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    Friday, April 19, 2024
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      ‘सूअरों का चारागह’ बना सीएम नीतीश का यह पंसदीदा खेल मैदान

      हमारे एक जागरूक पाठक राजू पी माथुर ने चंडी खेल मैदान की दुर्दशा पर चिंता व्यक्त करते हुए उक्त खबर भेजी है। उनकी चिंता हद तक बाजिब है। बचपन से ही मैदान से उनका लगाव रहा है। आज वे और उनके कई साथी प्रतियोगिता परीक्षा के लिए रोज की तरह दौड़ लगाने आए तो मैदान की गंदगी को देखकर उनके अंदर की पीड़ा बाहर आ गई……”

      चंडी (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)।  देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी  देवीलाल, पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीस जैसे कई दिग्गज नेताओं के साथ पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव तथा सीएम नीतीश कुमार का यह चहेता मैदान आज उपेक्षा का शिकार है।

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      नालंदा जिले के चंडी की ह्दय स्थली खेल मैदान 1942 की अगस्त क्रांति का गवाह है। यह खेल मैदान गवाह है पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामराज सिंह तथा क्षेत्रीय विधायक हरिनारायण सिंह के राजनीतिक उद्भव का।

      आजादी की लड़ाई से लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के राजनेताओं की रैली, कई क्रिकेट के खिलाड़ी, जो इस मैदान पर खेलकर ही रणजी तक पहुँचे। सभी का गवाह यह खेल मैदान आज अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को विवश है। लेकिन उसके आंसू आज किसी को दिखाई नहीं देते।

      यह खेल मैदान आज गंदगी, सूअरों का चारागाह में तब्दील हो गया है। यह मैदान जुआरियों,शराबियों और अराजक तत्वों के आश्रयस्थल बना हुआ है।

      मैदान में इतनी गंदगी फैली हुई है कि मैदान में जाना मुश्किल हो जाता है।गंदगी को देखकर ही लोग बीमार पड़ जाएं। मैदान के आसपास की सारी गंदगी मैदान में ही फेंकी जाती है।

      इसके अलावा मैदान में ईट रोडे इतने कि प्रतिभागी छात्रों को दौड़ने में भी काफी परेशानी होती है। प्रतिभागी छात्रों को दौड़ने के लिए चंडी में एकमात्र मैदान यही बचा हुआ है। 

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      इस मैदान पर खेल विकास योजना की ओर से सरकारी राशि भी मिली थी। लेकिन उस सरकारी राशि का दुरुपयोग और उसका हश्र क्या होता है, इसका नजारा इस मैदान को देखने से मिलता है।

      लगभग 40 लाख से निर्मित मिनी स्टेडियम खंडहर व जर्जर हालत पदाधिकारियों को मुंह चिढ़ा रहा है। अब यह स्टेडियम सिर्फ शराबियों और जुआरियों का अड्डा बनकर रह गया है।

      बताते चलें कि 5-6 साल पूर्व इस मैदान पर मुख्यमंत्री खेल विकास योजना से मिनी स्टेडियम का निर्माण किया गया था। स्टेडियम स्थल में बन रहे सीढ़ी को लेकर खेल प्रेमियों और संवेदक में ठनी भी थी। लेकिन नियम कानून को ताक पर रख मिनी स्टेडियम का निर्माण शुरू कर दिया गया।

      लगभग 40 लाख की राशि से बना यह मिनी स्टेडियम आज खंडहर में तब्दील हो गया है। इसमें न खिड़की, दरवाजे का पता नहीं, न शौचालय ठीक से बना और न ही पानी-बिजली की व्यवस्था हुई।

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      स्टेडियम के खिड़की-दरवाजे गायब हो गए। शौचालय की टंकी नहीं बनी। स्टेडियम के निर्माण शुरू होने के समय ही इसकी गुणवत्ता सवालों के घेरे में रही। पुरानी दीवार पर ही चहारदीवारी बना दी गई। मुख्य दरवाजे पर न तो गेट लगा और न ही ट्रैक बना। यहां तक कि स्टेडियम आधा अधूरा बनाकर छोड़ दिया गया।

      चंडी के इस मैदान की काफी महत्ता रही है। आजादी की लड़ाई का संघर्ष का गवाह रहा है यह मैदान। इसी मैदान पर 16 अगस्त 1942 को चंडी थाना पर झंडा फहराने के दौरान गोखुलपुर के एक युवक बिंदेश्वरी सिंह  पुलिस की गोली से शहीद हो गए थे।

      राजनीतिक रूप से भी इस मैदान का काफी महत्व रहा है। राजनीतिक रैलियों और भाषणों का गवाह रहा है। कभी पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व डिप्टी पीएम लालकृष्ण आडवाणी, चौधरी देवीलाल, रामटहल चौधरी, जार्ज फर्नांडीस, बिहार के कई पूर्व सीएम में डॉ. जगन्नाथ मिश्र, बिंदेश्वरी दुबे, लालू प्रसाद, राबड़ी देवी सहित कई जानी-मानी हस्ती इस मैदान पर उतर चुके हैं।

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      सीएम नीतीश कुमार के लिए यह मैदान काफी पसंदीदा और भाग्यशाली रहा है। जिस किसी को भी इस मैदान से जीत का आशीर्वाद दिया, वो जीता।

      इस मैदान का अतीत बहुत पुराना है। इस मैदान पर बिहार व बंगाल के कई रणजी खिलाडी खेल चुके हैं जो अभी आइपीएल में भी धमाल मच चुके हैं।

      बिहार के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामराज सिंह के नाम पर लगभग डेढ़ दशक तक क्रिकेट टूर्नामेंट का भी आयोजन होता रहा था। कभी सालों भर गुलजार रहने वाला चंडी मैदान को राजनीतिक ठेकेदारों की नजर लग गई। अपने आर्थिक स्वार्थ में ठेकेदारों ने मैदान का अस्तित्व ही मिटा दिया। जहाँ खेल तो दूर अब लोग झांकने तक नहीं जाते हैं। अब यह गंदगी का मैदान बन कर रह गया है।

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