“अतिक्रमणकारी भू-माफियाओं के हमाम में सब नंगे हैं और उनकी नंगई का नतीजा ही है कि पटना प्रमंडलीय आयुक्त सह लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी आनंद किशोर के आदेश के आलोक में गरीबों के आशियानों पर बुलडोजर चला दिये गये और अमीर दबंगों की अट्टालिकाएं लहरा रही है।”
न्यूज डेस्क/मुकेश भारतीय। अमीरों पर रहम और गरीबों पर सितम। आखिर यह कैसा कानून-प्रशासन है? यदि हम राजगीर के आरटीआई एक्टीविस्ट पुरुषोतम प्रसाद द्वारा दायर परिवाद पर पटना प्रमंडलीय आयुक्त सह लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी आनंद किशोर द्वारा मलमास मेला सैरात भूमि से अतिक्रमण हटाने के आदेश के आलोक में हुई कार्रवाई का अवलोकन करें तो उपरोक्त सवाल मस्तिष्क में कई कौंध पैदा करते हैं।
बता दें कि किसी भी सैरात भूमि को किसी स्तर से न तो उसकी खरीद-बिक्री की जा सकती है और न ही उसकी बंदोबस्ती, लीज आदि।
अब सबाल उठता है कि एक तरफ जहां गरीब लाचार अतिक्रमणकारियों के घरों कों बुल्डोजर से रौंद दिया गया वहीं, बड़े मठाधीशों भूमाफियों को किस आधार पर छोड़ दिया गया। नालंदा लोक शिकायत निवारण प्राधिकार या प्रमंडलीय लोक शिकायत निवारण प्राधिकार के आदेश के बाद यदि न्यायालय के किसी आदेश के तहत ऐसा किया गया है तो प्रशासन ने न्यायालय में सुसमय अपना पक्ष क्यों नहीं रखा।
बहरहाल, राजगीर नगर पंचायत के कार्यालय पदाधिकारी शिवशंकर प्रसाद द्वारा तात्कालीन अंचलाधिकारी विश्वनाथ प्रसाद को कार्यालय पत्रांक-46 दिनांक 12.01.2015 को भेजे पत्र, जिसकी प्रतिलिपि भूमि सूधार उप समाहर्ता राजगीर, अपर समाहर्ता नालंदा, जिला पदाधिकारी, नालंदा, पटना प्रमंडलीय आयुक्त, सचिव नगर विकास विभाग एवं आवास विभाग पटना, प्रधान सचिव, भू राजस्व विभाग पटना, बिहार सरकार को सूर्चनार्थ प्रेषित की गई थी, उस पर किसी स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।
उस पत्र में साफ लिखा गया था कि राजगीर नगर पंचायत के नियंत्रणाधीन मलमास मेला सैरात भूमि एवं राजगीर नगर निवेशन प्राधिकार की अर्जित भूमि के विभिन्न भूखंडों का जमाबंदी अंचल कार्यालय द्वारा निजी व्यक्तियों के नाम से सृजित कर दिया गया है। जिसके कारण आये दिन निजी व्यक्तियों द्वारा उक्त भू-खंडों पर अपना दावा पेश करते हुये भूमि कब्जा दिलाने हेतु विभिन्न स्तरों पर आवेदन समर्पित किया जा रहा है।
पत्र में यह भी साफ तौर पर लिखा गया था कि उपरोक्त भूमि महत्वपूर्ण सरकारी संपति है। इसके एक बड़े भू-भाग पर कई अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा अतिक्रमण कर लिया गया है।
पत्र के अंत में लिखा है कि वर्णित सभी भू-खंडो में जिन-जिन भू-भाग का जमाबंदी राजगीर अंचल कार्यालय द्वारा निजी व्यक्तियों के नाम से सृजित किया गया है, उन सभी निजी जमाबंदी को निरस्त करने का प्रस्ताव सर्वोच्च प्राथमिकता प्रदान करते हुये करें।
अब सबाल उठता है कि ढाई साल पहले राजगीर नगर पंचायत पदाधिकारी के जमाबंदी करने के फौरिक कार्रवाई की पहल पर प्रशासनिक अधिकारियों ने अमल क्यों नहीं किया।
इससे इतर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर न्यायालय के कथित निर्देश का झांसा देने वालों के खिलाफ कभी कोई जिम्मेवार अफसरों ने सच स्पष्ट क्यों नहीं किया। कभी कोई उत्तरदायी सरकारी महकमा ने न्यायालय में अपना पक्ष क्यों नहीं रखा कि सैरात भूमि की अवधारणाएं दरअसल होती क्या है।
जाहिर है कि ऐसे उठते अनगिनत सबालों का प्रथम दृष्टया एक ही जवाब है कि राजगीर मलमास मेला की सैरात भूमि के असली अतिक्रमणकारी भू-माफियाओं के हमाम में सब नंगे हैं और उनकी नंगई का नतीजा ही है कि पटना प्रमंडलीय आयुक्त सह लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी आनंद किशोर के आदेश के आलोक में गरीबों के आशियानों पर बुलडोजर चला दिये गये और अमीर दबंगों की अट्टालिकाएं लहरा रही है।