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    Saturday, November 23, 2024
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      बंदियों के स्थानांतरण से से ज्यादा जरुरी है जेलों में जैमर

      • कुख्यातों के कारागार स्थानांतरण से क्या रुक जाएगा क्राइम?

      • वर्षों पूर्व से मोबाइल जैमर लगाने की सिर्फ होती रही है घोषणा

      • बीते दो दशक में बंदियों के दूसरे जेलों में स्थान पर लाखों खर्च हुए

      • लेकिन सरकार के पास जैमर लगाने के लिए 60 लाख रुपये नहीं?

      पटना (खबर मंथन)। पटना पुलिस के अधिकारियों ने एक बार फिर से पटना जिला में स्थित बेऊर जेल सहित छह जेलों में बंद 44 कुख्यात बंदियों को भागलपुर, मुजफ्फरपुर और बक्सर केन्द्रीय कारा में स्थानांतरित का निर्णय लिया है।

      jail jamer 1पटना के डीआईजी राजेश कुमार के अनुसार ये सारे ऐसे बंदी हैं जो जेल में रहते हुए आपराधिक कार्यों में संलिप्त हैं और जेल से ही बाहर में रहे अपने गुर्गों द्वारा आपराधिक वारदातों को अंजाम दिलाते रहे हैं।

      पिछले दिनों पटना के सभी जेलों में एक साथ हुई छापेमारी में पुलिस को कई मोबाईल और आपत्तिजनक सामान मिले थे। इसके बाद ही अधिकारियों ने इस स्थानांतरण के संदर्भ में ठोस निर्णय लिया था।

      इसके बाद डीआईजी के निर्देश पर एएसपी अनिल कुमार सिंह ने ऐसे 44 अपराधियों की सूची डीआईजी को सौंपकर इनके स्थानांतरण का प्रस्ताव दिया। इसके बाद डीआईजी ने अपनी संस्तुती करते हुए इस प्रस्ताव को गृह एवं कारा विभाग को भेज दिया।

      हालांकि इस सूची में कुछ त्रुटियां भी हैं। मसलन बीते 9 अगस्त को ही जमानत पर बाहर निकल गए नौबतपुर निवासी विपुल कुमार कर नाम भी इस लिस्ट में है।

      अब सवाल यह उठता है कि क्या ऐसे कुख्यातों का सिर्फ एक कारागार से दूसरे कारागार में तबादला से पटना या बिहार में क्राइम कंट्रोल हो जाएगा।

      यह जग-जाहिर है कि जेल में बंद ऐसे कुख्यात जेल में अपने पास रखे माबाइल से ही बाहरी दुनियां औश्र अपने गुर्गों से संपर्क में रहते हैं। बेऊर जेल में एक अनुमान के अनुसार अभी भी दो सौ से ज्यादा मोबाइल फोन है। पर जब-जब छापेमारी होती है तब-तब बदी उसे ऐसी जगह छूपा देते , जिसका पता पुलिस को नहीं चल पाता है।

      बीते 11 अगस्त को भी सभी बेऊर सहित सभी जेलों में छापेमारी हुई पर पुलिस को इक्का-दुक्का मोबाइल बरामदगी से संतोष करना पड़ा। जेल के अंदर से कुख्यातों द्वारा आपराधिक वारदातों को अंजाम दिलाने का सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है, जिसके कई उदाहरण हैं।

      वर्ष 2003 में जेल के अंदर से बिंदू सिंह के इशारे पर प्रो. एस के लाल की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद जेल में जैमर लगाने की सरकारी स्तर पर कई बार घोषणा की गई थी। जेलों में लगने वाला जैमर की लागत लगभग साठ लाख रुपये है।

      सरकार बीते 20 वर्षों में कैदियों के कारागार स्थानांतरण में लाखों रुपये खर्च कर चुकी है पर सरकार के पास जैमर लगाने के लिए आवंटन नहीं है।

      सूत्र बताते हैं कि सरकार और पुलिस विभाग के उच्चाधिकारी जानबुझ कर जैमर लगाना नहीं चाहते। इसका कारण है कि जेल में बंद बहुत सारे कुख्यातों के नंबर पुलिस सर्विलांस पर रहते रहे हैं जिससे  अपराध नियंत्रण में पुलिस को  काफी कुछ सफलता मिलती रहीं है और आपराधिक वारदातों को अंजाम देने के पूर्व कई बार अपराधी पकड़ लिए गए हैं।

      आम राय और आपराधिक मामलों के कई विशेषज्ञ और अवकाश प्राप्त पुलिस के कई अधिकारी यह मानते हैं कि बिहार के प्रमुख जेलों में अगर मोबाइल जैमर लगा दिया जाए तो बिहार में घटते अपराधों में पचास प्रतिशत कमी आ सकती है।

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