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    Tuesday, April 16, 2024
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      ?चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला…?

      *महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह आज 72 वर्ष के हो गये। उन्होंने अपने जीवन का ज़्यादातर हिस्सा एक मानसिक रोगी के रूप में बिता दिया, लेकिन किसी भी सरकार ने इन्हें ठीक कराने के लिये कभी प्रयास नहीं किया…..”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क/ मुकेश भारतीय

      Vasistha Narayan Singh 3महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंहः जिनके दिये गणित पर ही अमेरिका अपोलो को अंतरिक्ष में भेज सका था। आइंस्टीन की थ्योरी का विरोध करने वाले उस महान गणितज्ञ के शोध-पत्र आज ऑक्सफ़ोर्ड, कैंब्रिज, हॉवर्ड, बोस्टन जैसी विश्वविख्यात यूनिवर्सिटी में पढाये जाते हैं।

      और निःसंदेह उन्हें भारत-रत्न से अलंकृत किया जाता। परंतु दुर्भाग्य है कि हमारे प्रांत, देश और संपूर्ण विश्व का कि ऐसा महान गणितज्ञ, जो शायद आर्यभट का ही दूसरा जन्म है, वह आज पटना के अशोक राजपथ स्थित एक छोटे से फ्लैट में अपनी जिंदगी गुज़ार रहा है। वह भी मानसिक रोगी की अवस्था में।

      परिजन कहते हैं कि अगर सरकार चाहती तो देश-विदेश के नामी डॉक्टरों से इलाज करवा सकती थी। लेकिन बीते चार सालों से दिल्ली के एक मानसिक अस्पताल के पुर्जे पर ही दवाएं चल रही हैं। 2009 के बाद किसी डॉक्टर से नहीं दिखाया गया।vashitha narayan singh

      कोई भी घर आता है तो वशिष्ठ जी, उससे पैसे माँगने लगते हैं। नासा में सफलता के चरम-बिंदु पर पहुँचने के बाद भारत आये और कुछ ही साल बाद वे सिज्नोफ्रेनिया के मरीज़ बन गये।

      तब से आज तक वे उस बीमारी से कभी उबर न सके। गणित के क्षेत्र की विलक्षण प्रतिभा वशिष्ठ नारायण  का जीवन आज भी कौतुहल है। ठीक उसी तरह जब वह सवालों में उलझे कहीं पड़े मिलते थे।

      वशिष्ठ नारायण बिहार के आरा के अपने पैत्रिक गाँव वसंतपुर से इन दिनों पटना आ गये हैं और एक फ्लैट में अपनी बूढ़ी माँ, फौज से रिटायर्ड अपने छोटे भाई और उनके परिवार के साथ रहते हैं।

      छोटे भाई अयोध्या प्रसाद बीते 40 वर्षों से अपने बड़े भाई कइ सेवा कर रहे हैं।

      Vasistha Narayan Singh 4अयोध्या प्रसाद  बताते हैं कि भैया पूरे दिन गणित के सवालों में ही खोये रहते हैं। रोज़ाना उन्हें नोटबुक और पेन चाहिए होता है।

      दुनिया के नामी राइटर्स की लिखी कठिन से कठिन कैलकुलस की मोटी-मोटी किताबों को भी सिर्फ एक दिन में खत्म कर देते हैं।

      एक जगह पर ज्यादा देर तक बैठते नहीं। कभी कमरे में बैठते हैं तो कभी हॉल में। गणित के सवाल हल करते करते, जब ऊब जाते हैं तो रामायण-महाभारत, गीता और वेदों का अध्ययन करते हैं।

      फिर तबला, हारमोनियम और बाँसुरी बजाते हैं।

      72 वर्षीय महान वशिष्ठ नारायण अपनी बूढी माँ के लिये आज भी बच्चे ही हैं। माँ आज भी उनका ख्याल रखती हैं। अपनी ममता को वैसे ही लुटाती हैं, जैसे उनका बेटा आज भी नन्हा बच्चा ही हो।Vasistha Narayan Singh

      अयोध्या प्रसाद  कहते हैं कि पटना में रहने के बावजूद साइंस कॉलेज के इस पूर्ववर्ती छात्र की आज तक कॉलेज ने कोई खबर नहीं ली।

      यूनिवर्सिटी प्रशासन भी भूल गया। कम से कम एक बार कॉलेज में बुलाया जाता तो एक बात होती।

      कोई याद रखे या न रखे। हम और हमारी एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क की टीम आर्यभट्ट के इस अवतार, बिहार-देश-दुनिया की शान को नहीं भुला सकते।

      आइये हम सब मिलकर उनके पुनः स्वस्थ हो जाने की ईश्वर से प्रार्थना करें। जिनका ज्ञान-संघर्ष सदैव प्रेरणास्रोत बना रहेगा….

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