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    Friday, April 26, 2024
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      सांप्रदायिक दंगा रोकने जब नेहरु जी पहुंचे नगरनौसा, बिनोबा जी ने कहा- ‘लोकदेव’

      देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित  जवाहरलाल नेहरू के बारे में कहा जाता है कि जब वे दौरे पर निकलते थे, उनके साथ जिंदगी की एक लहर दौड़ पड़ती थी। उनके आते ही सभाएं तरंगित हो उठती। जनता के बीच जय-जयकार की घोष गूंज उठती। चिंतक ओंठ पर अंगुली रखकर यह सोचने लगते कि ऐसा लोकप्रिय पुरूष भारत में पहले कभी जन्मा था या नहीं…..”

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। किसने सोचा था कि सैकड़ों साल की गुलामी के बाद जब आजादी की नसीब दहलीज पर  होगी तो उसकी कीमत अपनों के ही खून से अदा की जाएंगी। आजादी के पूर्व और बाद मिले दंगों का दर्द और हिंदू-मुस्लिम के नाम पर बहे खून की दास्तां है देश की आजादी।

      Jawahar Lal Nehru in nagarnausa nalandaयह एक ऐसा जख्म है, जिससे 72 साल बाद भी खून रिसता है। हर बार स्वतंत्रता दिवस की खुशी आते ही बंटवारे का दर्द भी उभर आता है। यह दर्द है विभाजन का। अपना सब कुछ छूट जाने का और सारी खुशियां लुट जाने का।

      15 अगस्त 1947 को आजादी का तराना पूरे देश में गूंजा। वंदे मातरम व भारत माता की जय का उद्घघोष जन-जन को पुलकित कर रहा था, लेकिन इस खुशनुमा घड़ी में देश दो टुकड़ों में बंट गया गया था।

      इस बंटबारे की खबर से देश आजाद होता इससे पहले ही देश में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे।  इसके बाद  मचे खून खराबे  में सैकड़ों  लोगों का घर बार सब छूट चुका था।

      देश के बंटबारे की खबर के बीच 1946 में  बिहार के कई हिस्सों में भी दंगे भड़क उठे थे। तब पटना का हिस्सा रहा नगरनौसा और तेल्हाडा में भी दंगे की आग फैल चुकी थी।

      नगरनौसा तब पटना जिला का हिस्सा था और मुस्लिमों की अच्छी खासी जमींदारी थी। आजादी के पूर्व यहां हिन्दू -मुस्लिम भाईचारे के साथ रहते आ रहे थे। लेकिन देश की बंटबारे की आग यहां भी पहुँच गई।

      नगरनौसा में  भारी संख्या में मुस्लिम लोगों की हत्या कर दी गईं। बदले में कार्रवाई करते हुए फौजियों ने भी कई हिन्दू लोगों पर कार्रवाई की। इस घटना को लेकर दंगे की आग दोनों समुदाय के बीच बढ़ती चली गई। इस घटना को लेकर पटना में भी तनाव बढ़ गया। हिन्दू-मुस्लिम मुहल्लों में तनाव बढ़ गया था। मारकाट मच गया था।

      jawahar lal nehru in nagarnausa patna 2

      जब इस दंगे की जानकारी पंडित जवाहरलाल नेहरू को हुई तो वह पटना पहुँचे। पटना के सीनेट हाल में नेहरूजी को लोगों को संबोधित करना था।

      जब नेहरू सीनेट हाल में भाषण देना शुरू किया, तब कुछ युवकों ने उन पर हमला कर दिया। उनका कुर्ता फाड़ दिया गया। यहां तक कि भीड़ में किसी ने उनकी टोपी उड़ा दी।

      तब सीनेट हाल में उपस्थित जयप्रकाश नारायण ने नेहरू को भीड़ से बचाया था। जेपी ने आक्रोशित लोगों को शांत कराते हुए कहा कि- ‘आपने पंडित जी का अपमान करके अपने आपको अपमानित किया है’।

      तभी पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पीछे से जेपी को खींचकर आगे आकर लोगों से बोले- “ नहीं साहब! मैं बड़ा ही बेहया आदमी हूँ। मेरी हतक-इज्जती जरा भी नहीं हुई है। उल्टे मुझे खुशी हुई कि आपने बड़े ही जोश के साथ मेरा स्वागत किया है”। इस बात का प्रभाव लोगों पर पड़ा और वे शांत होकर नेहरू जी की पूरा भाषण सुना।

      पटना से अगले दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू नगरनौसा की ओर निकल पड़े। जब लोगों को जानकारी मिली कि पंडित नेहरू दंगे की आग बुझाने  नगरनौसा आ रहे हैं तो बड़ी संख्या में कांग्रेस के कार्यकर्ता और जनता नगरनौसा पहुँचने लगी।

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      उधर हिंदू महासभा-आरएसएस ने  उनके विरोध की रणनीति बनायी थी। इस बात को लेकर पंडित नेहरू की सुरक्षा को लेकर युवाओं की एक टीम उनकी सुरक्षा में लग गई। पंडित नेहरू नगरनौसा पहुँचते ही सीधे दंगाईयों के पास पहुँच गए। वो भी बिना किसी सुरक्षा के।

      उन्होंने दंगाईयों को धमकी देते हुए कहा  कि यदि एक भी मुस्लिम की हत्या हुई तो मैं यहां के सभी हिंदुओं पर मिलिट्री को कड़ी कार्रवाई का आदेश दे दूंगा। गोरे मिलिट्री किसी को नहीं छोड़ेंगे। इस बात का असर दंगाईयों पर हुआ और उन सब ने हिंसा त्याग दी।

      पंडित नेहरू ने तब के अंतरिम मुख्यमंत्री कृष्ण सिंह को नगरनौसा में राहत शिविर चलाने का आदेश दिया। उन्होंने दंगा पीड़ित मुस्लिम तथा हिन्दू दोनों को समुचित इलाज,भोजन और आवास उपलब्ध कराने का भी निर्देश दिया।

      नगरनौसा में दंगे की भयावह आग के 72 साल बाद अब कोई ऐसा शख्स भले ही न बचा हो, जो इस घटना का चश्मदीद रहा हो। कुछ ऐसे शख्स हैं, जब इस दंगे के दौरान उनकी उम्र 10-12 साल रही थी। लेकिन उन्हें उस भयावहता की अधिक जानकारी नहीं है।

      पंडित नेहरू का यह करिश्माई व्यक्तित्व ही था, जो सांप्रदायिक दंगे की आग बुझाने में  सफल रहे। उनके इसी व्यक्तित्व से प्रभावित होकर आचार्य बिनोबा भावे ने उन्हें ‘लोकदूत’ की उपाधि दी थी।

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