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    Saturday, April 20, 2024
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      1 साल में 24 बार दौड़ाया, फिर लोक प्राधिकार से ही मिल कर बंद की कार्यवाही

      नालंदा जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी का तो कोई सानी नहीं है। यहां लोक प्राधिकारों को राहत और शिकायतकर्ताओं को अमुमन अधिक परेशान ही किया जाता है। यहां निश्चित समयावधि 60 दिन की बात बिल्कुल बेईमानी है और प्रायः मामलों में फैसला उटपुटांग…”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। शायद सीएम नीतीश कुमार को यह पता नहीं है कि समूचे सूबे की बात तो दूर, उनके गृह जिले में पदाधारियों द्वारा लोक शिकायत निवारण अधिकार की कैसे धज्जियां उड़ाई जा रही है।

      nalanda pgro 1 1एक ताजा उदाहरण हिलसा अनुमंडल के नगरनौसा प्रखंड के यारपुरबलवा (भदरू) गावं निवासी महेश प्रसाद के मामले की है। उन्होंने 15 दिसंबर,2017 को अनन्य वाद- 427110215121700793 दर्ज कराई। यह बाद बन्दूक का लाईसेंस रिन्युअल करने संबंधित थी। लेकिन एक साल तक चली सुनवाई के दौरान 24 तारीखें दी गई और फैसला वही ढाक के तीन पात।

      जिला लोक शिकायत पदाधिकरी ने 14/12/2018 को दिए अपने अंतिम आदेश में लिखा है कि यह परिवाद परिवादी महेश प्रसाद पिता स्‍व. रामवृक्ष सिंह, ग्राम- यारपुर बलवा, प्रखण्‍ड नगरनौसा द्वारा बंदुक के अनुज्ञप्ति का नवीकरण हेतु दायर किया गया है।

      पूर्व में जिला शस्‍त्र पदाधिकारी, नालन्‍दा द्वारा प्रतिवेदित किया गया कि नडाल प्रपत्र भरकर परिवादी द्वारा नहीं दिया गया था, जिससे कि नवीकरण नहीं किया गया। परिवादी का नडाल प्रपत्र लेकर UIN भी जेनेरेट कर दिया गया है।

      विभिन्‍न जांचोपरांत जिला शस्‍त्र पदाधिकारी द्वारा प्रतिवेदित किया गया है कि अधतन नवीकरण एवं शस्‍त्र विमुक्‍त करने के संबंध में जिला पदाधिकारी द्वारा संचिका विमर्श में रखा गया है।

      यह वाद 16.12.2017 को दायर किया गया है, किन्‍तु अब तक इसका निराकरण नहीं हो सका। लोक प्राधिकार को इस निदेश के साथ कि विमर्श के आलोक में नियमानुसार अग्रेतर कार्रवाई करें, वाद की कार्यवाही समाप्‍त की जाती है।

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      बता दें कि सुदूर ग्रामीण क्षेत्र से एक बार जिला मुख्यालय आने पर 200-300 रुपये खर्च हो जाते हैं। वह भी वादी अपना सब काम-धाम छोड़ कर आते हैं। लोक प्राधिकारों या सरकारी बाबूओं का क्या है, वे तो सरकारी खजाने की सुविधा-भत्ता से मौज उड़ाते हैं। मुंह में पान-गुटखा की गिलेरी चबाते जिला-अनुमंडल कार्यालय आते हैं और हिहयाते हुए किसी कोने थूक कर चले जाते हैं।

      उधर वादी-शिकायतकर्ता-पीड़ित भी झल्लाहट भरे बुदबुदाहट के साथ अगली तिथि को दिमाग लिये वैरंग वापस होने को लाचार रहता है, ‘ सीएम गला फाड़-फाड़ कर बोलता कुछ है और यहां जिसको बैठा दिया है, वो करता कुछ और है। सब जगह तो एके खेला है। आम लोगों को सिर्फ परेशान करो। ’

      इस संबंध में नालंदा जिला लोक शिकायत निवारण कार्यालय पदाधिकारी राजेश कुमार सिंह ने बड़े अजीबोगरीब जवाब दिए। इस मामले में उनका कहना है कि अधिक दिनों से लंबित मामलों को बंद कर देने का निर्णय लिया गया है।

      जब उनसे पूछा गया कि परिवादी को एक साल के भीतर एक सुदूर गांव से 24 बार जिला मुख्यालय दौड़ाया गया और बिना शिकायत का निपटारे लोक प्राधिकार से विमर्श कर ही उसे बंद कर देना क्या लोक शिकायत अधिनियम-8 (1) का उलंघन नहीं है?

      इस पर उन्होंने उल्टे सवाल कर दिया कि क्या कहती है यह अधिनियम? हमें मालूम नहीं है। 

      आगे उन्होंने कहा कि अगर मामला बंद कर दिया गया है तो परिवादी आगे का ऑप्शन अपनाएगा। द्वीतीय अपील या उपर जाएगा। हमें जो करना है, कर दिया। आगे परिवादी जानें।  nalanda pgro 6nalanda pgro 3

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