“बिहार शरीफ नगर निगम की उप महापौर फूल कुमारी की कुर्सी चली गई। अब दोबारा कोई चमत्कार ही दिला सकता है, लेकिन उनकी कुर्सी जाने की असली वजह कोई अनियमियता या भ्रष्टाचार का मुद्दा नहीं है। क्योंकि इस हमाम में पूर्व हों या वर्तमान, कोई पूर्ण वस्त्रधारी नजर नहीं आते……….”
-: मुकेश भारतीय / एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क :-
इस खेल के पिछे पूर्व विधायक इंजीनियर सुनील की भूमिका न नायक की कही जा सकती है और न खलनायक की। हां उनमें एक विशुद्ध राजनीतिज्ञ की भूमिका समझ सकते हैं, जो होनी भी चाहिए।
बिहार शरीफ नगर निगम के पहले उप महापौर नदीम जफर उर्फ गुलरेज बने। उसके बाद उन्हें कुर्सी से बेदखल कर शंकर कुमार ने कब्जा जमा लिया।
उसके बाद इस कुर्सी के लिए नदीम जफर की भाभी गजाला परवीन और शंकर कुमार की पत्नी फूल कुमारी दोनों मैदान में उतरी। उस चुनाव में फूल कुमारी को 25 और गजाला परवीन को 21 वोट मिले। फुल कुमारी उप महापौर बनी।
अब फिर नदीम जफर की पत्नी शर्मीली परवीन इस चुनावी मैदान में शंकर कुमार की पत्नी फूल कुमारी के खिलाफ मैदाने जंग में उतरी है।
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार फूल कुमारी की कुर्सी जाने का सबसे बड़ा कारण सत्ताधारी जदयू की नालंदा जिले में हाई प्रोफाइल गुटबाजी है। पिछले लोकसभा चुनाव में शंकर ने राज्यसभा सदस्य आरसीपी सिंह खेमा में पार्टी प्रत्याशी का चुनाव प्रचार किया।
इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि बिहार शरीफ नगर निगम में भी वार्ड पार्षदों की खरीद-फरोख्त और हार्स ट्रेडिंग जमकर होती है।
यहां की स्थिति सट्टा बाजार से भी बद्दतर है। नालंदा की सियासत पर अपनी पकड़ मजबूत करने की मंशा रखने वाले इस भ्रष्टाचार को और भी बल देते आ रहे हैं।
बिहार शरीफ के किसी भी वार्ड में देख लीजिए। कोई भी योजना सलीके से अमलीजामा नहीं पहनाया जाता है। निगम के अंदर भी करोड़ो का खेला होता है। इसमें व्यवस्था का हर तंत्र बैटिंग-बॉलिंग-फिल्डिंग करते साफ नजर आते हैं, जो सियायतदार अंपायर द्वारा फिक्सड होता है।