अन्य
    Saturday, November 23, 2024
    अन्य

      नष्ट हो रहे हैं नालंदा के ऐेतिहासिक तालाब, ठोस कदम उठाये प्रशासन

      “आवश्यकता है कि जिला प्रशासन और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इन तालाबों की पहचान कर उसकी पैमाइस और अतिक्रमण मुक्त कराये। इसके साथ ही अतिक्रमणकारियों और फर्जी मालगुजारी रसीद काटने वाले सरकारी कर्मियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई सुनिश्चत की जाय।”

      नालंदा (राम विलास)। प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के इर्द गिर्द पचास खूबसूरत तालाब थे। चारो तरफ फैले इन  तालाबों में कमल के फूल खिलते थे, जिसकी शोभा अवर्णनीय थी। विश्वविद्यालय के चारों तरफ फैले इन कमल पुष्प सरोवरों का वर्णन ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत (सी.यू.की।) में भी किया है। यह पालि साहित्य के अनुशीलन से ज्ञात होता है।उन्होंने नालंदा के बारे में अपने  वर्णन में लिखा है कि कमल पुष्प युक्त इन तालाबों की शोभा से छात्र एवं आचार्य मुग्ध होते थे।

      nalanda sarowar 1इन खूबसूरत तालाबों के सौंदर्य को कायम रखने के लिए न केवल नालंदा विश्वविद्यालय प्रबंधन समिति देख रेख करती  थी, बल्कि संबंधित राजा भी इसका ख्याल रखते थे।

      कहा जाता है कि राजा हर्षबर्द्धन ने इन सरोवरों को और भी आकर्षक बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिये थे। तब इन तालाबों के सैंदर्य की प्रषंसा सर्वत्र होती थी।

      अनेक महापुरूषों ने भी नालंदा के इन तालाबों के सौंदर्य का उल्लेख किया है। बौद्ध साहित्य के अलावे जैन साहित्य में भी इसका उल्लेख है कि नालंदा के आस-पास 50 से अधिक तालाब अपने आकर्षण के लिए प्रसिद्ध थे। इस तरह नालंदा के सौंदर्य को बढ़ाने में इन सरोवरों का स्थान सर्वोपरि माना जाता है।

      आज नालंदा विश्वविद्यालय भग्नावशेष( विश्व धरोहर) के रूप में विद्यमान है। परन्तु सैलानी उन ऐतिहासिक सरोवरों से अनभिज्ञ  हैं। 21 वीं सदी में उन ऐतिहासिक सरोवरों के अस्तित्व संकट में हैं।  कथित सफेदपोषों और दवंगों का उस पर नाजायज कब्जा है।

      अभी भी नालंदा के चारों तरफ तालाब हैं। इनमें से अब केवल दीर्घ (दीग्धी लेक) में कमल फूल खिलते हैं। इनकी शोभा आज भी आवाम को आकर्षित करती है। कभी नालंदा की गरिमा में चार चांद लगाने वाले इन तालाबों पर कुछ लोगों के द्वारा खेती की जाती है और इसके स्वामी होने का दावा भी।

      कनिंघम के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय के आस पास के प्रमुख तालाबों में  देहर, बनैल, सुरहा, इन्द्र सरोवर, पंसोखर (पद्म सरोवर), दीर्घ (दीग्धी लेक), चानन (चन्ना), लोकनाथ (लोकनाथी), गोध्या, धौखरी, तारसींग, पथलौटी, डंगरा, दुधौरा, चमरगड्ढी, लोहंग, चैधासन, सूरूज पोखर ( सूर्य तालाब ), भुनैइ, करगदिया (नालंद नामक नाग इसी तालाब में रहता था), संगरखा, सुंढ़ आदि नाम शुमार है।

      nalanda sarowar 2इनमें देहर, बनैल, सुरहा, पद्म, इन्द्र आदि सरोवर नालंदा विश्वविद्यालय के इर्द गिर्द थे। जाहिर है ये वही तालाब होंगे, जिसका वर्णन ह्वेनसांग ने किया है।

      इन तालाबों में नालंदा विश्वविद्यालय के आचार्य और छात्र स्नान करते थे। पुरातत्व की दृष्टि से इन तालाबों का महत्व बहुत बड़ी है। साजिश के तहत इसकी गरिमा व नामो निशान और पहचान मिटाया जा रहा है। बनैल तालाब नालंदा खंडहर से उत्तर – पश्चिम में है। यह लगभग जमींदोज हो चुका है। इसके एक भाग को पुरातत्व विभाग ने अपने कब्जे में लिया है। शेष भाग पर स्थानीय लोगों के द्वारा अतिक्रमण किया गया है।

      कहा जाता है कि इस तालाब में पुरातात्विक अवशेष होने के संकेत मिलते हैं।  बनैल से ही सटा देहर तालाब है। यह खंडहर से उत्तर है। करीब 20 एकड़ का यह तालाब अपनी अस्तित्व की रक्षा की करूण पुकार कर रहा है। इसके आस-पास दो बड़े पिण्ड हैं।

      अनुमान है कि वहां कोई भवन रहा होगा। इसी प्रकार सुरहा तालाब अब तालाब नहीं खेत बन गया है। मिली जानकारी के अनुसार दीर्घ और संगरखा सरोवर(बेगमपुर), चानन(चन्ना), लोकनाथी, धौखरी, पथलौटी(सूरजपुर), गोध्या, तारसींग, (सारिलचक), सुरूज तालाब, लोहंग, चमरगड्ढी (बड़गांव), डंगरा(शोभा विगहा), सुंंड (निर्मल विगह), भुनैइ (मुस्तफापुर), दुधौरा, करगडिया (मुजफफरपुर) में है। बड़गांव, मुजफ्फरपुर, सूरजपुर जुआफर, बेगमपुर, सारिलचक, शोभा विगहा, निर्मल विगहा, मुस्तफापुर आदि गांवों के तालाबों का अस्तित्व संकट में है।

      सूत्रों के अनुसार पहले ग्रामीणों ने उन ऐतिहासिक तालाबों पर कब्जा जमाया और बाद में उसका गलत ढंग से अभिलेख भी बना लिया है। अंचलाधिकारी द्वारा इन तालावों की रसीद भी काटे जाने का मामला प्रकाश में आया है। यह जांच का विषय है।

      नालंदा को विष्व धरोहर का दर्जा मिल गया है। सरकार इसकी गरिमा को कायम रखने की घोषणा भी करती है। इसके बाबजूद पुरातात्विक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण इन तालाबों की घोर उपेक्षा हो रही है। फलस्वरूप ग्रामीणों के द्वारा आपाधापी से इन तालाबों का अतिक्रमण किया जा रहा है।

      जल संसाधन विभाग के द्वारा इन तालाबों की खुदाई और उड़ाही का प्रयास किया जाना चाहिए। इन तालाबों की रक्षा-सुरक्षा के लिए सरकार को कारगर कदम उठाना चाहिए। वर्ना कुछ दिनों में बचे-खुचे तालाबों का भी वही हाल होगा, जो पहले के तालाबों का हुआ है।

      जरूरत है नालंदा में तालाब संस्कृति को पुर्नजीवित करने की। इससे इलाके के जल श्रोतों का जल स्तर नियंत्रित रहेगा। उसमें जल पर्यटन के नये आयाम खुल सकते हैं। तब वह देश-दुनिया के सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता है। नहीं तो  लोग यह भी भूल जायेंगे कि प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के चारों तरफ कमल पुष्प युक्त आकर्षक सरोवर थे।    

      संबंधित खबर

      error: Content is protected !!