“आज की सत्तालोलूप राजनीति में किसी के लिए नैतिकता और सिद्धांत कोई मायने नहीं रखते। न राज्य हित और न ही जनहित। बात चाहे सीएम नीतीश कुमार की हो या उनके विरोधी राजद नेताओं की या फिर फिलहाल उनके शागिर्द्ध बने भाजपा के धुरंधरों की। सत्ता के लिए कब कौन किससे गलबहियां कर ले, इस आकंलन करना टेढ़ी खीर है.…”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से एक बार फिर मुलाकात की। एक बंद कमरे में पक्ष-विपक्ष के इन दोनों प्रमुख नेताओं के बीच इस मुलाकात के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
एक बड़ा मायने यह निकाला जा रहा है कि भाजपा की समसमायिक नीति को लेकर जिस तरह से नीतीश कुमार विधान सभा के अंदर-बाहर अपनी कूटनीति को अमलीजामा पहना रहे हैं, उसमें उन्हें खुलकर कोसने वाले तेजस्वी यादव का यह बयान कि बिहार में सरकार को अस्थिर नहीं होने देंगे, एक नए राजनीतिक परिदृश्य की नींव रखता दिख रहा है। क्योंकि तेजस्वी का मीडिया के सामने यह कथन ने नीतीश से मुलाकत के तुरंत बाद सामने आया।
उधर आक्रामक तेवर में दिख रहे हम के नेता पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के अचानक बदले बोल कि नीतीश से बड़ा कोई चेहरा नहीं है, चुनाव पूर्व राजनीतिक समीकरण बदलने के साफ संकेत दे रहे हैं। जाहिर है कि भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टी अपने मूल एजेंडे से शायद ही समझौता करे।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बिहार विधानसभा के चल रहे इस बजट सत्र में बड़ी तेजी से सियासी चालें चली जा रही हैं। विधानसभा से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर(एनआरसी) और नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) के खिलाफ प्रस्ताव पास होने के बाद एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) जहां मायूस नजर आ रही है।
वहीं दूसरी तरफ सीएम नीतीश कुमार और प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बीच एक बार फिर विधानसभा अध्यक्ष के कक्ष में मुलाकात हुई।
इसके पहले मंगलवार (25 फरवरी) को भी दोनों की मुलाकत हुई थी, उसके बाद सदन में एनआरसी और एनपीआर पर प्रस्ताव सदन में पास हुआ। बुधवार को भी दोनों की मुलाकत बंद कमरे में हुई। अब तक नीतीश कुमार को खुलकर कोसने वाले तेजस्वी ने नीतीश कुमार से मुलाकात पर मीडिया से कहा कि बिहार में सरकार को अस्थिर नहीं होने देंगे।
पिछले चार सालों में चार बार सरकार बदली हैं। नीतीश कुमार से तालमेल पर उन्होंने कहा कि जिनके पास बीजेपी से लड़ने की ताकत नहीं है, उन्हें साथ लाकर क्या करेंगे।
बुधवार को विधानसभा अध्यक्ष के कमरे में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव बारी-बारी से पहुंचे। दोनों की मुलाकात अध्यक्ष के कमरे के भीतर बने छोटे से कक्ष में हुई। इससे पहले मंगलवार को भी तेजस्वी यादव नीतीश कुमार से मिलने उनके कक्ष में चले गए थे। उसके बाद ही विधानसभा में सर्वसम्मति से एनआरसी और एनपीआर पर प्रस्ताव पास हुआ।
कक्ष से बाहर निकल कर तेजस्वी ने कहा कि औपचारिक तौर पर चाय पीने के लिए अध्यक्ष के चेंबर में गए थे। अगर अरविंद केजरीवाल अमित शाह से मिलने जा सकते है तो क्या हम नीतीश कुमार से नहीं मिल सकते हैं।
जब पत्रकारों ने पूछा कि क्या फिर से नीतीश कुमार के साथ वो जा सकते हैं उन्होंने खुलकर तो कुछ नहीं कहा। लेकिन ये कहकर जरूर चौंका दिया कि बिहार में सरकार को अस्थिर नहीं होने देंगे। यानि अगर एनआरसी और एनपीआर के मुद्दे पर बीजेपी कुछ खेल करती है तो वो नीतीश सरकार को समर्थन दे सकते हैं।
ऐसा 2013 में भी हो चुका है, जब नीतीश कुमार ने बीजेपी का साथ छोड़ा था तो राष्ट्रीय जनता दल(आरजेडी) अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने बिना शर्त बाहर से सरकार को समर्थन दिया था।
बिहार में इस साल अक्टूबर में चुनाव है। इस बीच एनआरसी और एनपीआर के मुद्दे पर सियासी चाले चली जा रही हैं। अब ऊंट किस करवट बैठेगा, ये कहना तो मुश्किल है लेकिन जिस तरीके से चीजें बदल रही हैं, उससे लगता है कि चुनाव आते आते कुछ उलट फेर हो जाये तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।