्था का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट हुआ और संस्था ने छुटनी की जमीन पर तीन कमरों का एक भवन बनवाया, जिसमें छुटनी डायन प्रताड़ना की शिकार महिलाओं को लाकर उन्हें मानसिक रूप से मजबूत बनाती और उसके लिए लड़ाई लड़ कर उसका पुनर्वास कराने तक हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराने लगी।

      इस तरह से छुटनी अपने लिए और डायन  पीड़िताओं के लिए संघर्ष करते हुए अब तक लगभग डेढ़ से पौने दो सौ महिलाओं को इंसाफ दिला चुकी है।

      बतौर छुटनी इस लड़ाई को अकेले लड़ना आसान नहीं था, लेकिन मैं हार जाती तो न जाने कितनी महिलाओं का आज इस कुप्रथा के चलते जीवन नर्क हो जाताchhutni dyne angest 5

      छुटनी के इस छोटे से सेंटर में जिले के आला अधिकारियों के साथ सामाजिक संस्थाओं के लोग भी पहुंचते हैं। लेकिन आज छुटनी को इस बात का इंतजार है कि कोई तो सामने आए जो यहां एक बड़ा रिहाइब्लेशन सेंटर बनाए। ताकि डायन प्रताड़ना की शिकार महिलाओं को यहां पुनर्वासित करने से लेकर उन्हें रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण देकर समाज की मुख्यधारा में जोड़ने का काम करे।

      छुटनी बताती है अब तक उसने अपने दम पर अकेले इस लड़ाई को लड़ा, लेकिन अब उसका शरीर साथ नहीं दे रहा बगैर सरकारी सुविधा के अब इस संस्थान को चलाने में छुटनी खुद को असमर्थ बता रही।

      छुटनी बताती है, झारखंड का शायद ही कोई बड़ा नेता, अधिकारी या सामाजिक संस्था होगा जो उसके संघर्षों से अवगत नहीं हो , लेकिन छुटनी बताती है सभी केवल उसके और उसके संघर्षों के साथ सहानुभूति रखते हैं, लेकिन जब किसी सहयोग की बात आती है तो कोई साथ देने नहीं आता। यहां तक कि जिले के डीसी और एसपी भी मिलने से कतराते हैं।

      अवार्ड से ज्यादा सम्मान की चिंताः एक सवाल के जवाब में छुटनी ने बेहद गंभीर मुद्रा में जवाब देते हुए कहा,  अवार्ड से ज्यादा सम्मान की चिंता है। आज महिलाओं की स्थिति बद से बदतर हो रही है। उसके लिए सरकार बेहतर इंतजाम करे। शासन-प्रशासन को गंभीर बनाए।11

      महिला उत्पीड़न, डायन प्रताड़ना, बाल अपराध, बाल- विवाह आदि सामाजिक कुरीतियों पर दिखावा से ज्यादा जमीनी काम हो इस पर सरकार ध्यान दे। छुटनी बताती है समाज के कुछ लोग, कुछ संस्थाएं उसे सम्मान दे रहे उसके लिए यही अवार्ड है।

      लेकिन सीमित संसाधनों के बीच छुटनी ने जो अदम्य साहस का परिचय देते हुए  इस लड़ाई को छेड़ा है, निश्चित तौर पर  यह 21वीं सदी में महिलाओं के लिए वो लड़ाई है, जिसे  लड़ने के लिए  सरकार के पास  कोई ब्लूप्रिंट नहीं है। और छुटनी ने इस लड़ाई को  लड़कर डायन पीड़िताओं को इंसाफ दिलाकर सरकार को  आइना दिखाने का काम किया है।

      निश्चित तौर पर छूटनी भी  “पद्मश्री”  सम्मान की हकदार है। भले इस सरकार ने  छटनी की अपेक्षा की हो, लेकिन मानना है कि अगली कोई भी सरकार  आती है तो निश्चित तौर पर  छुटनी के  संघर्षों को देखते हुए  उसके लिए  विचार करेगी, और उसके  आंदोलन में समान रूप से  भागीदार बनेगी। तब जाकर  छुटनी का  सपना साकार होगा। 

      धन्य है सरायकेला की धरती, जिसने छुटनी जैसी देवी को  शरण दिया। धन्य है सरायकेला की धरती, जहां से उन्होंने डायन पीड़ित महिलाओं की आजादी  के लिए संघर्ष यात्रा शुरू की।

      ……सरायकेला के बीरबाँस से लौटकर संतोष कुमार की रिपोर्ट

      संबंधित खबरें
      error: Content is protected !!