अन्य
    Saturday, April 20, 2024
    अन्य

      हे मां! इस धनतेरस को मेरे घर मत आना?

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क।  हमारी सोच -विचार ही हमारी  सच्ची संवेदनाएं हैं। यह हर इंसान के अंदर नहीं होती। अन्यथा आज समाज और लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक बड़ा बदलाव मुखर होता। आज वर्तमान में नालंदा जिला बाल किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी सह न्याय कर्ता जज मानवेद्र मिश्र जी की माइक्रो ब्लॉगिंग फेसबुक जैसे सोशल साइट पर सार्वभौम दो टूक पीड़ा अंदर तक झकझोर गई। वेशक यह दर्द उन बेजुबानों की रुह है, जिसे रेखांकित करना सबके बूते की बात नहीं। वे लिखते हैं……………  

      jai maa laxmi manvendra mishra 2
      नालंदा जिला बाल किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी सह न्याय कर्ता जज मानवेद्र मिश्र की आलेख संग शेयर फोटो……….

      “हे मां लक्ष्मी! आप से करबद्ध निवेदन है कि इस धनतेरस व् दिवाली को मेरे घर मत आना। हो सके तो किसी कोयली देवी के घर जरूर जाना, ताकि उसकी बेटी भूख से भात-भात कहते हुए तड़पते तड़पते मर न जाये।

      हे मां ! आपके नजर में या आप के नियम के मुताबिक गरीबी रेखा की परिभाषा क्या है। क्या कोई बच्चा अन्न के अभाव में तड़प तड़प कर मर जाता है तो आपके नजर में गरीब कहलाने लायक है या नहीं।

      हे मां आप इस तरह से दर्शक बनकर नहीं बैठ सकती हैं। क्या आपके यहां भी कोई आधार कार्ड राशन कार्ड की जरूरत होगी। क्या मां के पास से भी धन प्राप्त  करने के लिए पुत्रों को औपचारिकताओं की जरूरत पड़ेगी।

      हे माँ! उन अधिकारियों को सद्बुद्धि देना, जो आधार कार्ड के अभाव में आदमी को और उसकी गरीबी को नहीं समझ पा रहे है। कभी सुनता हूं मां कि ओडिशा के कालाहांडी या देश के किसी भी सुदूरवर्ती इलाकों से कोई भूख से तड़प तड़प कर मर गया या कर्ज तले ले डूबे किसानों ने आत्महत्या की या किसी गरीब द्वारा इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया और उसकी लाश को कांधे पे उठा कर या घसीट कर ले जाते हुए दाह संस्कार की बात सुनता हूं तो मन व्यथित होता है।

      हे मां! तब आपसे बहुतों शिकायत करने की इच्छा होती है। क्या आपको भी धनकुबेरों के घर ही मन लगता है। मां तो सबके लिए बराबर होती हैं। फिर अपने पुत्रों में इतना बड़ा भेदभाव क्यों?

      क्यों नहीं आप इस देश से गरीबी दूर कर देती हैं। हे माँ अन्नपूर्णा ! क्यों नहीं इस देश के सभी घरों में इतनी अन्न भर देती हो कि आधार कार्ड की ज़रूरत ही न पड़े। क्यों नहीं अधिकारियों की बुद्धि इतनी निर्मल कर देती हो की वे मनुष्य को मनुष्य के रूप में ही देखे।

      jai maa laxmi manvendra mishra 1बाढ़ में जो आश्रय विहीन हो गए। वैसे लोगों के जिनके आधार कार्ड एवं राशन कार्ड भी नष्ट हो गए होंगे। उन्हें दोबारा से सरकारी फाइलों में जिंदा होने में वक्त लगेगा। क्या तब तक अधिकारी उनके भूख बेबसी लाचारी को समझ सकेगें।

      इसीलिए हे मां! इस दीपावली में आपसे करबद्ध निवेदन है कि आप व्यवस्था के बने इस मकर जाल को तोड़ दो। नष्ट कर दो।

      हमारा भारत एक विकसित देश बनने की ओर अग्रसर है। चांद पर जाने के लिए अंतरिक्ष में आशियाना बनाने के लिए नए नए मिसाइल, विनाशक हथियार खरीदने के लिए उद्वेलित है,

      उस भारत के मनुष्यों में इतनी समझ जरूर भर दो कि उन्हें GST या पेट्रोल के घटते बढ़ते मूल्य भले ही न समझ आये, लेकिन उन्हें अनाज और पानी की समझ मनुष्यता के परिप्रक्ष्य में जरूर समझ आये। जिससे फिर कोई मनुष्य की मौत भुखमरी से न हो।

      संबंधित खबरें
      error: Content is protected !!