“भारतीय पुरातत्व विभाग के अधीन यह स्थल संरक्षित है, किंतु व्यापक देखभाल नहीं होने से शंख लिपि में लिखे गए शब्द नष्ट हो रहे हैं।”
नालंदा । राजकीय राजगीर मलमास मेला के विशेष न्यायिक दंडाधिकारी मानवेंद्र मिश्र स्थानीय प्रवास के दौरान आज रथचक्र चिन्ह का भ्रमण कर बताया कि राष्ट्रीय राजमार्ग-82, जो गृद्धकूट पर्वत और बाणगंगा के बीच से गुजरती है, आगे नवादा-गया को जोड़ने वाली रास्ते में आगे बढ़ते हैं तो राजगीर में ही पूरब दिशा में एक वर्गाकार दीवार से घिरा रथ चिह्न दिखाई देता है।
कठोर पत्थर पर 1 फीट चौड़ी तथा डेढ़ फीट गहराई वाले लगभग 20 फीट लंबी समानांतर पथ पर रथ पहिया चलने जैसे निशान बना हुआ है। ऐसी मान्यता है कि महाभारत काल में श्री कृष्ण जब भीम एवं अर्जुन के साथ मगध सम्राट जरासंध से मल्लयुद्ध करने राजगीर आये तो उसी आगमन के उपरांत यह रथ चिन्ह बना था।
इसी रथ चिन्ह के आस-पास दो बड़े बड़े मनुष्य के पद चिन्ह भी दिखाई पड़ते है। जिसके बारे में भारतीय पुरातत्व विभाग के कर्मी बताते है कि यह जरासंध एवम भीम के पदचिन्ह उभरी हुई प्रतीत होती है।
रथ चिन्ह के आसपास शंख लिपि में कुछ लिखा गया है। जैसा कि लोग जानते ही हैं कि शंख लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
भारतीय पुरातत्व विभाग के एक कर्मी ने घुटनों के बल बैठकर समझाने का प्रयास किया कि कैसे यह पद चिन्ह और रथ चिन्ह उभरा।
यहां के पुरातत्व विभाग के कर्मचारी बताते हैं कि इस ऐतिहासिक स्थल के सुरक्षा के लिये इसको चारदीवारी से घेरना तथा दरवाजा लगाना आवश्यक है। अन्यथा इसमें आये दिन जानवर भी प्रवेश कर जाते। जिससे यह महाभारत काल की अदभुत धरोहर नष्ट हो सकती है।