इन दिनों राजस्थान के कोटा में फंसे हजारों बच्चों को लेकर मीडिया की सुर्खियां चरम पर है। लेकिन इन सब से वेफिक्र अगर कोई है तो वह हैं बिहार के सीएम नीतीश कुमार। शायद उन्हें पक्का यकीन है कि नेताओं-अफसरों के बच्चें से कोरोना कैरियर हो ही नहीं सकते, क्योंकि उनके पास पावर-पैसा दोनों है। असली दिक्कत उन्हें आम लोगों के बच्चों से है, जो हर मुसीबत में सरकार का मुंह ताकते हैं। आखिर ताके भी क्यों नहीं? वे कायदे-कानून की भेंट चढ़ने के लिए ही जी रहे हैं…
✍️ एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क
वेशक, जिसने जीवन की सारी गाढ़ी कमाई तो बाल बच्चों को पढ़ाने में लगा दिया। कर्ज लेकर बच्चों को पढ़ने बाहर भेज दिया, ताकि बच्चे अच्छी तरह पढ़ लिख कर बेहतर रोजगार हासिल कर सके।
बच्चे को राजस्थान के कोटा शहर भेजा। इस उम्मीद से कि वह वहां बेहतर पढ़ाई करे। उसे जिल्लत भरी जिंदगी से निजात मिल सके। क्योंकि बिहार जैसे प्रदेशों में तो सरकारी शिक्षा की दुर्गति और नीजि संस्थानों की लूट किसी से छिपी नहीं है। अगर सबकुछ छिपा है तो वह सिर्फ और सिर्फ सर्वोसर्वा सीएम नीतीश कुमार से।
सपना देखना बुरी बात नही है, उन सपनों को पूरा करने की कोशिश भी गलत नही है। अभाव जिंदगी की हिस्सा है, पर उन अभाव में कर्ज या कुछ जेवरात बेच कर। दो वक्त की रोटी से कुछ पैसे काट कर कुछ लोंगो ने अपने बच्चों को कोटा या कुछ ने अन्य महानगरों में पढ़ने के लिए भेज दे तो यह बुरी बात बन जाती है। वह भी कर्णधार सीएम नीतीश कुमार की नजर में।
आज कोरोना वायरस जैसे अज्ञात महामारी से सब दहशत में हैं। सबको अपने परिवार और बच्चों की चिंता है। अगर कोई परवाह नहीं कोरोना काल मे उन बच्चों को कुछ राज्य सरकारों ने बसें भेजकर अपने घर मांगा लिया।
तो कुछ सक्षम और पावरफुल लोंगों ने पास बनाकर स्वयं के गाड़ी से वापस ले आया। फंसा तो इन माध्यम वर्ग के बच्चे। जिनके मां बाप के पास ना तो पैसे हैं कि अपनी गाड़ी से ले आये या ना पावर के पास बनाकर वापस ले आये।
ऐसे में बिहार सरकार का बेशर्म तर्क है कि वहां से बच्चों को वापस लाने से कोरोना फैल जाएगा। लेकिन सरकार यह नहीं बताती है कि इसके लिए जो प्रक्रिया हैं, जांच करने की। फिर यहां लाकर कोरोनटाइन करने की। वह नहीं करेंगे।
सरकार जहां भयंकर कोरोना फैली थी, उस बुहान से कोरोना को सौगात के रूप में रईसजादे बच्चें अपने साथ ला सकते हैं, लेकिन अपने देश में भूख प्यास से बिलख रहे, बिना मां बाप के तड़प रहे बच्चों को बिहार सरकार नही ला सकती।
आज स्थिति यह है कि वे अपने बच्चो को लाने के लिए परेशान इधर उधर भटक रहै हैं। उसकी कोई सुनने वाला नहीं है, क्योंकि वह न तो पावरफुल नेता है और न ही कोई अफसर।
आज यह बात समूचे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है कि एक ओर सरकार कोरोना की वजह से बच्चों को किसी कीमत पर बिहार आने देने को तैयार नहीं है। वहीं उसी बच्चे का सहपाठी, जो विधायक-सांसद-अफसर का बेटा है, वह तुरंत अपने घर पहुंच जाता है।
वाकई एक कोरोना वायरस ने कितनी स्पष्ट स्थिति पैदा कर दी है कि एक मां-बाप खुशी से चहक रही है और इस विपदा की घड़ी में वह पूरा परिवार सामर्थ्यवान होने का दंभ भर् रहा है। वही उसी के पड़ोसी मां-बाप के पास बच्चों को एक नजर देखने की कसक के आंसू के सिवा कुछ नहीं है।