राजगीर (संवाददाता)। एक ओर नालंदा विश्वविद्यालय अपनी चमके बिखेर रहा है और वहां देश-विदेश से छाक्ष-छात्राएं पठन-पाठन के लिये आ रहे हैं, वहीं आपको यह जान कार आश्चर्य होगा कि राजगीर क्षेत्र में आजादी के इन सात दशक में एक भी स्नातक कॉलेज नहीं खुल सका है। सबसे अधिक परेशानी छात्राओं को उठानी पड़ती है। वे इंटर के बाद ही न चाहते हुये भी पढ़ाई छोड़ने को बाध्य हैं।
विकास की ढिंढोरे पीटने वाली नातीश सरकार के नुमाइंदे आम लोगों की मांग-आंदोलन पर 23 अगस्त,2015 को राजगीर में एक डिग्री कॉलेज भवन निर्माण कार्य का शिलान्याश तो किये गये लेकिन, आगे कोई उल्लेखनीय कार्य अब तक नहीं हो सके हैं।
शिलान्याश पट्ट के अनुसार बिहार राज्य शैक्षणिक आधारभूत संरचना विकास निगम लि. की ओर से माननीय शिक्षामंत्री प्रशांत कुमार शाही ने राजगीर डिग्री कॉलेज भवन निर्माण कार्य का शिलान्यास किया था। उस मौके पर जिले के इकलौते संसदीय एवं ग्रामीण कार्य विभाग मंत्री श्रवण कुमार भी उपस्थित थे।
लेकिन 18 माह बाद भी शिलान्यास पट्ट के चारो ओर की स्थिति जस की तस बनी हुई है। डिग्री कॉलेज के निर्माण के नाम पर कोई खास कार्य नहीं हुये है। इस निर्माण केनाम पर फंतासी का सबसे बड़ा लोचा है कि शिलापट्ट पर योजना रशि और निर्माण लक्ष्य तक अंकित नहीं है, जो साफ स्पष्ट करता है कि सरकार और उसके स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मंशा कितनी विकासपरक है।
कहते हैं कि शिलान्यास के समय क्षेत्रीय मंत्री श्रवण कुमार ने कहा था कि उक्त डिग्री कॉलेज किसी भी सूरत में 15 माह के भीतर बनकर पूर्णतः तैयार हो जायेगा और यहां के छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षणसे बंचित नहीं होना पड़ेगा।
उन्होंने यह भी कहा था कि इस कॉलेज का प्रशासनिक भवन तीनमंजिला होगा। प्रशासनिक भवन सह शैक्षणिक भवन सहित अन्य सभी तरह के सुसज्जित व्यवस्था तय होगी, इसमें 12 कक्ष, 4 प्रयोगशाला कक्ष, प्रधान-उप प्रधान कक्ष, स्टाफ रुम सब शामिल होगा।
लेकिन आज शिलान्यास के 18 माह भी कार्य में कोई प्रगति नहीं है और काम के नाम पर वहां दो-चार ईंटें बिखरे पड़े दिखते हैं।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पूर्व नगर मंत्री अनुपम कुमार कहते हैं कि राजगीर में अदद डिग्री कॉलेज खोलने को लेकर जोरदार आंदोलन किया गया था। उसके बाद आनन फानन में शिलान्यास किया गया लेकिन लोगो को अब समझ में आ रहा है कि चुनाव पूर्व शिलान्यास की नियत ठीक न थी।
वहीं रुपा कुमारी नामक छात्रा कहती है कि उन्होंने राजगीर से इटर करने के बाद बिहारशरीफ के एक कॉलेज में नामांकण कराया लेकिन रोज 20-25 किलोमीटर का सफर तय करना उसके आर्थिक वश में नहीं रहा। नतीजतन उसे बीच में स्नातक की पढ़ाई छोड़नी पड़ी। रुपा जैसे हजारों छात्राएं कॉलेज न होने के कारण आगे की पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं।