(एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क /मुकेश भारतीय)। “आज कल राजनीति में चुनावी आहट के साथ एक नया नारा गूंजने लगा है- ‘नून-रोटी खाएंगें, फिर भी सत्ता में लाएंगे’। ठीक ऐसा ही नारा-‘आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को जिताएंगे’ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दी थी और इंदिरा गांधी चुनावोपरांत भारी मतो से विजयी होकर पुनः देश की बागडोर अपने हाथ कर ली थी…”
लेकिन, यह बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि इंदिरा जी की सत्ता वापसी के रास्ते नालंदा की माटी से ही निकले थे और इसी धरती से समूचे देश में उनकी उभरी अलग पहचान अंत तक कायम रही।
दरअसल वर्ष 1977 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। यहां तक कि इंदिरा जी भी बतौर पीएम अपनी सीट नहीं बचा सकीं। प्रधानमंत्री बने मोरारजी देसाई की जनता पार्टी सरकार के नौ महीने हुए थे, तभी बिहार के एक दूर दराज गांव माने जाने वाले नालंदा जिले के हरनौत क्षेत्र के बेलछी गांव में एक बड़ा जातीय नरसंहार हुआ। इस दलित नरसंहार में एक साथ कुल 11 लोग मारे गए और 6 लोग जख्मी हुए थे।
इसके बाद जनता की नब्ज पकड़ने में माहिर इंदिरा गांधी को एक बड़ा मौका मिल गया। क्योंकि तब की राजनीति का भी एक बड़ा सच था था कि दिल्ली की सत्ता बिहार-यूपी होकर ही गुजरती है।
बेलछी नरसंहार की वारदात की खबर सुनते ही इंदिरा गांधी हवाई जहाज से सीधे पटना और वहां से एम्बेस्डर कार से सीधे बिहारशरीफ पहुंच गई। तब तक शाम ढल गई और मौसम बेहद खराब हो गया। इतना खराब कि इंदिरा जी के वहीं फंस जाने की नौबत आ गई।
लेकिन वे रात में ही बेलछी पहुंचने की जिद पर डटी रही। स्थानीय कांग्रेस नेताओं ने भी उन्हें बहुत समझाया कि आगे का रास्ता बिल्कुल कच्चा और पानी से लबालब है, लेकिन सबको दरकिनार करते हुए वह पैदल ही चल पड़ी।
मजबूरन साथी नेताओं को उन्हें एक जीप में बैठाना पड़ा। लेकिन वह जीप भी थोड़ी दूरी बाद कीचड़ में फंस गई।
फिर उन्हें ट्रैक्टर में बैठाया गया, लेकिन रास्ता इतना खराब था कि कुछ दूरी बाद वह भी फंस गया।
इसके बाद मना करने के बाबजूद इंदिरा जी अपनी धोती थाम कर पैदल ही चल दी।
इसी बीच एक स्थानीय नेता ने तब गांव में उपलब्ध सवारी हाथी मंगाई।
इसके बाद इंदिरा और उनकी महिला साथी हाथी की पीठ पर सवार हो गईं।
बिना हौदे के हाथी की पीठ पर उस उबड़-खाबड़ रास्ते से इंदिरा जी ने अपनी जान हथेली पे लेकर पूरे साढ़े तीन घंटा लंबा सफर तय कर बेलछी गांव पहुंची।
और जब वह इस तरह बेलछी पहुंची तो सिर्फ दलितों को ही दिलासा नहीं हुआ, बल्कि वे पूरी दुनिया में सुर्खियों में आ गई। हाथी पर सवार उनकी ऐसी तस्वीरें हर तरफ छा गईं।
इससे हार के सदमें से घर में दुबके उनके कार्यकर्ता सड़क पर उतर आए। इंदिरा जी ने बेलछी दौरे के क्रम में गरीब, अति पिछड़ों, दलितों की जो दयनीय हालत देखी, उससे उठी कौंध ‘गरीबी हटाओ’ के विजयी नारे में बदल गई।
वेशक नालंदा की धरती से इंदिरा जी के ऐसे ठोस तेवर और गरीब-दलितों के प्रति संवेदनशीलता महज ढाई साल के भीतर जनता पार्टी सरकार के पतन और 1980 के मध्यावधि चुनाव के बाद सत्ता में वापसी का निर्णायक कदम माना जाता है।