“वेशक व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र के उत्थान की सारी रेखाएं नारी धमनियों से ही होकर गुजरती है। ऐसे में हम एक महिला को किसी अंतर्राष्ट्रीय दिवस की परिधि में नहीं रख सकते। हां, हम उनके त्याग और वात्सल्य की अवलोकन जरुर कर सकते हैं…”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। आइए इस प्रासंगिक मौके पर मिलिए बिहार की उन जाबांज महिलाओं से, जो महिला दिवस की सही परिभाषा गढ़ रही हैं। ये महिलाएं न केवल आधी आबादी की जान हैं, बल्कि पूरे समाज की शान हैं।
चाहे वह पटना की कानून व्यवस्था को नए सिरे से परिभाषित करने वाली किम शर्मा, जिन्हें बचपन में एक टीवी सीरियल उड़ान की नायिका कल्याणी सिंह ने इतना प्रभावित किया कि वह आईपीएस की बनकर मानी।
या फिर परिजनों के सवालों ‘शादी ही करनी है तो पढ़ कर क्या करोगी’ को बीपीएससी के सवालों से हल करने वाली होमगार्ड कमांडेंट तृप्ति सिंह।
बिहार ने पंजाब की बेटी हरप्रीत कौर की दिलेरी और ईमानदारी तो मुजफ्फरपुर शेल्टर होम कांड के दौरान ही देख ली थी। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि उनका आईपीएस बनने से पहले का जीवन किन-किन और किस-किस तरह के संघर्षों से होकर गुजरा है।
इन महिला दिवस पर इन तेज तर्रार महिला अफसरों की कहानी, इसलिए पढ़ी जानी चाहिए, ताकि हम यह समझ सकें कि महिलाओं ने वक्त के साथ खुद को कैसे बदला, गढ़ा और जीत हासिल की…ताकि बिहार की, भारत की बेटियां, आने वाले समय में नेपथ्य से निकल कर समाज के मंच पर अपनी आभा बिखेर सकें।
उड़ान सीरियल देख आईपीएस बने किम शर्मा
आईपीएस अफसर किम के बारे में जानने से पहले एक टीवी सीरियल की कहानी जानते हैं। सीरियल था ’उड़ान’। … यह एक साधारण परिवार की युवती ‘कल्याणी सिंह’ की कहानी है, जो हर स्तर पर लैंगिक भेदभाव से जूझती हुई आईपीएस अफसर बनती है।
इसी ‘उड़ान’ ने किम को जिंदगी में नई उड़ान भरने की प्रेरणा दी। स्कूली जीवन में ही ठान लिया कि मैं भी आईपीएस अफसर बनूंगी। पर राह आसान नहीं थी।
यूपीएसएस की परीक्षा में पहले ही प्रयास में वर्ष 2008 में आईपीएस के लिए चचनित हो गई। ट्रेनिंग के बाद पहली पोस्टिंग पटना में सिटी एसपी के पद पर हुई। ‘लेडी सिंघम’ की छवि बन गई।
तृप्ति सिंह : पढ़ाई के लिए जिन्हें संघर्ष करना पड़ा
होमगार्ड कमांडेंट तृप्ति सिंह को बचपन से ही वर्दी अच्छी लगती थी। परिवार का एक इंटर कॉलज था पर परिजन लड़कियों की उच्च शिक्षा के खिलाफ थे।
यूपी के जौनपुर की रहने वाली तृप्ति ने 12 वीं के बाद बीटेक किया और लक्ष्य बनाया भारतीय पुलिस सेवा। बीपीएससी के जरिए बिहार पुलिस सेवा के लिए चयनित हुई। होमगार्ड मुख्यालय में कमांडेंट के पद पर पोस्टेड हैं।
तृप्ति के मुताबिक ‘सफल हो गई तो लोगों में चेंज आया। मैं खुद सशक्त फील करती हूं। हर दायित्व का निर्वहन कर रही हूं। भारतीय पुलिस सेवा में जाने के लिए मेरा प्रयास जारी है।
हरप्रीत कौर : गांव के प्राइमरी स्कूल से पढ़ीं, आगे बढ़ीं
पंजाब के बरनाला के अलकड़ा गांव में 26 जून 1980 काे जन्मी हरप्रीत काैर ने 2009 में तीसरे प्रयास में यूपीएससी पास की थी। वह बिहार कैडर की तेज तर्रार आईपीएस अधिकारी हैं।
इनकी देख-रेख में ही बालिकागृह कांड की शुरूआती जांच हुई और ब्रजेश ठाकुर गिरफ्तार हुआ था। बताती हैं कि पहले और दूसरे प्रयास में यूपीएससी में पिछड़ने के बाद काफी डिप्रेशन में थी। भैया और भाभी ने मनोबल बढ़ाया।
मां और पापा से भी सहयाेग मिला। इसके बाद तीसरे प्रयास में 2009 में यूपीएससी पास किया। इनका ऑल इंडिया रैंक 143 वां आया था। पिछड़े और अपराध ग्रस्त हाेने के कारण इन्होंने बिहार कैडर को चुना।
आईएएएस से इस्तीफा दे आईपीएस ऑफिसर बनी लिपि सिंह
लिपि सिंह ने अपने कैरियर के पहले साल में ही बाहुबली अनंत सिंह को गिरफ्तार कर काफी सुर्खियां बटोरीं। लिपि सिंह की प्राइमरी स्कूलिंग उत्तर प्रदेश में हुई थी।
2011 में यूपीएससी द्वारा आयोजित इंडियन ऑडिट अकाउंट सर्विस की परीक्षा इन्होंने पास की थी। देहरादून में प्रशिक्षण के दौरान उन्होंने अवकाश लेकर दोबारा यूपीएससी की परीक्षा देनी चाही ताकि आईएएस या आईपीएस बन सकें।
सिंह को एकेडमी से छुट्टी नहीं मिली तो इन्होंने इंडियन ऑडिट अकाउंट से इस्तीफा दे दिया।
निधि रानी: जिन्हों मां-पिता के भरोसे ने दी भरपूर ताकत
हरियाणा के एक छोटे से गांव खरकड़ा जो रोहतक जिले में है, की रहने वाली निधि रानी अहलावत को जब नवगछिया जिले की कमान मिली तो उन्होंने घोषणा की कि यहां की बेटियां पढ़ेंगी। उन्हें हर तरह से सुरक्षा दी जाएगी।
उनके पिता एक मामूली क्लर्क हैं। निधि के अनुसार मुश्किल क्षण में उन्हें माता-पिता का काफी सपोर्ट मिला है। आज की नई पीढ़ी अपने टारगेट तय करे। पॉजिटिव सोच के साथ अपने टारगेट को अचीव करने के लिए मेहनत करे।
वीणा कुमारी: शादी से एक साल की छुट्टी मिली तो बन गई अधिकारी
विजिलेंस एसपी वीणा कुमारी के लिए आईपीएस की मंजिल आसान नहीं थी। बोकारो से इंटर व रांची से ग्रेजुएशन के बाद आगे पढ़ना चाहती थीं, पर घर के लोग राजी नहीं थे।
तब जबलपुर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में काम कर रहे मामा से बात की। उन्होंने पिता की इच्छा के खिलाफ बुला लिया। 1993 में जबलपुर से पीजी करके लौटीं तो शादी की बात होने लगी।
फिर यूपीएससी-बीपीएससी के लिए पिता से एक साल की मोहलत मिली। 1995 में बीपीएससी से जेल सेवा के लिए चयनित हो गईं। (इनपुटः भास्कर)