“शराबबंदी कानून कहीं प्रचार-प्रसार और सस्ती लोकप्रियता तो नहीं थी। इस कानून से भले लोकप्रियता मिली होगी, लेकिन इसका दुरुपयोग हो रहा है। गांधी जी की तरह कोई बदलाव लाना अच्छी बात है, लेकिन कानून की सजा इतनी बड़ी नहीं होनी चाहिए……”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। पटना हाई कोर्ट ने शराबबंदी के आरोपियों को हाई कोर्ट ने अपरोक्ष राहत देते हुए नीतीश सरकार की मंशा पर कड़ी टिप्पणी की है।
हाई कोर्ट की एकल पीठ ने एक साथ जमानत के 40 मामले की सुनवाई करते हुए सवाल किया कि जिसे शराब पीने के आरोप में गिरफ्तार किया जाता है, क्या उसके द्वारा सेवन की गई बोतलों में मिली कथित शराब की विधि विज्ञान प्रयोग शाला (एफएसएल) द्वारा जांच की जाती है?
पीने वाले लोंगो की केवल माउथ एनालिस्ट से नहीं बल्कि एफएस एल जांच होना जरूरी है। जिस बोतल के आधार पर किसी को पकड़ा जाता है, उस बोतल में मिले द्रव्य की भी जांच होनी चाहिये कि उसमें था क्या।
न्यायाधीश अनिल कुमार उपाध्याय ने एक साथ सभी अभियुक्तों को जमानत देने की बात की, लेकिन फिलहाल मामले को एक महीने तक स्थगित करते हुए उत्पाद विभाग को बताने को कहा कि जितने अभियुक्त के मामले की सुनवाई होनी है, उसमें से शराब पीने वाले कितने अभियुक्तों की बोतलों के विधि प्रयोगशाला में जांच हुई।
इस बात की जानकारी संबधित अधिकारियों को 4 मार्च देने को को कहा है।
दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि बड़ी संख्या में बोतलों और पॉलिथिन को नष्ट कर दिया गया है। इस जांच के अभाव में सैकड़ों शराब पीने के अभियुक्तों को मदद मिल सकती है।
अदालत ने कहा कि शराबबंदी कानून कहीं प्रचार-प्रसार और सस्ती लोकप्रियता तो नहीं थी। इस कानून से भले लोकप्रियता मिली होगी, लेकिन इसका दुरुपयोग हो रहा है। कानून बनाया जाता है तो सभी पक्षों को स्मरण करना चाहिए।
कोर्ट ने कहा गांधी जी तरह कोई बदलाव लाना अच्छी बात है, लेकिन कानून की सजा इतनी बड़ी नहीं होनी चाहिए।